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Corona News..तो क्या बूस्टर डोज लगाने के बावजूद नेजल वैक्सीन लेना जरूरी है, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

Corona News: कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ एनके अरोड़ा ने कहा कि भारत में उन लोगों को नेजल वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन का एहतियाती या बूस्टर डोल ले रखी है. नेजल वैक्सीन इनकोवैक को पिछले हफ्ते कोविन पोर्टल पर पेश किया गया है.

नई दिल्ली : चीन में कोरोना के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर भारत में चौकसी शुरू हो गई है. इसके तहत सरकार के स्तर पर तैयारियां शुरू हो गई हैं. इस दौरान चर्चा बूस्टर डोज और नेजल वैक्सीन लगाने को लेकर भी की जा रही है. कोरोना संक्रमण के खिलाफ टीकाकरण अभियान के तहत देश के लाखों लोगों ने कोरोना वैक्सीन का बूस्टर डोज लगवा लिया है. इसके बाद अब नेजल वैक्सीन भी लगाई जा रही है, लेकिन इसे लेकर लोगों में भ्रांतियां मौजूद हैं कि क्या बूस्टर डोज लेने वाले नेजल वैक्सीन ले सकेंगे या नहीं? आइए, जानते हैं कि इसे लेकर जाने-माने विशेषज्ञ और कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख क्या कहते हैं.

बूस्टर डोज लेने वालों के लिए नहीं है नेजल वैक्सीन

समाचार चैनल एनडीटीवी को दिए साक्षात्कार में कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ एनके अरोड़ा ने कहा कि भारत में उन लोगों को नेजल वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन का एहतियाती या बूस्टर डोल ले रखी है. नेजल वैक्सीन इनकोवैक को पिछले हफ्ते कोविन पोर्टल पर पेश किया गया है. उन्होंने कहा कि यह नेजल वैक्सीन पहले से ही बूस्टर डोज के रूप में अनुशंसित है. यदि किसी व्यक्ति को पहले से ही एहतियाती खुराक लग चुकी है, तो यह नेजल वैक्सीन वैसे लोगों के लिए नहीं है. उन्होंने कहा कि यह उन लोगों के लिए है, जिन्होंने अभी तक कोरोना वैक्सीन का एहतियाती या बूस्टर डोज नहीं लगवा रखी है.

चौथी खुराक लेने का कोई औचित्य नहीं

बता दें कि डॉ एनके अरोड़ा एनटीएजीआई के कोविड वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष हैं, जो टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह का संक्षिप्त रूप है, जो नए टीकों को पेश करने और सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम को मजबूत करने पर काम करता है. उन्होंने कहा कि मान लें कि आप एक और चौथी खुराक लेना चाहते हैं. एक अवधारणा है जिसे ‘एंटीजन सिंक’ कहा जाता है. यदि किसी व्यक्ति को किसी विशेष प्रकार के एंटीजन के साथ बार-बार प्रतिरक्षित किया जाता है, तो शरीर प्रतिक्रिया देना बंद कर देता है या खराब प्रतिक्रिया करता है. शुरुआत में एमआरएनए के टीके छह महीने के अंतराल से क्यों दिए जाते हैं. बाद में लोग तीन महीने के अंतराल पर ले रहे हैं, लेकिन उस मामले में इससे बहुत अधिक मदद नहीं मिली है. इसलिए फिलहाल चौथी खुराक लेने का कोई का कोई औचित्य नहीं है.

सांस संबंधी बीमारी में भी काम करेगी नेजल वैक्सीन

डॉ एनके अरोड़ा ने कहा कि नेजल वैक्सीन नाक के जरिए बड़ी आसानी से ली जा सकती है. उन्होंने कहा कि नाक श्वसन तंत्र का प्रवेश बिंदु है और नाक एवं मुंह प्रतिरक्षा प्रणाली बाधाओं का निर्माण करती है, ताकि कोरोना के वायरस को आसानी से श्वसन तंत्र में प्रवेश न करने दिया जाए. उन्होंने कहा कि यह नेजल वैक्सीन न केवल कोरोना के खिलाफ लड़ने में मदद करती है, बल्कि सांस संबंधित तमाम प्रकार के वायरस और संक्रमण को रोकने वाला एक अहम हथियार है.

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कैसे लगाना है नेजल वैक्सीन

डॉ अरोड़ा ने आगे कहा कि आठ से अधिक उम्र के बच्चे भी नेजल वैक्सीन लगा सकते हैं. इसे नाक के जरिए लेना बहुत ही आसान है. उन्होंने बताया कि नाक के प्रवेश द्वार पर नेजल वैक्सीन के ड्रॉप को रखकर 0.5 एमल की कुल चार बूंदे डालना है. नेजल वैक्सीन लेने का यह सबसे सुरक्षित तरीका है. इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि इस नेजल वैक्सीन को लेने के बाद अन्य टीकों की तरह कम से कम 15 से 30 मिनट तक इंतजार करने की जरूरत है, ताकि तुरंत होने वाली किसी भी प्रतिक्रिया को ठीक किया जा सके.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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