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असम के बोडो क्षेत्रों में स्थायी शांति के लिए सरकार, एनडीएफबी, एबीएसयू के बीच समझौता

नयी दिल्ली : असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में स्थायी शांति लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने सोमवार को असम के खूंखार उग्रवादी समूहों में से एक नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और दो अन्य संगठनों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसमें राजनीतिक और आर्थिक फायदे दिये गये हैं, लेकिन अलग राज्य […]

नयी दिल्ली : असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में स्थायी शांति लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने सोमवार को असम के खूंखार उग्रवादी समूहों में से एक नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और दो अन्य संगठनों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसमें राजनीतिक और आर्थिक फायदे दिये गये हैं, लेकिन अलग राज्य या केंद्रशासित क्षेत्र की मांग पूरी नहीं की गयी है.

समग्र बोडो समाधान समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (यूबीपीओ) भी शामिल हैं. एबीएसयू 1972 से ही अलग बोडोलैंड राज्य की मांग के लिए आंदोलन चला रहा था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में त्रिपक्षीय समझौते पर एनडीएफबी के चार धड़ों, एबीएसयू, यूबीपीओ के शीर्ष नेताओं, गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग और असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्णा ने हस्ताक्षर किये. असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी समझौते पर गवाहों में से एक के रूप में हस्ताक्षर किये.

समझौते पर हस्ताक्षर होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह समझौता शांति, सद्भाव और एकजुटता की नयी सुबह लेकर आयेगा और जो लोग सशस्त्र संघर्ष समूहों से जुड़े हुए थे वे मुख्यधारा में शामिल होंगे और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देंगे. उन्होंने कहा कि इस समझौते के बोडो लोगों के लिए परिवर्तनकारी परिणाम होंगे क्योंकि यह प्रमुख पक्षकारों को एक साथ एक प्रारूप में लेकर आयेगा और बोडो लोगों की पहुंच विकास केंद्रित पहल तक होगी. प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, शांति, सद्भाव और एकजुटता की नयी सुबह. आज भारत के लिए एक बेहद खास दिन. बोडो समूहों के साथ आज जिस समझौते पर दस्तखत किये गये, बोडो लोगों के लिए उसके परिवर्तनकारी परिणाम होंगे.

गृह मंत्री ने समझौते को ऐतिहासिक करार दिया और कहा कि इससे बोडो लोगों की दशकों पुरानी समस्या का स्थायी समाधान होगा. उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद कहा, इस समझौते से बोडो क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास होगा और असम की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किये बगैर उनकी भाषा और संस्कृति का संरक्षण होगा. गृह मंत्री ने कहा कि बोडो उग्रवादियों की हिंसा में पिछले कुछ दशकों में चार हजार से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी. शाह ने कहा कि असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जायेगी.

एनडीएफबी पिछले कुछ दशकों में सिलसिलेवार हिंसक कृत्यों के लिए जिम्मेदार रहा है जिनमें दिसंबर 2014 में लगभग 70 आदिवासियों की हत्या भी शामिल है. शाह ने कहा, असम की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखते हुए मांगों का एक अंतिम और समग्र समाधान हो चुका है. समझौते पर हस्ताक्षर के बाद एनडीएफबी के धड़े हिंसा का रास्ता छोड़ेंगे, अपने हथियार डाल देंगे और समझौते के एक महीने के भीतर उनके सशस्त्र संगठन भंग कर दिये जायेंगे. असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि समझौते के बाद राज्य में विभिन्न समुदाय सौहार्द के साथ रह सकेंगे और इससे उज्ज्वल भविष्य की नींव पड़ेगी, लोगों की आकांक्षाएं पूरी होंगी.

उन्होंने कहा, असम की शांति और प्रगति के लिए एक ऐतिहासिक दिन. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दिशा-निर्देशन और नेतृत्व में त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर से दशकों पुराने एक संघर्ष का समाधान हो गया है तथा असम की क्षेत्रीय अखंडता की स्थायी रूप से पुन: पुष्टि हुई है. केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि समझौते से बोडो मुद्दे का समग्र समाधान होगा. उन्होंने कहा, यह ऐतिहासिक समझौता है. असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि समझौते के मुताबिक एनडीएफबी के 1,550 उग्रवादी 30 जनवरी को हथियार छोड़ देंगे, अगले तीन वर्षों में 1,500 करोड़ रुपये का आर्थिक कार्यक्रम लागू किया जायेगा जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों की 750-750 करोड़ रुपये की बराबर भागीदारी होगी. केंद्र और राज्य सरकार एनडीएफबी (पी), एनडीएफबी (आरडी) और एनडीएफबी (एस) के लगभग 1,550 कैडरों का पुनर्वास करेंगी.

शर्मा ने कहा कि बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के वर्तमान ढांचे को और शक्तियां देकर मजबूत किया जायेगा तथा इसकी सीटों की संख्या 40 से बढ़ाकर 60 की जायेगी. बोडो बहुल गांवों को बीटीसी में शामिल करने, गैर बोडो बहुल गांवों को इससे बाहर करने के लिए एक आयोग का गठन किया जायेगा. यह पिछले 27 वर्षों में तीसरा बोडो समझौता है. पहला समझौता 1993 में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के साथ हुआ था जिसका परिणाम सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के रूप में निकला. दूसरा समझौता 2003 में उग्रवादी समूह ‘बोडो लिबरेशन टाइगर्स’ के साथ हुआ था जिसका परिणाम असम के चार जिलों कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदलगुड़ी को मिलाकर बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के गठन के रूप में निकला. इन चारों जिलों को बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिला (बीटीएडी) कहा जाता है.

सोमवार को हुए समझौते के अनुसार, बीटीएडी का नाम बदलकर अब बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) होगा और इसके पास अधिक कार्यकारी, प्रशासनिक, विधायी तथा वित्तीय शक्तियां होंगी. बीटीसी का इस समय शिक्षा, वन, बागवानी जैसे 30 से अधिक क्षेत्रों पर नियंत्रण है, लेकिन पुलिस, राजस्व और सामान्य प्रशासनिक विभागों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है और ये असम सरकार के नियंत्रण में हैं. बीटीसी का गठन संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत किया गया था. असम सरकार जल्द ही बोडो भाषा को राज्य की एक सह-आधिकारिक भाषा के रूप में देवनागरी लिपि में अधिसूचित करेगी.

समझौते में कहा गया है कि पृथक राज्य के लिए हुए आंदोलन में मारे गये लोगों के परिजनों को राज्य सरकार पांच-पांच लाख रुपये देगी और एनडीएफबी के सदस्यों के खिलाफ गैर जघन्य आपराधिक मामलों को वापस लिया जायेगा, जबकि जघन्य अपराधों की मौजूदा नियमों के अनुरूप मामले दर मामले के आधार पर समीक्षा की जायेगी. बोडो संगठन लगभग पांच दशक से पृथक राज्य की मांग करते रहे हैं.

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