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नेतृत्व हड़पने की जल्दी में हैं योगी आदित्यनाथ

-राहुल सिंह-दो दशक पहले 1994 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिरपरिसर में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा लेने वालेयोगी आदित्यनाथ आज उत्तरप्रदेश में भाजपा का राजनीतिकनेतृत्व हासिल करने की कवायद में लगे हैं. यूं तोउनके बयान से हमेशा विवाद उत्पन्न होता रहा है, लेकिनकेंद्र में भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार आने वउत्तरप्रदेश में भाजपा […]

-राहुल सिंह-

दो दशक पहले 1994 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिरपरिसर में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा लेने वालेयोगी आदित्यनाथ आज उत्तरप्रदेश में भाजपा का राजनीतिकनेतृत्व हासिल करने की कवायद में लगे हैं. यूं तोउनके बयान से हमेशा विवाद उत्पन्न होता रहा है, लेकिनकेंद्र में भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार आने वउत्तरप्रदेश में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिलने के बाद

उनके तेवर अधिक तीखे हो गये हैं. उनके लिए उत्तरप्रदेशमें पार्टी के नेतृत्व के प्रबल दावेदार वरुण गांधी कोहाशिये पर भेजा जाना भी एक शुभ संकेत माना जा रहाहै.योगी के निशाने पर हमेशा सीधे तौर पर सपा प्रमुखमुलायम सिंह यादव, उनके बेटे अखिलेश यादव व मंत्री आजमखान रहते हैं. वे तीखे सांप्रदायिक बयानों से परहेजनहीं करते और उसे हिंदुत्व का चोला पहना कर आसानी से

बच भी निकलते हैं. योगी पर ताजा आरोप लखनऊ मेंबिना अनुमति रैली को संबोधित करने का है, जिसके बादचुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी किया है. उन्होंनेकहा है कि आयोग को उन्होंने अपना जवाब दे दिया है,लेकिन हिंदुत्व की बात वे आगे भी करते रहेंगे.योगी का अपना राजनीतिक आकलन है कि 13 सितंबर कोराज्य की 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में

अगर भाजपा 10 सीटें जीत लेती है, तो जल्द ही उत्तरप्रदेशकी अखिलेश यादव सरकार गिर जायेगी और राज्य में 2015

में विधानसभा चुनाव होगा. हालांकि मौजूदा विधानसभा काकार्यकाल 2017 में पूरा होना है और उसी समय चुनाव भी

होना है.युवा आदित्यनाथ पहली बार 1998 में 12वीं लोकसभा के लिएचुने गये थे और तब से लगातार वे अपनी सीट गोरखपुर

से चुने जाते रहे हैं. दिलचस्प यह कि 1999 के अपवाद कोछोड़ कर योगी की जीत का अंतर हर चुनाव में बढ़ जाताहै. 2004 में वे 1.42 लाख, 2009 में 2.20 लाख मतों से जीते तोइस बार 3.12 लाख मतों से विजयी हुए हैं. नि:संदेह इससे उनका राजनीतिक कद भी बढ़ा है.

उत्तरप्रदेश भाजपा का उभरता नेतृत्व!

राज्य की राजनीति में कल्याण सिंह के पराभव के बादउत्तरप्रदेश भाजपा लगातार हाशिये पर जाती रही. राज्यके प्रमुख नेताओं द्वारा लगातार की गयी राजनीतिकगलतियों की वजह से उत्तरप्रदेश की राजनीतिविभाजनकारी हो चुकी है. पूर्व में उत्तरप्रदेश की

राजनीति में जातीय विभाजन चरम पर था, लेकिन अबवहां धार्मिक विभाजन चरम पर है. ऐसे राजनीतिकहालात योगी आदित्यनाथ जैसे राजनेता के उभरने केउर्वर भूमि का काम करता है.राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा था कि भाजपा

उत्तरप्रदेश में वरुण गांधी को नेता को तौर पर प्रस्तुतकरेगी, लेकिन भाजपा में नरेंद्र मोदी व अमित शाह कावर्चस्व बढ़ने के बाद हालात बदल गये हैं. पार्टी अध्यक्षशाह की टीम में वरुण गांधी को जगह नहीं दी गयी. इससेभी यह संकेत मिलता है कि शायद भाजपा वरुण की जगहयोगी के नेतृत्व को भी उत्तरप्रदेश में अगले विधानसभाचुनाव के मद्देनजर उभारेगी. इस बार उत्तरप्रदेश को

भाजपा आस्था व धार्मिक स्वरूप वाले हिंदुत्व से नहीं बल्किउसके सामाजिक ढांचे की आड़ में लव जेहाद जैसेजुमलों के सहारे फतह करने की कोशिश में जुटी है.

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