शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने केंद्रीय शिक्षा नीति को ठहराया जिम्मेदार कोलकाता. मध्याह्न भोजन, स्कूल यूनिफॉर्म, साइकिलें, सब कुछ मुहैया कराया जा रहा है. इन तमाम सुविधाओं के बावजूद हर साल स्कूलों में लाखों छात्र कम हो रहे हैं. छात्रों की संख्या मुख्य रूप से सरकारी, सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कम हो रही है. यह सिर्फ इसी राज्य की तस्वीर नहीं है, यह रुझान पूरे देश में देखने को मिल रहा है. केंद्र की नयी रिपोर्ट सामने आते ही शिक्षा जगत इस मुद्दे को लेकर चिंतित है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने प्री-प्राइमरी से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर तक जिलेवार आंकड़े जुटा कर यह रिपोर्ट तैयार की है. इसमें देखा गया है कि वर्ष 2023-24 में देश के स्कूलों में नामांकित छात्रों की संख्या 24.80 करोड़ रुपये थी. 2024-25 में यह 24.69 करोड़ रह गयी. यानी 11 लाख की कमी आयी है. मूलतः लड़कों का नामांकन कम हुआ है. इसके विपरीत लड़कियों का नामांकन थोड़ा बढ़ा है. राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने कहा कि वैश्वीकरण के बाद से देश के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय भाषा माध्यम वाले स्कूलों में नामांकन दर में कमी आयी है. इसके विपरीत अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में प्रवेश का चलन बढ़ रहा है. हालांकि, सरकारी स्कूलों में सीधे प्रवेश की मांग पहले भी थी. लेकिन अगर यह अखिल भारतीय संदर्भ में देखा जाये, तो केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन दर में भी कमी आयी है, तो यह समझना होगा कि भाजपा शिक्षा व्यवस्था को बेचना चाहती है. कई लोगों के अनुसार स्कूलों में मध्याह्न भोजन या साइकिलें एक वर्ग के लोगों को आकर्षक लग सकती है, लेकिन सभी को नहीं. अब मुफस्सिल कसबों में भी आइसीएसई या सीबीएसई बोर्ड के कई निजी स्कूल हैं. कई लोग यह सोच कर अपने बच्चों का दाखिला वहां करवा रहे हैं कि उन स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी है. शिक्षक संगठन ”शिक्षानुरागी एकता मंच” के महासचिव किंकर अधिकारी ने कहा : आज केंद्र की शिक्षा नीति के कारण शिक्षा का बड़े पैमाने पर निजीकरण हो रहा है. सरकारी स्कूलों में उचित बुनियादी ढांचा नहीं है. शिक्षक और शैक्षणिक कर्मचारी नहीं हैं. आधुनिक उपकरण नहीं है. अभिभावकों को अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. परिणामस्वरूप गरीब और सामान्य परिवारों के बच्चे वास्तविक शिक्षा के अवसर से वंचित हो रहे हैं. शिक्षक संगठन ”बंगीय शिक्षक व शिक्षाकर्मी समिति” के महासचिव स्वपन मंडल के शब्दों में : केंद्र की यह रिपोर्ट आने वाले दिनों में क्या होने वाला है, इसका संकेत देती है. यह रिपोर्ट साबित करती है कि 2020 में जो नयी शिक्षा नीति लागू की गयी है, वह उसके बुरे परिणाम हैं. केंद्र सरकार शिक्षा का निजीकरण और व्यवसायीकरण कर रही है. आने वाले दिनों में इसके बुरे परिणाम सभी को भुगतने होंगे. खासकर मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग को. कॉलेज ऑफ असिस्टेंट हेडमास्टर्स एंड असिस्टेंट हेडमिस्ट्रेसेस की सचिव सौदीप्ता दास ने कहा : स्कूल छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या बेहद चिंताजनक है. शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को और अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है. इसके साथ ही बुनियादी ढांचे में सुधार करना भी आवश्यक है.
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