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मायावती के इस्तीफे से बदल सकती हैं राजनीति की फिजा, मोदी-शाह को होना होगा सावधान

नयी दिल्ली : मायावती ने अपनी राजनीतिक पुनर्वापसी के लिए कल तुरूप का पत्ता चला और राज्यसभा की सदस्यता से एक झटके में इस्तीफा दे दिया. दोपहर में राज्यसभा में मायावती गुस्साईं, शाम होते-होते इस्तीफा दे दिया और फिर देर शाम राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने उनका न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि […]

नयी दिल्ली : मायावती ने अपनी राजनीतिक पुनर्वापसी के लिए कल तुरूप का पत्ता चला और राज्यसभा की सदस्यता से एक झटके में इस्तीफा दे दिया. दोपहर में राज्यसभा में मायावती गुस्साईं, शाम होते-होते इस्तीफा दे दिया और फिर देर शाम राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने उनका न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि उन्हें बिहार से राज्यसभा में भेजे जाने का भी भरोसा दिलाया. एक सहज सवाल उठता है कि यह स्थिति क्या बताती है? इसका जवाब भी बड़ा सीधा-सा है. जब बाढ़ आयी हो तो उसमें फंसे लोगों को उसे पार करने के लिए एक-दूसरे का हाथ मजबूती से थामना चाहिए. यह कड़ी जितनी मजबूत होगी, जितनी बड़ी हाेगी, बाढ़ में डूबने काखतरा उतनाहीकमहोगा और उससे पारपा लेने की संभावना उतनीही मजबूत होगी. मायावतीके समर्थन में आकर लालू इसी सिद्धांत को अमल में लाना चाहते हैं, जो अपने पूरे परिवार के साथ सीबीआइ-इडी के फेर में पड़े हुए हैं. और यह बाढ़ नरेंद्र मोदी-अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपा की विचारधारा व जनाधार की मजबूती का है, जिसमें विपक्ष के अधिकतर दल पस्त-बेबस नजर आ रहे हैं.


क्या मायावती के इस्तीफे में छिपी है पुनर्वापसी की राह?

मायावती उत्तरप्रदेश से आती हैं, जहां आज मोदी-शाह के भाजपा की सबसे अधिक मजबूत राजनीतिक पकड़ है. कभी अपनी मजबूत पकड़ वाले इस राज्य में मायावती शून्य लोकसभा सीट व 19 विधानसभा सीट के साथ हाशिये पर खड़ी हैं. जबकि एक वह दौरा भी होता था, जब बसपा यह सपना देखती थी कि अगर उसे 50 या इससे ज्यादा सीटें आ जाये तो त्रिशंकु स्थिति का लाभ लेते हुए मायावती प्रधानमंत्री बन सकती हैं.

मायावती ने राज्यसभा के सभापति को भेजे अपने इस्तीफे में जिक्र किया है कि उन्होंने 2003 में बसपा व भाजपा की मिलीजुली सरकार में भाजपा द्वारा अपनी पार्टी की विचारधारा व सिद्धांतों में दखल देता हुआ देख कर 15 महीने में ही मुख्यमंत्री पद से व इस संयुक्त सरकार से इस्तीफा दे दिया.मायावतीके इस्तीफे के बादसमाजवादीपार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्रीबने थे, लेकिन इस इस्तीफे ने हीमायावतीकेअपनेदम पर सत्ता में आने के रास्ते खोल दिये थेऔर वे तेजी से राज्य की राजनीतिमें अपनी पैठ बनाती चली गयीं. 2007केविधानसभा चुनाव में वेपहलीबार अपने दम पर चुनावमेंविजयीहुईंऔरमुख्यमंत्रीबनीं.

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तॉज कॉरिडोर के मुद्दे पर छोड़ दिया था भाजपा का साथ

2003 में मायावती के भाजपा से रिश्ते दो कारण से बिगड़े थे. मायावती ने राजा भैया पर पोटा लगा दिया था और भाजपा चाहती थी कि वह उन पर से पोटा हटा दें. उस दौर में राजा भैया सहित 20 विधायकों ने मायावती को गवर्नर से बरखास्त करने की भी मांग की थी. तब केंद्र में वाजपेयी जी की सरकार थी. बाद में ताज कॉरिडोर निर्माण काे लेकर राज्य सरकार व केंद्र सरकार में मतभेद उभर आये. नियम-कानून के पक्के तब के पर्यटन मंत्री जगमोहन ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि बिना प्रक्रिया पूरी किये ताज कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है. 29 जुलाई 2003 को मायावती ने प्रेस कान्फ्रेंस कर जगमोहन को कैबिनेट से बाहर करने की मांग की, उनके सांसदों ने संसद में हंगामा मचाया. बढ़ते तनाव के बीच 26 अगस्त 2003 को मायावती ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर विधानसभा भंग करने की सिफारिश की और फिर राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया.

मायावती ने जो मुद्दा उठाया है

मायावती ने जो मुद्दाउठाया है, उसमें दम है. उन्होंने दलित अत्याचार का मुद्दा उठाया है. सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलितों पर ऊंची जाति के एक प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा प्रताड़ना का आरोप लगाया है. उनकी बात में दम है. दलित उत्पीड़न की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों से लंबे अरसे से लगातारघटित हो रही हैं. अब जब मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी है तो यह देखना होगा कि वे किस तरह इस मुद्दे पर आंदोलन खड़ा करती हैं? क्या वे इसे अपने गृह राज्य तक सीमित रखती हैं या फिर गुजरात, कर्नाटक व अन्य वैसे राज्यों में भी जाती हैं, जहां से ऐसी शिकायतें आयीं. इसके लिए वक्त का इंतजार करना होगा. मायावती ने सभापति को लिखे अपने पत्र में खुद को दलित, गरीब, पिछड़ों, आदिवासियों, मुसलिमों व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों का रक्षक बताया है. यही लाइन लालू प्रसाद यादव की है. परंपरागत रूप से यहीलोग कांग्रेस के आधार रहे हैं. ऐसे में आक्रामक भाजपा के कारण अगर ये सभी लोग साथ-साथ आते हैं और एक मजबूत विपक्षी अंबरेला गंठबंधन होता है तो इससे सबसे ज्यादा नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी को सावधान होना होगा.

मायावती ने दलित राजनीति के लिए दिखाया साहस, राज्यसभा की सदस्यता से दे दिया इस्तीफा, पढ़ें पूरा पत्र

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