नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने उच्चतर न्यायपालिका के समक्ष संस्थागत मुद्दों पर चर्चा करने के लिए प्रधान न्यायाधीश से पूर्ण अदालत की बैठक बुलाने का अनुरोध किया है.
यह पत्र प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए विपक्ष की ओर से दिये गये नोटिस को राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू के खारिज करने के एक दिन पहले लिखा गया. ऐसा समझा जाता है कि पत्र में उठाये गये मुद्दों पर सोमवार को चाय पर बुलायी गयी बैठक में चर्चा हुई. इस बैठक में सभी न्यायाधीशों ने हिस्सा लिया था. इसकी वजह से अदालत की कार्यवाही 15 मिनट की देरी से शुरू हुई थी. सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति लोकुर ने 22 अप्रैल को दो लाइन के संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर किये. इसमें उन्होंने ‘पूर्ण अदालत’ की बैठक बुलाने की बात कही थी.
इसी मुद्दे को 21 मार्च को न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने पहली दफा उठाया था. इसके बाद न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ ने नौ अप्रैल को इसी तरह का पत्र लिखा था. उन्होंने शीर्ष अदालत से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिए सात सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों की पीठ बनाने की मांग की थी. उन्होंने बताया कि न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति लोकुर द्वारा लिखे गये संक्षिप्त पत्र में सीजेआई से सांस्थानिक मुद्दों और शीर्ष अदालत के ‘भविष्य’ पर चर्चा करने के लिए न्यायिक पक्ष की तरफ से पूर्ण अदालत की बैठक बुलाने का अनुरोध किया गया. परिपाटी के अनुसार उच्चतम न्यायालय की पूर्ण अदालत की बैठक में सभी न्यायाधीश शामिल होते हैं. इस तरह की बैठक सीजेआई आम तौर पर न्यायपालिका से संबंधित सार्वजनिक महत्व के मामलों पर चर्चा के लिये बुलाते हैं.
सोमवार की सुबह चाय पर बैठक नायडू द्वारा महाभियोग नोटिस को खारिज करने की घोषणा किये जाने के तुरंत बाद बुलायी गयी थी. सूत्रों ने बताया कि सीजेआई ने बैठक के नतीजे और खासतौर पर पूर्ण अदालत की बैठक के संबंध में कुछ भी नहीं कहा. हालांकि, न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति लोकुर की राय थी कि महाभियोग के मुद्दे को पीछे छोड़कर आगे बढ़ा जाना चाहिए और सर्वोच्च न्यायपालिका के समक्ष मुद्दों का हल निकालने के लिए न्यायाधीशों के बीच चर्चा होनी चाहिए. न्यायमूर्ति गोगोई अगले सीजेआई हो सकते हैं. प्रधान न्यायाधीश मिश्रा दो अक्तूबर को सेवानिवृत्त होनेवाले हैं.
एक न्यायाधीश को पदोन्नत करने और एक वरिष्ठ महिला अधिवक्ता की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति किये जाने के संबंध में कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी देने में सरकार की ओर से विलंब से नाराज न्यायमूर्ति जोसफ ने सीजेआई को पत्र लिखकर दावा किया था कि संस्थान का अस्तित्व खतरे में हैं और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है. उन्होंने सीजेआई से नियुक्ति के मामले को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने के लिए सात सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों की पीठ गठित करने का अनुरोध किया था. सभी न्यायाधीशों को 21 मार्च को भेजे गये अपने पत्र में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने सीजेआई से न्यायपालिका में कार्यपालिका के कथित हस्तक्षेप के मुद्दे पर चर्चा के लिए पूर्ण अदालत की बैठक बुलाने का अनुरोध किया था.