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Viral Video: ऐसा पाकिस्तान नहीं देखा होगा, कव्वाली के सुरूर में बेखौफ़ हुक्का उड़ाती लड़कियां

Viral Video: पाकिस्तान में एक शादी के फंक्शन का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें लड़कियां हुक्का पीती नजर आ रही हैं. यह ऐसे देश में हो रहा है, जहां लड़कियों को पर्दे में रखने का चलन काफी ज्यादा है.

Viral Video: कराची, पाकिस्तान के एक फाइव-स्टार होटल में आयोजित इस भव्य वेडिंग रिसेप्शन में मशहूर सूफी गायक राहत फतेह अली खान की कव्वाली चल रही है. इस आयोजन में पाकिस्तान के उच्च वर्ग के लोग शामिल हुए, जहाँ खासतौर पर अमीर घरानों की महिलाएँ बिना हिजाब या बुर्के के खुलकर महफ़िल का आनंद लेती नजर आईं. वे संगीत, शायरी, हुक्का और सिगरेट के धुएँ के बीच महफ़िल में डूबी हुई थीं. यूट्यूब पर लिबास ए पाकिस्तान नामक चैनल पर इस तरह के कई वीडियोज देखे जा सकते हैं. 

ट्विटर पर शेयर किए गए इस वीडियो पर यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा कि पाकिस्तान में राहत फतेह अली खान की कव्वाली में उच्च समाज की महिलाएं बिना हिजाब या बुर्का के आनंद ले रही हैं. इस्लाम केवल भारत में ही खतरे में है, जबकि पाकिस्तान और अन्य इस्लामी देशों में यह सुरक्षित है. जबकि ताज्जुब की बात है कि यह वही पाकिस्तान है जहां कट्टरपंथी इस्लामिक कानून एवं महिलाओं को पर्दे में रखना चाहते हैं. ट्विटर पर अब तक इसको 8 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

यह दृश्य दर्शाता है कि पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में धार्मिक नियमों का पालन वर्ग विशेष के अनुसार अलग-अलग तरीके से किया जाता है. भारत सहित कुछ अन्य देशों में भी हिजाब और बुर्के को लेकर बार-बार विवाद खड़ा किया जाता है और फतवे जारी किए जाते हैं. यह विरोधाभास स्पष्ट करता है कि धार्मिक मान्यताओं और नियमों की सख्ती भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है.

महिलाओं में लोकप्रिय है हुक्का और शिशा

हुक्का (शिशा) पीना पाकिस्तान में युवाओं, खासकर शहरी इलाकों में, एक फैशन ट्रेंड बन चुका है. सोशल मीडिया  कराची, लाहौर और इस्लामाबाद जैसे बड़े शहरों में शिशा कैफे लोकप्रिय हैं, जहां महिलाएँ और पुरुष दोनों इसका आनंद लेते हैं. हालांकि, समाज के पारंपरिक वर्ग इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया देते हैं, क्योंकि यह धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील विषय भी हो सकता है. कई बार सरकार ने शिशा कैफे पर प्रतिबंध भी लगाया है, लेकिन फिर भी इसका चलन जारी रहता है.

अमेना टी. रहीम, खदीजा आई. इकबाल और तहमीना एस. क़मर, Rawal Institute of Health Sciences, Bahria University के एक शोध अनुसार, शीशा पीने की आदत सबसे ज्यादा 16-25 वर्ष की उम्र के युवाओं में पाई जाती है, जिसमें 70% पुरुष और 30% महिलाएँ शामिल हैं. चिंताजनक बात यह है कि कई बार ग्राहक या इसे परोसने वाले लोग इसमें नशे की लत लगाने वाले पदार्थ मिला देते हैं.

युवा पाकिस्तानी महिला छात्रों में शीशा पीने की आदतें नामक इस अध्ययन का उद्देश्य पाकिस्तानी महिला छात्रों में शीशा पीने की बढ़ती प्रवृत्ति का आकलन करना था. इसके लिए रावलपिंडी और इस्लामाबाद के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की छात्राओं को प्रश्नावली वितरित की गई. आंकड़ों के अनुसार, 51.6% छात्राएँ एक-दूसरे को शीशा पीने का विकल्प देती हैं. इस शोध में पाया गया कि 61.1% छात्राओं ने कॉलेज जीवन के दौरान शीशा पीना शुरू किया, और 68.1% इसे फैशनेबल मानती हैं, जबकि 54.9% को इसके हानिकारक प्रभावों की जानकारी नहीं है.

अभिभावकों में इस विषय को लेकर जागरूकता का स्तर लगभग समान पाया गया, अर्थात 48.9% और 50.5%. 35.2% छात्राओं ने इसे वजन कम करने का एक तरीका माना, जबकि 22% ने इसे तनाव कम करने के लिए उपयोग किया. एक बड़ी संख्या (78%) ने इस बात से सहमति जताई कि सरकार को इस प्रवृत्ति पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए. सरकार को शीशा बार पर नियंत्रण रखना चाहिए और इसमें प्रतिबंधित पदार्थों की जांच करनी चाहिए. यह अध्ययन छोटे शहरों में भी किए जाने की आवश्यकता है.

पाकिस्तान का दोहरा समाज

मानवाधिकार निगरानी (HRW) की 2022 की वैश्विक महिला शांति और सुरक्षा रिपोर्ट में पाकिस्तान को 170 देशों में से 158वां स्थान दिया गया था. इस रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ रेप, हत्या, तेजाबी हमले, घरेलू हिंसा और जबरन शादी जैसी घटनाएँ आम हैं.

पाकिस्तान के मानवाधिकार मंत्रालय की 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार, 15 से 29 साल की महिलाओं पर सबसे ज्यादा अत्याचार होते हैं, और इस आयु वर्ग की लगभग 28% महिलाएँ शारीरिक हिंसा का शिकार होती हैं. लैंगिक समानता के मामले में भी पाकिस्तान की स्थिति खराब है, जिसे वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक में 146 देशों में 145वां स्थान मिला था.

शिक्षा के क्षेत्र में भी पाकिस्तान की लड़कियाँ काफी पीछे हैं. खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में, जहां लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है और उन्हें स्कूल जाने का मौका नहीं मिलता. समाज में पर्दा प्रथा का सख्ती से पालन किया जाता है, जिसके कारण अधिकांश महिलाएँ घर से बाहर निकलते समय बुर्का या हिजाब पहनने को मजबूर होती हैं.

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