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Child psychology: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिकों की बड़ी पहल

आईसीएसएसआर के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे मनोवैज्ञानिकों की टीम ने 300 स्कूलों में सर्वे कर पाया कि बच्चों की खराब मानसिक स्थिति के पीछे गरीबी, नशे की आसान उपलब्धता, माता-पिता के बीच झगड़े, साथियों का दबाव और अच्छे रोल मॉडल की कमी जैसे बड़े कारण हैं.

Child psychology: देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के मनोवैज्ञानिक, बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास को लेकर एक बड़ी शोध परियोजना पर काम कर रहे हैं. प्रोफेसर (डॉ) प्रज्ञेन्दु ( डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी) श्री अरविंदो कॉलेज, (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रोफेसर डॉ. गाजी शाहनवाज, (डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी) जामिया मिल्लिया इस्लामिया, गुरुग्राम विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. गायत्री, (डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी) और दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री अरविंदो कॉलेज (सांध्य) के रिसर्च असिस्टेंट डॉ. स्वाति शर्मा(डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी),दिल्ली विश्वविद्यालय के टीम ‘सोशल इमोशनल लर्निंग’ (एसईएल) विषय पर अध्ययन कर रही है. भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के वित्तीय सहायता से संचालित इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बच्चों के व्यवहार और उनकी मानसिक स्थिति का गहराई से आकलन करना है.

यह शोध मुख्य रूप से पांच बिंदुओं पर आधारित है. आत्म-जागरूकता, सामाजिक जागरूकता, आत्म-प्रबंधन, निर्णय लेने की क्षमता और संबंध कौशल. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में ऑनलाइन लर्निंग का प्रचलन बढ़ा है और सरकार की कई योजनाएं बच्चों की मूलभूत सुविधाओं (भोजन, स्वच्छता) पर ध्यान दे रही हैं. लेकिन, शिक्षा के स्तर पर अब भी एक बड़ी खाई है. जहां एक ओर एम्स, आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बच्चों में बढ़ती आत्महत्या, अवसाद (डिप्रेशन) और उग्र व्यवहार एक चिंताजनक स्थिति पैदा कर रहे हैं.

मानसिक तनाव और डिप्रेशन के कारणों की पहचान

शोध टीम के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चों की खराब मानसिक स्थिति के पीछे गरीबी, नशे की आसान उपलब्धता, माता-पिता के बीच झगड़े, साथियों का दबाव और अच्छे रोल मॉडल की कमी जैसे बड़े कारण हैं. इन समस्याओं के समाधान के लिए शोध टीम ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 300 स्कूलों के छात्रों से डेटा एकत्र किया है.

स्कूलों में ‘शून्य अवधि’ (जीरो पीरियड) की सिफारिश

प्रोजेक्ट के परिणामों के आधार पर विशेषज्ञों की टीम शिक्षकों और अभिभावकों के लिए एक विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करेगी. इसमें स्कूलों में ‘जीरो पीरियड’ यानी शून्य अवधि शामिल करने का प्रस्ताव है. इस विशेष पीरियड में बच्चे बिना किसी दबाव के अपनी समस्याओं और मानसिक स्थिति पर शिक्षकों से खुलकर चर्चा कर सकेंगे. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस प्रोजेक्ट के निष्कर्षों से भारतीय शिक्षा प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य को मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी.

शोध के विषय में डॉ स्वाति शर्मा ने बताया कि टीन एज के बच्चों पर यह शोध किया गया है. जिसमें खासकर देखा गया है कि बच्चों में गलत आदत, सहपाठियों का दबाव, स्मार्ट फोन की लत, पैरेंट्स का बच्चों पर ध्यान न देना, बच्चों में अकेलापन की समस्याएं आ रही है. इसके दुष्प्रभाव भी आ रहे हैं और देश का भविष्य गलत आदतों का शिकार हो रहा है. उन्होंने इस विषय में खासकर स्कूल और पैरेंट्स को विशेष तौर पर अपने बच्चों पर ध्यान देने की बात कही.

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