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Friday, March 29, 2024

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सीपेक और डोकलाम विवाद से भारत-चीन के बीच उपजी खटास वुहान बैठक के बाद हुई समाप्त

बीजिंग : भारत-चीन सबंधों में 2018 में सद्भाव देखने को मिला. जहां 2017 में दोनों के बीच डोकलाम में एक बड़ा सैन्य गतिरोध उत्पन्न हो गया था, इस साल दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच पहली अनौपचारिक शिखर बैठक हुई और इससे एशिया के दो बड़े देशों के बीच तनाव कम करने में मदद […]

बीजिंग : भारत-चीन सबंधों में 2018 में सद्भाव देखने को मिला. जहां 2017 में दोनों के बीच डोकलाम में एक बड़ा सैन्य गतिरोध उत्पन्न हो गया था, इस साल दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच पहली अनौपचारिक शिखर बैठक हुई और इससे एशिया के दो बड़े देशों के बीच तनाव कम करने में मदद मिली. वर्ष 2017 में भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों में 60 अरब डॉलर वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) के साथ ही डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के 73 दिन तक आमने सामने डटे रहने के चलते कड़वाहट आ गयी थी.

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सीपेक ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ (बीआरआई) का एक हिस्सा है, जो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है. इसका उद्देश्य विदेश में चीन का प्रभाव बढ़ाना है. सीपेक और डोकलाम को लेकर गतिरोध ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को वुहान में शिखर बैठक में दोनों देशों के संबंधों में शांतिपूर्ण विकास की संभावना का पता लगाने के लिए प्रेरित किया.

दोनों नेताओं के रणनीतिक दिशा-निर्देश में भारत और चीन ने 2018 में संयुक्त सैन्य अभ्यास बहाल किया. यह दोनों देशों के बीच 18 महीने पहले डोकलाम में सैन्य गतिरोध के बाद पहला ऐसा अभ्यास था. चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत-चीन संबंधों में इस वर्ष आये बदलावों की समीक्षा करते हुए कहा कि वर्तमान परिवर्तनशाली अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में चीन-भारत संबंधों का सार्थक विकास दोनों देशों के मूलभूत हितों के अनुरूप है.

चीन के विदेश मंत्रालय ने एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि 2019 में चीन भारत के साथ राजनीतिक परस्पर विश्वास बढ़ाने, आदान-प्रदान और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने, मतभेदों को सही तरीके से सुलझाने, दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी सहमति के अनुरूप चीन-भारत संबंधों के तेज, बेहतर और अधिक स्थिर विकास को बढ़ावा देने के वास्ते काम करने को तैयार है.

बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव से चीन से लगे दक्षिण एशियाई पड़ोस में भारत का प्रभाव कम होने का खतरा उत्पन्न हुआ, क्योंकि चीन ऋण कूटनीति के आरोपों के बीच छोटे देशों को आधारभूत परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर का ऋण दे रहा है. इस बीच, सीपेक चीन-भारत संबंधों में सबसे बड़े व्यवधान के तौर पर उभरा है. भारत की इस आपत्ति के बावजूद कि सीपेक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, चीन सीपेक पर आगे बढ़ा.

भारत ने इसको देखते हुए पिछले साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ओर से आयोजित बीआरआई फोरम का बहिष्कार किया. चीन ने इसके साथ ही परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के भारत के प्रयास में बाधा उत्पन्न की, जिससे दोनों देशों के संबंधों में दरार और बढ़ गयी.

वर्ष के बड़े हिस्से के दौरान चीन में भारत के राजदूत रहे गौतम बम्बावाले ने कहा कि 2018 एक ऐसा वर्ष था, जिस दौरान भारत-चीन संबंध डोकलाम से वुहान और उसके आगे बढ़े. बम्बावाले ने पहले अनौपचारिक सम्मेलन के लिए चीन के अधिकारियों के साथ नजदीकी रूप में संवाद में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. बम्बावाले 30 नवंबर को सेवानिवृत्त हो गये.

उन्होंने एक ई-मेल जवाब में कहा कि ऐसा करने के लिए दोनों देशों और उनके नेतृत्व को आत्मनिरीक्षण करना पड़ा और स्वतंत्र रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोई अनौपचारिक शिखर बैठक दोनों नेताओं को रणनीतिक संवाद का एक मौका प्रदान करेगी. वुहान में उनकी बातचीत से संबंधों में सुधार का एक माहौल बना. उन्होंने कहा कि इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक संवाद देखने को मिला.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस वर्ष चार बार मिले. जिस पर ध्यान नहीं दिया गया वह यह है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और चीन के रक्षा मंत्री वेई फंगह ने भी इस वर्ष तीन बार मुलाकात की. हमारे विदेश मंत्रियों ने भी कई बार मुलाकात की. चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री की इस वर्ष की भारत यात्रा भी एक महत्वपूर्ण घटना थी.

बम्बावाले ने चेंगदू में भारत और चीन के बीच ‘हैंड इन हैंड’ सैन्य अभ्यास बहाली और रक्षा संवाद बहाली का उल्लेख करते हुए कहा कि द्विपक्षीय सैन्य संबंधों का विकास इस वर्ष भारत-चीन संवाद में सबसे महत्वपूर्ण रहा. ‘हैंड इन हैंड’ और रक्षा संवाद दोनों डोकलाम गतिरोध के चलते एक वर्ष के अंतराल पर हुए. दोनों देशों ने गत नवंबर में 21वें दौर की सीमा वार्ता की, जिसमें उन्होंने सीमा मुद्दे के हल के लिए संवाद प्रक्रिया आगे बढ़ाने का आह्वान किया.

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