किशोरावस्था के तनाव, चिंता व मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए चलाया जाएगा प्रोग्राम
सीबीएससी और एम्स ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए किया मेट परियोजना शुरुखगड़िया. मोबाइल की लत के कारण बच्चों की घट रही एकाग्रता बनाए रखने के लिए स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. स्कूली बच्चों को एकाग्रता के लिए ट्रेनिंग दिया जाएगा. सीबीएससी और एम्स में माइंड एक्टिवेशन थ्रो एजूकेशन (एम.ए.टी.इ) के साथ समझौता हुयी. स्कूली बच्चों की एकाग्रता बनाए रखने के लिए एम्स की टीम ने खगड़िया के स्कूलों में ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है. साथ ही अभिभावकों को भी जागरूक करने का निर्णय लिया गया. दिल्ली एम्स के चिकित्सक डॉ. निशात अहमद ने बताया कि स्क्रीन टाइम के कारण बच्चों की एकाग्रता कम हो रही है. एकाग्रता बनाए रखने के लिए मेट 5 प्रोजेक्ट शुरु किया गया है. उन्होंने बताया कि किशोरावस्था के तनाव, चिंता व मानसिक स्वास्थ्य से निपटने के लिए बच्चों के बीच प्रोग्राम शुरु किया गया है. सीबीएससी ने इसकी शुरुआत दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों में किया है. जो आगे पूरे देश में लागू किया जाएगा. यह भारत का पहला प्रोजेक्ट है. उन्होंने कहा कि यह योजना पोषण, चिंता, विकार, माता-पिता के झगड़ा, सहकर्मी के नेतृत्व के संकल्प का समावेश है. इसी पांच कारकों के कारण इसे मेट 5 नाम दिया गया.
बच्चों की एकाग्रता क्षमता 30 मिनट से घटकर रह गयी 7-9 सेंकेंड
टैबलेट और कंप्यूटर पर अधिक समय बिताने से बच्चों की आंखों की रोशनी के साथ उनकी एकाग्रता प्रभावित हो रही है. बच्चों की एकाग्रता क्षमता 30 मिनट से घटकर मात्र 7-9 सेंकेंड रह गयी है. जो कि एक गोल्डफिस से भी कम है. इस स्थिति को सुधारने के लिए प्रोजेक्ट मेट के तहत कक्षा छह से 10 वीं तक के छात्रों के बीच वर्कशॉप कराया जाएगा. दिल्ली एम्स द्वारा वैयार किये गये मेट मॉडयूल का लाभ खगड़िया के बच्चों को दिया जाएगा. एम्स के चिकित्सक सह मेट मॉडयूल के सह अन्वेषक डॉ. निशात ने बताया कि मेट मॉडयूल दिल्ली में सफलतापूर्वक शुरु किया गया है. अब इसे सीबीएसइ स्कूलों में लागू कर दिया गया है. जल्द ही बिहार में मेट मॉडयूल लागू किया जाएगा. बताया जाता है कि इस प्रोजेक्ट के मुख्य अन्वेषक ने बताया कि एम्स के डायरेक्टर एम श्रीनिवास, दीपक चौपरा, डॉ. नंद कुमार व डॉ. निशात अहमद ने सीबीएससी मेट प्रोजेक्ट के साथ एमओयू किया है.क्या है मेट फाइव परियोजना
बच्चों की सामाजिक मेलजोल व मानसिक सेहत बेहतर कर अच्छा इंसान बनाने के लिए परियोजना की जरूरत हुई है. एम्स के चिकित्सक डॉ. निशात अहमद ने बताया कि बच्चों का पहला वर्कशॉप ब्रेन और प्राणायाम के माध्यम से ध्यान केंद्रित करना सिखाया जाता है. दूसरी में बच्चों को स्वस्थ सामाजिक संबंध बनाना सिखाया जाएगा. तीसरी हैप्पी गट, हैप्पी ब्रेन वर्कशॉप में खानपान और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध समझाया जाएगा. चौथी वर्कशॉप में बच्चों के अभिभावकों को डिजिटल व्यवहार की निगरानी के लिए जागरूक किया जाएगा.
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