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Defense: नयी एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम हासिल करने में जुटी भारतीय सेना

पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत भारत की ओर से बार-बार दिया जा रहा है. भावी कार्रवाई और संभावित चुनौतियों के बीच भारतीय सेना लगातार अपनी क्षमता का विस्तार करने में जुटी हुई है. इस कड़ी में भारतीय सेना नया एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने की तैयारी शुरू कर दी है. रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए टेंडर जारी कर दिया है. टेंडर के तहत रक्षा मंत्रालय 48 लॉन्चर, 48 नाइट विजन डिवाइस, 85 मिसाइल और एक मिसाइल टेस्ट स्टेशन खरीदने की योजना है और पूरी खरीद मेक इन इंडिया के तहत होगी.

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Defense: पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत भारत की ओर से बार-बार दिया जा रहा है. भावी कार्रवाई और संभावित चुनौतियों के बीच भारतीय सेना लगातार अपनी क्षमता का विस्तार करने में जुटी हुई है. इस कड़ी में भारतीय सेना नया एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने की तैयारी शुरू कर दी है. रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए टेंडर जारी कर दिया है. टेंडर के तहत रक्षा मंत्रालय 48 लॉन्चर, 48 नाइट विजन डिवाइस, 85 मिसाइल और एक मिसाइल टेस्ट स्टेशन खरीदने की योजना है और पूरी खरीद मेक इन इंडिया के तहत होगी.

खास बात है कि मिसाइल सिस्टम दुश्मन के एयरक्राफ्ट या ड्रोन को बेहद कम दूरी पर मार गिराने में सक्षम होगा. इससे लड़ाकू विमान, हेलिकॉप्टर और ड्रोन को नष्ट करने की क्षमता काफी बढ़ जायेगी. इस एयर डिफेंस सिस्टम की खासियत यह है कि इसे कंधे पर रखकर दुश्मन के खिलाफ प्रयोग किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल नौसेना और वायु सेना भी कर सकेगी. फिलहाल भारत के पास रूस निर्मित एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. इसके अलावा भी दूसरे एयर डिफेंस सिस्टम हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार टेंडर की पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होगी और तय मानक पर खरी उतरने वाली कंपनियों का ही चयन होगा. 

वायुसेना भी निगरानी के लिए एचएपीएस हासिल करने में जुटी

लड़ाकू विमान और जमीनी स्तर पर बने स्टेशन के बीच संचार, सर्विलांस और डेटा की सुरक्षा की लिए वायुसेना को जल्द ही तीन सैटेलाइट की सुविधा मिल सकती है. रक्षा मंत्रालय ने टेंडर जारी किया है और घरेलू कंपनियों को ही इसमें शामिल होने की इजाजत होगी. हाई एल्टीट्यूड प्लेटफार्म सिस्टम(एचएपीएस) नामक इस प्लेटफार्म लंबे समय तक हवा में काम करता है और इसे सौर ऊर्जा से चार्ज किया जाता है. यह परंपरागत ड्रोन से अधिक ऊंचाई पर काम करने में सक्षम होता है. रक्षा मंत्रालय 16 किलाेमीटर की ऊंचाई तक उड़ने में सक्षम सिस्टम का विकास चाहता है.

पिछले साल नौसेना ने ऐसे सिस्टम के लिए बेंगलुरु स्थित एक कंपनी के साथ समझौता किया था. इसका मकसद नौसेना की निगरानी क्षमता में इजाफा करने के साथ विदेशी तकनीक पर निर्भरता को कम करना है. वायुसेना भी ऐसी तकनीक हासिल करने की दिशा में काम कर रही है. रक्षा मंत्रालय विभिन्न रक्षा उपकरणों के विकास और शोध में निजी कंपनियों और स्टार्टअप को आर्थिक और तकनीक मदद मुहैया करा रहा है.

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