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यूनियनों की हडताल से सरकारी बैंकों का कामकाज प्रभावित, लोग परेशान

नयी दिल्ली: बैंक यूनियनों के एक वर्ग की हडताल के कारण मंगलवार को सरकारी बैंकों की तमाम शाखाएं या तो बंद रहीं या उनमें काम कामकाज नहीं हो रहा है. हडताल के कारण आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लोग बैंकों में जाकर वापस लौट रहे हैं. यूनियनों ने अपनी विभिन्न […]

नयी दिल्ली: बैंक यूनियनों के एक वर्ग की हडताल के कारण मंगलवार को सरकारी बैंकों की तमाम शाखाएं या तो बंद रहीं या उनमें काम कामकाज नहीं हो रहा है. हडताल के कारण आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लोग बैंकों में जाकर वापस लौट रहे हैं. यूनियनों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर एक दिन की इस हडताल का एलान किया था. इसमें यह मांग भी है कि वसूल नहीं हो रहे कर्जों के लिए बडे अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराया जाए.

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (यूएफबीयू) की अपील पर इस हडताल से विभिन्न बैंकों की शाखाओं में धन के नकद जमा और आहरण तथा चेकों के समाशोधन का काम बुरी तरह प्रभावित बताया गया. यूएफबीयू में नौ यूनियन हैं जिनमें भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) से संबंधित नेशनल आर्गनाइजेशन आफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्ल्यू) तथा नेशनल आर्गनाइजेशन आफ बैंक आफीसर्स :एनओबीओ: भी हैं लेकिन बीएमएस से संबद्ध ये दोनों ही संगठन आज की हडताल में शामिल नहीं हैं.

आल इंडिया बैंक एम्लाईज एसोसिएशन (एआईबीईए) के महासचिव सीएस वेंकटचलम ने कहा, कि प्रबंधकों और आईबीए (इंडियन बैंक्स एसोसिएशन) की हठधर्मिता और संवेदनहीनता के कारण हमें इस हडताल के लिए मजबूर होना पडा है. इन लोगों ने नोटबंदी के दौरान बैंक कर्मियों की ओर से अतिरिक्त समय तक दी गयी सेवाओं के लिए अलग से भुगतान किए जाने की हमारी मांग पर बातचीत करना भी उचित नहीं समझा.

बीएमएस से सम्बद्ध एनओबीडब्ल्यू के उपाध्यक्ष अश्विनी राणा ने कहा, कि यह हडताल अनावश्यक थी क्योंकि आईबीए ने मार्च के पहले सप्ताह में यूनियनों को बातचीत के लिए बुला रखा है और ग्रेच्युटी के बारे में भी सरकार ने मानसून सत्र में कानून में संशोधन का आश्वासन दे रखा है. हडताल टाली जा सकती थी.

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंक हैं. इनका कुल बैंकिंग सेवा बाजार के तीन चौथाई कारोबार पर नियंत्रण है.

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