नयी दिल्ली : भारत औऱ पाकिस्तान के बीच चार बार युद्ध हुआ .आजादी मिलने के कुछ हफ्ते बाद ही कश्मीर को लेकर हुई लड़ाई को भारत पाकिस्तान का पहला युद्ध माना जाता है. साल 1965 में पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर’ की वजह से युद्ध हुआ. तीसरा युद्ध पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के लिए 1971 में हुआ. पाकिस्तान के साथ आखिरी युद्ध 1999 का कारगिल युद्ध हुआ.
इनके अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच छद्म युद्ध होता रहा है. पाकिस्तान की जेल में कई ऐसे भारतीय युद्धबंदी रहे जिनका अबतक पता नहीं चला. पाकिस्तान ने जासूसी के आरोप में भी कई भारतीयों को पकड़ रखा है. अबतक यह आंकड़ा नहीं आया कि भारत के कितने सैनिक पाकिस्तानी जेल में बंद हैं. इन युद्धबंदी को लेकर कई कहानियां है. उनमें से कुछ कहानियां हम आपके लिए लेकर आये हैं. ये उन लोगों की कहानियां हैं, जो पाकिस्तान की जेल में बंद रहे, यातनाएं झेली.
पाकिस्तानी जेल की चारदीवारी में बंद हैं कई जाबांज कहानियां
पाकिस्तान जेल में भारत के कितने युद्धबंदी है इसे लेकर अबतक स्थिति साफ नहीं है. एक आकड़े के अनुसार भारतीय सेना के 24 युद्धबंदी हैं जिनमें 1965 के युद्ध के वक्त के तीन और 1971 युद्ध के 21 युद्धबंदी हैं. जाहिर है अभी भी कई ऐसे भारतीय जवान हैं जिनके जांबाजी की कहानी पाकिस्तानी जेल की चारदीवारी में बंद हैं. साल 2007 में युद्ध बंदियों की पहचान के लिए रक्षाकर्मियों के साथ युद्धबंदियों के परिवार वालों को भेजा गया.14 संबंधियों ने 10 जेल का दौरा किया लेकिन इनका कोई सुराग नहीं मिला. बीएसएफ के हुंजुरा सिंह भी हैं जिनके परिजनों का पता नहीं चला.
याद आती है नचिकेता की…
साल 1999 में करगिल युद्ध के दौरान वायुसेना के ग्रुप कैप्टन नचिकेता भी पाकिस्तानी सीमा में फंस गये थे. इस बार की तरह उस वक्त भी पाकिस्तान पर अतंरराष्ट्रीय दबाव था. उन्हें अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते 8 दिन बाद रिहा कर दिया गया. नचिकेता ने किसी तरह की जानकारी देने से इनकार कर दिया था. पाक सेना की अत्याचार के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी फ्रैक्चर हो गयी थी. नचिकेता के पिता केआरके शास्त्री और मां के लक्ष्मी शास्त्री आंध्र प्रदेश के मूल निवासी हैं और फिलहाल दिल्ली में रहते हैं.
जांघों में सिगरेट से जलाते थे पाकिस्तानी
युद्धबंदियों के साथ एक सैनिक की तरह सलूक किया जाता है लेकिन पाकिस्तान युद्धबंदियों के साथ क्रूरता करता रहा है. एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया पांच महीने तक पाकिस्तानी जेल में बंद रहे. इन पांच महीनों में उन्हें कई तरह की यातनाएं झेलनी पड़ी. 2011 में इन्होंने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में अपने साथ हुई यातनाओं का जिक्र किया. आदित्य ने बताया, उनकी जांघों को सिगरेट से जला दिया गया था. सर्दियों में उन्हें नंगे बदन जमीन पर सुलाया जाता था. इतना मारा जाता था कि शरीर की हड्डियां तोड़ देते थे. आदित्य विक्रम पेठिया के हाथों को चारपाई के नीचे दबाकर उसके ऊपर कूदा जाता था. वे आगे बताते हैं कि हमे राइफल के बट लेकर टेबल टेनिस के रैकेट तक से पीटा जाता था. आदित्य जब वापस लौटे तो उनका फेफड़ा खराब हो गया था और हड्डियां टूट गई थीं. उनकी वतन वापसी हुई तो वह टीबी से पीड़ित थे.
पाक जेल से भाग निकले थे, विंग कमांडर दिलीप पारुलकर और उनके दो साथी
दिलीप कुमार उन जांबाज़ भारतीय पायलटों में से एक थे, जो पाकिस्तान की कैद से बच निकलने में कामयाब रहे थे लेकिन दोबारा उन्हें पकड़ लिया गया. सेल नंबर 5 की दीवार में 21 बाई 15 इंच का छेद किया किया गया. यह सुराख पाकिस्तानी वायु सेना के रोज़गार दफ़्तर के अहाते में खुलता था. इसके बाद 6 फुट की दीवार छलांग कर वो भाग निकले . 10 दिसंबर 1971 को पूर्वी लाहौर के पास स्थित एक राडार स्टेशन को ध्वस्त करने के चक्कर में दिलीप के सुखोई-7 विमान को मार गिराया गया और दिलीप लाहौर में जा गिरे.
