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घोघा में प्रधानमंत्री मोदी ने जिन मोखडाजी दादा के नारे लगवाये, उन्होंने किये थे बिन तुगलक के दांत खट्टे

अहमदाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुजरात के भावनगर जिले के घोघा बंदरगाह पहुंचे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने वहां एक जनसभा को संबोधित किया और इस दौरान गुजरात के लिए विकास कार्यों का उल्लेख किया. इस संबोधन के दौरान उन्होंने कई बार एक महापुरुष का नाम लिया. यह नाम – मोखडाजी दादा है. प्रधानमंत्री […]

अहमदाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुजरात के भावनगर जिले के घोघा बंदरगाह पहुंचे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने वहां एक जनसभा को संबोधित किया और इस दौरान गुजरात के लिए विकास कार्यों का उल्लेख किया. इस संबोधन के दौरान उन्होंने कई बार एक महापुरुष का नाम लिया. यह नाम – मोखडाजी दादा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंत में इनके सम्मान में नारे लगाये और लोगों से लगवाये. उन्होंनेसमुद्रमें जाने वाले लोगों व मल्लाहों से कहा कि जैसे आप मोखडाजी को नारियल चढ़ा कर समुद्र में जाते हैं, वैसे ही मैं मोखडाजी दादा को नारियल चढ़ा कर जाऊंगा और फेरी सर्विस की शुरुआत करूंगा, ताकि उनका आशीर्वाद हम पर बना रहे. गुजरात विधानसभा चुनाव के ऐन पहले प्रधानमंत्री मोदी गुजरात का लगतार दौरा कर रहे हैं और वे स्थानीय संस्कृति, स्थानीय महापुरुषों का प्रमुखता से उल्लेख कर रहे हैं और लोगों में गरवी गुजरात यानी गौरवशाली गुजरात का अहसास भर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने आज जिन मोखडा जी के सम्मान में नारे लगवाये और अपने भाषण में उनका बारंबार उल्लेख किया, वे घोघा पर शासन करने वाले एक राजपूत राजा थे, जिनकी वीरता की कथाएं गुजरात के उस तटीय क्षेत्र में आजभी बड़े पैमाने पर सुनायीजाती हैं. उनके वहां मंदिर भी हैं.

छोटी जागीर से पराक्रमी योद्धा तक का सफर

मोखडाजी दादा का नाम मोखडाजी गोहिल था और उनका समय 1309 से 1347 के बीच का था. वे सेजाकाजी गोहिल के वंशज थे जो 13वीं सदी के मध्य में विस्थापित होकर सौराष्ट्र आये थे. उनके पिता की अहमदाबाद के निकट एक छोटी जागीर थी. इससे पूर्व इनके पूर्वज राजस्थान से गुजरात आये थे. मोखडाजी गोहिल मोहम्मद बिन तुगलक के समकालीन थे, जिसने दिल्ली में तुगलाक साम्राज्य की स्थापना की थी और 1325 से 1351 तक शासन किया था.

मोखडाजी गोहिल ने अपने शासन में घोघा पर कब्जा किया औरपिरामद्वीपको अपनी राजधानी बनाया.अपेक्षाकृत एक छोटे क्षेत्र के राजा होने पर भी उनका पराक्रम अद्भुत था. उन्हें एक समय जानकारी मिली कि खंभात बंदरगाह के जरिये दिल्ली सत्लनत का खजाना ले जाया जा रहा है, तो उनकी नौसेना ने उस पूरी संपदा को लूट लिया. मोखडाजी ने इस धन व संपदा का उपयोग अपनी जल सेना को मजबूत करने में किया. कुछ समय बाद उन्होंने जेठवा राजपूत के इलाके पर कब्जा कर लिया और फिर उनकी पुत्री से विवाह किया. हालांकि उन्होंने राजपिपला की राजकुमारी से भी शादी की थी. मोखडाजी की ऐसी वीरता ने उन्हें लोकप्रिय बनाया. उन्होंने जल्द ही खंभात से लेकर सोमनाथ तक पूरे समुद्र तट पर अपना कब्जा कर लिया. उन्होंने पिराम व चाच द्वीप पर अपनी जल सेना मजबूत की. उनके पराक्रम ने दिल्ली सल्तनत को परेशान कर दिया.

दिल्ली सल्तनत के विदेश व्यापार में बढ़ा दी दिक्कत

दिल्ली सल्तनत के लिए खंभात व भरूच बंदरगाह से विदेश व्यापार करने में बहुत दिक्कतें आने लगीं. ऐसे में मोखडाजी से लड़ने के लिए एक सेना भेजने का निर्णय हुआ. दिल्ली सल्तनत की सेना ने सोचा की उनकी राजधानी पिराम द्वीप को चारों ओर से घेर लिया जाये ताकि उन्हें युद्ध में हराना या नियंत्रित कराना आसान हो जाये, लेकिन मोखडाजी ने उन्हें बुरी तरह हराया. दिल्ली सल्तनत की सेना को समुद्री युद्ध की कोई जानकारी ही नहीं थी और मोखडाजी ने अपनी सेना को इस कार्य में पारंगत कर रखा था.

इससे दिल्ली सल्तनत पर राज करने वाला मुहम्मद बिन तुगलक स्वयं को अपमानित महसूस करने लगा और उसने निर्णय किया कि वह स्वयं घोघा जायेगा और तबतक वहां से नहीं हटेगा जब तक वह मोखडाजी को मार नहीं देगा. पर, आरंभिक महीनों में उसे इसमें सफलता नहीं मिली. बिन तुगलक को यह अहसास हो गया कि वह अपनी विशाल सेना के बावजूद मोखडाजी को हरा नहीं सकता जबतक जमीन पर युद्ध न हो. ऐसे में बिन तुगलक ने खंभात के एक बड़े व्यापारी को मोखडाजी के पास भेजने का निर्णय लिया, जिससे यह कहलवाया गया कि सल्तनत की सेना की तैनाती के कारण स्थानीय लोग बहुत परेशान हैं और वे असहज स्थिति का सामना कर रहे हैं और सुल्तान की सेना तबतक वहां रहेगी जबतक आप उनसे वहां जाकर युद्ध नहीं करते हैं. ऐसे में मोखडाजी ने अपनी जनता केहितके लिए समुद्र के तट पर जाकर युद्ध करने का निर्णय लिया.

समुद्र तट पर युद्ध हुआ, जहां मोखडाजी बुरी तरह घायल हो गये, लेकिन वे युद्ध करते रहे. 1347 ईस्वी में घोघा में मोखडाजी की गर्दन काट दी गयी और खादरपार गांव के निकट उनकी मौत हो गयी. कहते हैं कि बुरी तरह उनके कटे सिर को देखकर मुहम्मद बिन तुगलक बहुत बेचैन हो गया था और कई रात सो नहीं सका था.

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