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गांधी और कलाकार

मनीष पुष्कले पेंटर सन 1931 की एक सुबह, भीड़ में लंदन की एक सड़क पर चलते हुए गांधी की वह प्रसिद्ध तस्वीर याद आ रही है, जब वह गोलमेज सम्मेलन में शिरकत करने वहां गये थे. नजदीकी इमारत की एक खिड़की से चार्ली चैपलिन बड़े कौतुहल से गांधी को ताक रहे हैं. चार्ली अवाक हैं. […]

मनीष पुष्कले
पेंटर
सन 1931 की एक सुबह, भीड़ में लंदन की एक सड़क पर चलते हुए गांधी की वह प्रसिद्ध तस्वीर याद आ रही है, जब वह गोलमेज सम्मेलन में शिरकत करने वहां गये थे. नजदीकी इमारत की एक खिड़की से चार्ली चैपलिन बड़े कौतुहल से गांधी को ताक रहे हैं. चार्ली अवाक हैं.
यह एक अभिनेता द्वारा अभिनीत लीन मुद्रा नहीं थी, बल्कि यह एक महान व्यक्तित्व के विराट में स्वाभाविक रूप से विलीन होते एक महान अभिनेता की तस्वीर थी. यह वह समय है, जब चैपलिन अपनी फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए थे. चार्ली चैपलिन तब तक गांधी के नाम से तो परिचित थे, लेकिन उनसे मिलने के बाद वे उनके विचारों से बहुत गहरे तक प्रभावित हुए और उन्हें उनकी अगली फिल्म ‘मॉडर्न टाइम्स’ की प्रेरणा इसी मुलाकात से मिली थी.
आधुनिक इतिहास में गांधी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि एक तरफ उनका जीवन विचार-कर्म के धरातल से उपजते आध्यात्मिक नैरंतर्य में बीतता है, तो दूसरी ओर उनकी नाक के नीचे धर्म के आधार पर हुए देश के विभाजन की चुनौतियों और दुख पर. गांधी की मौन में गहरी आस्था थी, लेकिन अंत में उन्हें मूक भी किया गया और म्यूट (चुप) भी. यह बात आश्चर्यजनक नहीं लगती कि देश के विभाजन के कुछ ही महीनों में गांधी कैसे अपने जीवन से मुक्त हो जाते हैं.
क्योंकि गांधी की देह से मुक्ति का कारण प्राकृतिक नहीं है, उनकी मुक्ति (मौन) में मृत्यु (मूक) और हत्या (म्यूट) का संघर्ष है. इतिहास में उनका अकेला ऐसा उदाहरण है, जो जीते-जी एक ऐसी विचारधारा बन गया, जिसने वैश्विक स्तर के धर्मगुरुओं, राजनेताओं, समाजशास्त्रियों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, फिल्मकारों, लेखकों और कलाकारों के मानस को लगातार प्रभावित किया है.
गांधी के प्रति इन सभी की आसक्ति मुझे बहुत आकर्षित करती है और यह सोचने पर विवश भी करती है कि गांधी के व्यक्तित्व और दर्शन में आखिर ऐसी कौन-सी संभावनाएं रही हैं, जिनकी कसौटी पर हम अभी तक अपने अध्यात्म, धर्म, नीतियों और पारंपरिक रूढ़ियों के साथ अपनी आधुनिकता को भी परख सकते हैं.
शायद इसी जिज्ञासा में भारतीय चित्रकारों की जमात में भी गांधी एक अनंत संभावनाओं से भरे विचार के रूप में समय-समय पर प्रकट होते रहे हैं. किसी ने उन्हें बुद्ध का अवतार के रूप में चित्रित किया, तो किसी ने उनके गीता प्रवचनों को अपने चित्र का आधार बनाया. हालांकि, गांधी पर केंद्रित अधिकतर चित्रों से उनकी छवि की मूलतः दो श्रेणियां बनतीं हैं.
एक में उनकी आकृतिमूलक छवि है और दूसरी में उनकी धोती, घड़ी, लाठी, चश्मा, चरखा, सूत, नमक या ‘हे-राम’ जैसा रूपक केंद्र में हैं. इस प्रकार इन दोनों ही श्रेणियों में गांधी की मूलतः संज्ञामूलक छवि ही बनती है. लेकिन गांधी की वह छवि मुझे सबसे ज्यादा आकृष्ट करती है, जो स्वयं उन्हें एक ‘अहिंसा के कलाकार’ के रूप में स्थापित करती है.
यह उनकी क्रियामूलक छवि है, जिसमें उनका मौन, प्रार्थना, प्रवचन, सत्याग्रह, अहिंसा, उपवास, प्रतिक्रमण, स्वधर्म आदि केंद्र में हैं. गांधी की इस छवि के रूपक को आज तक कोई चित्रकार नहीं खोज सका और शायद यही वह कारण है कि बेंद्रे से लेकर हुसैन तक, नंद बाबू से लेकर रजा तक सभी बड़े चित्रकार गांधी की क्रियामूलक छवि के समक्ष विनम्रतापूर्वक नत-मस्तक ही हुए. लेकिन यह भी सच है कि गांधी पर केंद्रित उनके अधिकतर चित्र अपनी कोई गहरी छाप उस प्रकार से हमारे मानस पर नहीं छोड़ पाते, जिस प्रकार से वह छाप गांधी-संगीत के माध्यम से हमारे भीतर छूटती है.
यह चुनौती नृत्य में भी है, लेकिन सुब्बालक्ष्मी के भजन, कुमार गंधर्व का ‘गांधी मल्हार’ और रवि शंकर की ‘मोहन कौंस’ में गांधी प्रेरणा जिस प्रकार से फलती है और हमें परिष्कृत करती है, वह अतुलनीय है. आखिर ऐसा क्यों है कि गांधी की आभा संगीत की शास्त्रीय तात्कालिकता में तो उसकी शोभा बन जाती है, लेकिन चित्र की समकालीनता में वही प्रमा अभिधा मात्र हो जाती है? एक चित्रकार होने के नाते चित्रों में इस विफलता के कारणों को खोजना मेरा धर्म है.
मैं आपके साथ एक अलग इशारे को साझा करना चाहता हूं. गांधी का सपाट, सफेद रंग से विशेष नाता रहा है. अगर हम गांधी के जीवन को रंगों की दृष्टि से देखें, तो उनका बचपन काठियावाड़ के रंगीन परिधानों से शुरू होता है, लेकिन उनका अंत होता है एक सफेद लंगोट पर.
वे अपने परिधान में तो रंगीन से रंगहीनता की ओर अग्रसर होते हैं, लेकिन वे अपने जीवन में सूत्रों से आकार के बजाय, आकार से उसके सूत्र को समझ सकने का, अपरिग्रह का मार्ग चुनते हैं.
ऐसे में गांधी एक विषय के रूप में हमेशा ही चित्रकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती इसलिए बने रहेंगे, क्योंकि गांधी मात्र एक संज्ञा नहीं है, बल्कि वह तो एक ऐसा अविरल झरना है, जिसमें नैरंतर्य सिर्फ झिरने का है.

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