दिलीप को पाकिस्तान ने कैद कर लिया और घोर यातनाएं दीं. वहां से बच निकलने का प्लान बनाया, जिसमें उनका साथ दो अन्य भारतीय पायलटों – एम एस गरेवाल और हरीश सिंह भी शामिल थे. 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वंत्रतता दिवस था उससे दो दिन पहले यह जेल से भाग निकले लेकिन यहां से भागकर वह लंडी कोतल पहुंच गये और अफ़गानिस्तान वहाँ से सिर्फ़ 5 किलोमीटर दूर था. "क्या आप लंडीखाना जाना चाहते हैं? उन्होंने जब "हाँ" कहा तो उसने पूछा "आप तीनों कहाँ से आए हैं? उस शख़्स की आवाज़ कड़ी हो गई. वो बोला, "यहाँ तो लंडीखाना नाम की कोई जगह है ही नहीं… वो तो अंग्रेज़ों के जाने के साथ ख़त्म हो गई."वो उन्हें तहसीलदार के यहाँ ले गया. तहसीलदार भी उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ और उसने कहा कि हमें आप को जेल में रखना होगा. यहीं तीनों पकड़े गये. एक दिसंबर, 1972 को सारे युद्धबंदियों ने वाघा सीमा पार की.
मिलती हैं अभिनंदर और धीरेंद्र सिंह जाफा की कहानी
विंग कमांडर अभिनंदन और विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जाफा की कहानी मिलती जुलती है. जाफा का सुखोई विमान भी पाकिस्तान में गिरा जब वह लाहौर में बमबारी कर रहे थे . जाफा पैराशूट की वजह से बच निकले वहां उन्हें पाकिस्तानियों ने पकड़ लिया उनके साथ मारपीट की और उनके पास मौजूद जरूरी सामान भी लूट लिया. पाकिस्तानी सेना ने उन्हें असहनीय यातनाएं दी. इन यातनाओं के बावजूद जाफा ने खुद को टूटने नहीं दिया
पाक जेल में फंसे हैं कुलभूषण
कुलभूषण पाकिस्तान की जेल में बंद हैं. उन पर पाक में रहकर जासूसी करने का आरोप लगाया गया है. पाकिस्तानी की सैन्य अदालत ने उन्हें फांसी की सजा दी है जिसे भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस को चुनौती दी है. इस केस पर सुनवाई हो रही है. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में भारत का पक्ष बेहद मज़बूत है. अगर भारत यह केस जीत जाता है तो भारतीय विदेश नीति के लिए यह इतिहास की सबसे बड़ी जीत होगी.
जेनेवा सम्मेलन क्या है, जानिये क्या मिले हैं अधिकार
जेनेवा कन्वेंशन (1949) अंतरराष्ट्रीय संधियों का एक सेट है, जिसमें चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल शामिल हैं. यह सुनिश्चित करता है कि युद्ध में शामिल सभी पक्ष नागरिकों और मेडिकल कर्मचारियों के साथ अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मानवीय व्यवहार करेंगे. दूसरे शब्दों में कहें तो यह कैदियों के युद्धकालीन बुनियादी अधिकारों (नागरिक और सैन्य) को परिभाषित करता है.
युद्ध बंदियों के अधिकार क्या हैं
युद्ध के दौरान अगर कोई सैनिक शत्रु देश की सीमा में दाखिल हो जाता है और उसे गिरफ्तार किया जाता है तो वह युद्धबंदी माना जाएगा और शत्रु पक्ष उन्हें डरा-धमका या अपमानित नहीं कर सकता. कन्वेंशन यह प्रावधान भी करता है कि ऐसा कुछ भी न किया जाए, जिससे आम लोगों में उनके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़े.
विंग कमांडर अभिनंदन के संदर्भ में संधि के उल्लंघन की बात इसलिए भी सामने आ रही है, क्योंकि सोशल मीडिया पर उनके कई वीडियो सामने आए हैं . जेनेवा कन्वेंशन के तहत युद्धबंदियों को किसी तरह की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना नहीं दी जा सकती और न ही उन्हें किसी तरह की सूचना देने के लिए शारीरिक या मानसिक तौर पर बाध्य किया जा सकता है. उनके साथ किसी भी तरह की जोर-जबरदस्ती निषेध है. अगर वह किसी सवाल का जवाब न देना चाहे तो उन्हें इसके लिए दंडित नहीं किया जा सकता और न ही उनका इस्तेमाल मानवीय ढाल (human shield) की तरह किया जा सकता है. हालांकि पकड़े जाने की स्थिति में युद्धबंदियों को अपना नाम, सैन्य पद और नंबर बताना होगा
युद्ध समाप्त होने के बाद देश को वापस लौटाया जाता है
संधि के प्रावधानों के तहत युद्धबंदियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का प्रावधान है. साथ ही एक विकल्प यह भी है कि युद्ध समाप्त हो जाने के बाद उन्हें संबंधित देश को वापस लौटा दिया जाए. संघर्षरत पक्षों को गंभीर रूप से घायल या बीमार सैनिकों को ठीक हो जाने के बाद उनके देश भेजना होगा. विभिन्न पक्ष इस बारे में समझौता कर सकते हैं और युद्धबंदियों की रिहाई या नजरबंदी के बारे में एक आम राय कायम कर सकते हैं. यहां उल्लेखनीय है कि 1971 के युद्ध के दौरान 80,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के सामने समर्पण कर दिया था, जिन्हें भारत ने 1972 के शिमला समझौते के तहत रिहा कर दिया था. विंग कमांडर अभिनंदन के संदर्भ में भी पाकिस्तान पर यह बात लागू होती है.