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बापू के मार्गदर्शन में सी राजगोपालाचारी ने दक्षिण भारत में हिंदी की रखी नींव, जमनालाल बजाज का मिला साथ

महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार का जिम्मा देवदास गांधी को दी थी और उनके साथ पांच लोगों को रवाना किया. बापू ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था का जिम्मा जमनालाल बजाज को सौंपा. जमनालाल ने तमिलनाडु में हिंदी के प्रसार के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को अपने साथ जोड़ा.

आज के समय में दक्षिण भारत के राज्यों और खासकर तमिलनाडु में भले ही हिंदी का विरोध किया जा रहा हो, लेकिन 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मार्गदर्शन और तत्कालीन भारत के प्रतिष्ठित व्यवसायी जमनालाल बजाज के नेतृत्व में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने दक्षिण भारत में हिंदी का झंडा बुलंद किया. तमिलभाषी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी स्वाधीनता आंदोलन के ऐसे सिपाही थे, जिन्होंने हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष करते रहे. उन्हें ही गैर-हिंदी भाषी दक्षिण भारतीय राज्यों में से एक तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिदी की शिक्षा का अनिवार्य करने का श्रेय जाता है.

पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में रखा कदम

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का मानना था कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जो देश को एक सूत्र में बांध सकती है. भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश में एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल बनने का श्रेय भी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को ही जाता है. चक्रवती राजगोपालाचारी या सी राजगोपालाचारी या फिर राजाजी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तत्कालीन मद्रास प्रांत के सलेम जिले के थोरापल्ली गांव में हुआ था. उनका देहावसान 25 दिसंबर 1972 को हुआ. पढ़ाई के दौरान ही वे राजनीति में सक्रिय हो गए थे और स्वाधीनता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई.

बापू ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पहले ही इस बात का एहसास हो गया था कि हिंदी ही एक ऐसी भाषा है, जिसे भारत की राजभाषा बनाया जा सकता है. हिंदी को राजभाषा के तौर पर स्वीकार कराने में महात्मा गांधी की भूमिका अहम रही है. वर्ष 1917 में जब भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था, तब बापू ने सार्वजनिक तौर पर इस बात का ऐलान किया था, ‘भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी है एक ऐसी भाषा है, जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है.’ हालांकि, बापू को यह भी पता था कि इस राह में चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं. इसलिए उन्होंने वर्ष 1918 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की थी.

राजगोपालाचारी ने 1937 में मद्रास में हिंदी को किया अनिवार्य

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार का जिम्मा अपने बेटे देवदास गांधी को दी थी और उनके साथ पांच लोगों को रवाना किया. बापू ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था का जिम्मा प्रसिद्ध व्यवसायी जमनालाल बजाज को सौंपा और जमनालाल बजाज और बापू ने तमिलनाडु में हिंदी के प्रसार के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को अपने साथ जोड़ा. वर्ष 1937 में जब प्रांतीय असेंबलियों का चुनाव हुआ, तक चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रांत जीत हासिल की और उसके प्रीमियर बनाए गए. इसी समय उन्होंने मद्रास में हिंदी को अनिवार्य कर दिया. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के इस फैसले के खिलाफ उस समय के मद्रास प्रांत (मद्रास प्रांत अब तमिलनाडु बन गया) में सीए अन्नादुरै की अगुआई में विरोध शुरू हो गया.

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मद्रास की माध्यमिक शिक्षा में हिंदी की गई शामिल

वर्ष 1952-54 तक मद्रास प्रांत का दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अपने राज्य में हिंदी को माध्यमिक स्तर की शिक्षा में हिंदी को शामिल कर उसे अनिवार्य कराया. 28 दिसंबर 1972 को जब उन्होंने अंतिम सांस ली, उससे पहले ही राजगोपालाचारी ने दक्षिण भारत में हिंदी को लोकप्रिय बनाने की नींव रख दी थी. इतना ही नहीं, उन्होंने विभिन्न भाषाओं में रामायण, महाभारत और गीता का अनुवाद भी अपने अनुरूप किया.

KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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