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नेताजी के पौत्र बर्लिन में प्रधानमंत्री मोदी से मिले

नयी दिल्ली : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जासूसी कराने के मामले में विवाद बढ़ता ही जा रहा है. बोस के परिवारवालों ने जासूसी पर दुख जताते हुए पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग की है. नेताजी के पौत्र सूर्य कुमार बोस बर्लिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार को मिल कर बोस से […]

नयी दिल्ली : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जासूसी कराने के मामले में विवाद बढ़ता ही जा रहा है. बोस के परिवारवालों ने जासूसी पर दुख जताते हुए पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग की है. नेताजी के पौत्र सूर्य कुमार बोस बर्लिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार को मिल कर बोस से जुड़ी 160 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग करेंगे. सूर्य हैम्बर्ग में भारत-जर्मन संघ के अध्यक्ष हैं. पारिवारिक सदस्य चंद्र कुमार बोस ने यह जानकारी दी है.

इस मामले पर भाजपा ने कांग्रेस पर जबरदस्त हमला बोला और कहा कि जासूसी कराना कांग्रेस के डीएनए में है. वहीं, कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर नेताजी से जुड़े चुनिंदा दस्तावेज लीक करने का आरोप लगाया. कहा कि सरकार ने नेहरू की छवि दागदार करने के चक्कर में भाजपा ने सरदार पटेल व देश के तीन महान नेताओं को कलंकित किया है.

नेहरू पर लगे जासूसी के आरोपों का बचाव करते हुए कांग्रेस ने सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, गोविंद बल्लभ पंत और कैलाशनाथ काटजू को भी कठघरे में खड़ा कर दिया. फॉरवड ब्लॉक और माकपा ने भी नेताजी की जासूसी मामले की जांच की मांग की है.
* सुभाष का पत्र
– मेरा जितना नुकसान नेहरू ने किया, उतना किसी ने नहीं
नेताजी ने अपने भतीजे अमिय नाथ को 1939 में लिखे पत्र में कहा था, मेरा किसी ने भी उतना नुकसान नहीं किया, जितना जवाहर लाल नेहरू ने किया. महात्मा गांधी की राजनीतिक विरासत के दोनों दावेदार थे. संपूर्ण आजादी को लेकर बोस के आग्रह से गांधी को दिक्कत थी. लिहाजा, उन्होंने नेहरू को अपना उत्तराधिकारी चुना. इसके बाद बोस कांग्रेस से अलग हो गये. नेहरू को बोस के नाजी जर्मनी और फासिस्ट इटली के प्रशंसक होने पर आपत्ति थी.
– नेहरू को बड़ा भाई मानते थे नेताजी
तमाम असहमतियों के बावजूद नेहरू को लेकर नेताजी के मन में कोई दुर्भावना नहीं थी. वे उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे. यहां तक कि आजाद हिंद फौज की एक रेजिमेंट ही नेहरू के नाम पर बना दी. नेहरू को जब वर्ष1945 में नेताजी की मौत की खबर मिली, तो वे सार्वजनिक रूप से रोये थे. इतिहासकार रुद्रांशु मुखर्जी की वर्ष 2014 में आयी किताब नेहरू एंड बोसरू पैरेलल लाइन्स कहती है, बोस मानते थे कि वे और नेहरू मिल कर इतिहास बना सकते थे. लेकिन, जवाहर लाल को गांधी के बगैर अपनी नियति नहीं दिखती थी, जबकि गांधी के पास सुभाष के लिए कोई जगह नहीं थी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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