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भाजपा स्थापना दिवस : राष्ट्रीय पार्टी के रूप में कांग्रेस का विकल्प बनने की विकास यात्रा

इंटरनेटडेस्क 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई. कांग्रेस जैसी बड़ी और पुरानी पार्टी के सामने भाजपा खुद को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने में कामयाब रही. आज की भारतीय जनता पार्टी पहले जनसंघ के नाम से जानी जाती थी. सन् 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ […]

इंटरनेटडेस्क

6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई. कांग्रेस जैसी बड़ी और पुरानी पार्टी के सामने भाजपा खुद को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने में कामयाब रही. आज की भारतीय जनता पार्टी पहले जनसंघ के नाम से जानी जाती थी. सन् 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ की स्थापना हुईथी, लेकिन उन दिनों पार्टी का आधार काफीसीमितथा.

1977 में जेपी आंदोलन के बाद जब विभिन्न दलों को मिलाकर जनता पार्टी की सरकार बनी तो जनसंघ भी इसमें शामिल हुई. इस सरकार में दो मंत्री बने-अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी. अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने, वहीं लालकृष्ण आडवाणी को सूचना प्रसारण मंत्रालय मिला. थोड़े ही दिनों में जनता पार्टी की सरकार में अंतर्कलह शुरू हो गया. मोरारीजी देसाई के नेतृत्व में बनी यह सरकार ज्यादा दिनों तक चल नहीं पायी. जनसंघ ने खुद को सरकार से अलग कर लिया. जनसंघ अब भारतीय जनता पार्टी बन गयी थी.
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शुरुआतमें पार्टी ने अपनी छवि एक हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में रखी. आमतौर पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को भारतीय जनता पार्टी के मातृसंस्था के रूप में देखा जाता है. देश के हिन्दी प्रांतों में पार्टी ने अपना काम शुरू किया. बतौर राजनीतिक पार्टी भाजपा के संगठन का काम लालकृष्ण आडवाणी देखते थे लेकिन पार्टी का चेहरा अटल बिहारी वाजपेयी थे. कई राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह सोची-समझी रणनीति के तहत था. अटल बिहारी वाजपेयी की छवि अपेक्षाकृत ज्यादा उदार थी. यह देश में मंडल कमीशन का दौर था. लिहाजा राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में सभी पार्टियां अपना अस्तित्व तलाश रही थी.
उन दिनों भाजपा के लिए खुद की प्रासंगिकता बनाये रखने की चुनौती थी. भाजपा ने हवा का रुख भांप लिया. लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण आंदोलन छेड़ दिया. पहले से ही जातिगत आंदोलन के माहौल में अब हिंदुत्ववादभी प्रमुख बिंदु बन चुकाथा.
जहां-जहां आडवाणीका रथ गया, वहां-वहांपार्टी का आधार बढ़ता गया. इस बीच 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मसजिद के विध्वंस की खबर ने पूरे देश को चौंका दिया. भाजपा अब देश की राजनीति में जगह बना चुकी थी. अब लोग इसे कांग्रेस के विकल्प के रूप में देख रहे थे. हालांकि अब भी इसकी लोकप्रियता हिंदी पट्टी तक ही सीमित थी.
भारतीय जनता पार्टी के मुख्य संगठनकर्ता आडवाणी ने युवाओं को आगे बढ़ाने का काम किया. उन दिनों अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन पार्टी के युवा नेता के रूप में देखे जाते थे. तमाम तरह की सक्रियता के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को एक हिंदू सवर्ण के पार्टी के रूप में देखा जाता था. भाजपा ने अपनी रणनीति बदली और इसमें ओबीसी, दलित, आदिवासी को शामिल करने का प्रयास किया.कल्याण सिंह इसके प्रमुख पिछड़ा चेहरा बने.इसी के तहत बंगारू लक्ष्मण को पहला दलित भाजपा अध्यक्ष बनाया गया. झारखंड में आदिवासी नेता के तौर पर बाबूलाल मरांडी को प्रोजेक्ट किया गया.
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1996 में अटलजी के नेतृत्व में केंद्र में पहली बार भाजपा की सरकार बनी, लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण यह सरकार 13 दिन ही रही. फिर 1998 में अटलजी दूसरी बार सरकार में आये.अपनी विकास यात्रा के इस मोड़ पर भाजपा ने अपनी सामाजिक-राजनीतिक स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए कई क्षत्रपों से गठजोड़ किया. इसमें समता पार्टी के नीतीश कुमार, बसपा की मायावती, बीजद के नवीन पटनायक आदि प्रमुख हैं. भाजपा की विकास यात्रा का एक अौर अहम पड़ाव रहा पहली बार दक्षिणी राज्य कर्नाटक में येदुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाना. पर, अपने विरोधाभाष के कारण यह सरकार नहीं चली.
आज भारतीय जनता पार्टी केंद्र में अपने दम पर सत्ता में है लेकिन अब भी बतौर राष्ट्रीय पार्टी के रूप में राजनीतिक पंडित उस पर कई सवाल उठाते हैं.आज नरेंद्र माेदी-अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा सबका साथ-सबका विकास का नारा लेकर अपनी विकास यात्रा के अगले चरण पर चल रही है. पश्चिम व उत्तर में अपने परचम लहराने के बाद अब वह पूरब और दक्षिण में भी अपना विजय पताका लहराने की कोशिश में जुटी है. देखिए, वक्त उसे कहां ले जाता है?

Prabhat Khabar Digital Desk
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