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Nobel Prize 2020: नोबेल पीस प्राइज जीतने वाले ‘वर्ल्ड फूड प्रोग्राम’ का भारत से क्या रिश्ता है?

नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का भारत से गहरा नाता है. संस्था ने भारत में भूखमरी और कुपोषण मिटाने की दिशा में भारत सरकार के साथ मिलकर कई उल्लेखनीय काम किया है

नयी दिल्ली: साल 2020 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को दिया गया. संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़े इस कार्यक्रम के तहत दुनिया में भूखमरी की समस्या से निपटने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया गया. जानकारी के मुताबिक दुनियाभर के 88 से ज्यादा देशों के 100 मिलियन से भी ज्यादा लोगों तक वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के तहत भोजन पहुंचाया गया. कोविड संकट के दौरान भी भूखमरी की समस्या पैदा ना हो, वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने ये सुनिश्चित किया.

नोबेल शांति पुरस्कार का भारत कनेक्शन

आपके लिए ये जानना दिलचस्प होगा कि नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का भारत से गहरा नाता है. संस्था ने भारत में भूखमरी और कुपोषण मिटाने की दिशा में भारत सरकार के साथ मिलकर कई उल्लेखनीय काम किया है. इनमें सरकारी प्राईमरी स्कूलों में दिया जाने वाला मिड डे मिल और जनवितरण प्रणाली केंद्र के तहत दिया जाने वाला फ्री राशन शामिल है.

डब्ल्यूएफपी को इसलिए मिला नोबेल प्राइज

नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा कि डब्ल्यूएफपी यानी वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने युद्ध, गृहयुद्ध सहित अन्य सैन्य संघर्षों के दौरान ये सुनिश्चित किया कि भूख का इस जंग में एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल ना किया जा सके. संस्था ने भूखमरी की समस्या से दृढ़ता से लड़ाई की और लाखों लोगों को शांति प्रयासों में भागीदार बनाया.

डब्ल्यूएफपी ने भारत में किया ये सारा काम

भारत सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने कई कार्यक्रम चलाए. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किया. अन्नपूर्णा कार्यक्रम चलाया. साथ ही ये भी सुनिश्चित किया कि फ्री राशन योजना का लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे. केवल यही नहीं, इस संस्था ने भारत सरकार के साथ मिलकर राइस एटीएम जैसा रचनात्मक काम किया. लोगों को उनके घरों तक अनाज की डिलीवरी करने की व्यवस्था की.

क्या बोले डब्ल्यूएफपी इंडिया के निदेशक

भारत में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के प्रतिनिधि और निदेशक बिशो पराजुली ने कहा कि खाद्य प्रणाली की चुनौतियों को ठीक करने के लिए तीन कार्य किए जाने अहम थे. विशेषकर कोविड संकट के दौरान हमारे पास कई चुनौतियां थीं. इसमें राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली, स्कूल आधारित कार्यक्रम और खाद्य प्रणालियों के माध्यम से लोगों को भोजन और पोषण की बुनियादी डिलीवरी सुनिश्चित करना हमारा प्राथमिक लक्ष्य था.

डब्ल्यूएफपी द्वारा भारत में किए गए अहम कार्य

जानकारी के मुताबिक डब्ल्यूएफपी इंडिया ने दिसंबर 2018 से वाराणसी में एक कार्यक्रम के तहत तकरीबन 3 लाख स्कूली बच्चों को 4,145 मीट्रिक टन चावल वितरित किया. उत्तर प्रदेश के राज्य आजीविक मिशन के साथ समझौता किया जिसके तहत यूपी के 18 जिलों में पूरक पोषण उत्पादन इकाइयों की स्थापना की गई.

केंद्र सरकार की अन्नपूर्णा योजना के तहत पांच राज्यों, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश औऱ हरियाणा में स्वचालित अनाज वितरण मशीनें स्थापित की जाएंगी. इन मशीनों के जरिए 1 मिनट 30 सेकेंड में 25 किलोग्राम चावल निकल सकता है. प्रत्येक मशीन में 200 से 500 किलोग्राम तक अनाज का भंडारण किया जा सकता है.

नोबेल पीस प्राइज की रेस में और कौन-कौन था

गौरतलब है कि इस साल नोबेल पुरस्कारों की रेस में पहले नंबर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन था. न्यूजीलैंड की पीएम जेसिका ऑर्डर्न भी थीं. चर्च में हुए आतंकी हमले और फिर कोविड संकट के दौरान विपरित और चुनौतीपूर्ण परिस्थियों में मजबूती से फैसले लेने और लोगों को त्वरित राहत पहुंचाने के उनके प्रयासों के लिए उनका नाम नोबेल के लिए भेजा गया था.

स्वीडेन की 14 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग का नाम भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भेजा गया था. 2021 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम भेजा गया है.

Posted By- Suraj Thakur

Prabhat Khabar Digital Desk
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