नयी दिल्ली : वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की शनिवार को राजधानी में हुई बैठक में दलगत राजनीति भी खुल कर सामने आयी. सूत्रों के अनुसार, इसमें विपक्षी दलों की सरकार वाले राज्यों के वित्त मंत्रियों ने राजस्व की तंगी का उल्लेख करते हुए कर की दरों में कटौती का पहले विरोध किया, पर भाजपा के एक मंत्री के रुख और वित्त मंत्री अरुण जेटली के हस्तक्षेप के बाद वे अंतत: कटौती को राजी हो गये.
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भाजपा के एक मंत्री ने कहा कि बैठक में मंत्रियों के बयानों को रिकॉर्ड किया जाये और उसकी तुलना उनके बाहर दिये जाने वाले बयानों से की जाये. बैठक में छत्तीसगढ़ और राजस्थान की ओर से केवल अधिकारी आये थे, क्योंकि वहां हाल में नयी सरकारों ने शपथ ली है. मध्य प्रदेश से कोई प्रतिनिधि नहीं था. बैठक में 23 वस्तुओं और सेवाओं पर कर की दर में कटौती की गयी. इससे खजाने पर 5,500 करोड़ रुपये सालाना का प्रभाव पड़ने का अनुमान है.
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सूत्रों ने कहा कि विपक्षी राज्यों की ओर से कर में कटौती का विरोध किया गया. उनका कहना था कि इस समय कटौती की जाती है, तो केंद्र को राजस्व में हानि की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था पहले से तय पांच साल की अवधि से आगे भी जारी रखना चाहिए. सूत्रों के अनुसार, केरल की ओर से कहा गया कि आमदनी नहीं बढ़ रही है. ऐसे में, कर कटौती उचित नहीं है. पश्चिम बंगाल ने भी कुछ इसी तरह की दलील पेश की.
हालांकि भाजपा शासित असम के प्रतिनिधि ने कहा कि विपक्ष के सभी मंत्री कहते रहते हैं कि जीएसटी की 28 फीसदी की दर को घटाकर 18 फीसदी किया जाना चाहिए, लेकिन परिषद की इस बैठक में वे कटौती का विरोध कर रहे थे. असम के इस मंत्री ने कहा कि विपक्ष शासित सभी राज्यों के रुख को बैठक की कार्यवाही के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाये, ताकि भविष्य में उनके भाषणों से उसकी तुलना की जा सके.
समझा जाता है कि इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हस्तक्षेप किया और कहा कि मंत्रियों की इस बैठक में कही गयी बातों पर ही गौर किये जाने की जरूरत है. सूत्रों के अनुसार, बाद में विपक्ष शासित राज्यों के मंत्री इस मुद्दे पर चर्चा और दर समायोजन समिति (अधिकारियों की समितियों) के सुझावों के अनुसार फैसला करने के लिए सहमत हो गये.