सासाराम. बिहार कैबिनेट ने 26 अगस्त को शिवसागर अंचल में 492.85 एकड़ खेती की जमीन पर 154 करोड़ रुपये की लागत से औद्योगिक पार्क निर्माण की मंजूरी दी, तो इस क्षेत्र के लोगों के घरों में मातम हो गया. वहीं, दूर बैठे लोग खुश हुए कि शिवसागर में औद्योगिक पार्क का निर्माण होगा, जिससे रोजगार मिलेगा. लेकिन, इस विषय पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया कि शिवसागर अंचल के सीओ ने जिस 492.85 एकड़ यानी करीब 800 बीघा जमीन को औद्योगिक पार्क के लिए चिह्नित किया है, वह भूमि प्रति वर्ष करीब 12800 क्विंटल धान और करीब 4800 क्विंटल गेहूं की उपज देती है. इतने अनाज से करीब 880 परिवार या यूं कहें करीब 3520 लोगों का वर्ष भर पेट भरता है और जमीन भी अपनी बनी रहती है. पर, बिना औद्योगीकरण के बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार नहीं मिल सकता. यह सत्य है, तो इसके लिए क्या उपजाऊ भूमि ही एकमात्र उपाय है? ऐसा नहीं, तभी तो शिवसागर अंचल के थाना संख्या-574, मौजा तारडीह, पंचायत उल्हो के गोतहर गांव निवासी दशरथ सिंह ने कहा कि हम औद्योगिक पार्क के खिलाफ नहीं है. बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए उद्योग जरूरी है. लेकिन, क्या उद्योग के नाम पर उपजाऊ जमीन को बंजर बनाना ठीक है? जबकि नहर के उस पार दक्षिण में पहाड़ी के समीप हजारों एकड़ जमीन कम उपजाऊ, बंजर या फिर असिंचित है, तो उस जमीन पर औद्योगिक पार्क का निर्माण क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि दर्शनाडीह पंचायत के थाना सं.-577 के तारडीह मौजा यहां से करीब एक किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. नहर के दक्षिण और पहाड़ी उत्तर बड़ी मात्रा में कम उपजाऊ जमीन है. अगर उस जमीन पर औद्योगिक पार्क स्थापित होता है, तो उपजाऊ जमीन बच जायेगी. किसी को मलाल भी नहीं होगा. क्षेत्र का विकास होगा. लोगों को रोजगार मिलेगा. हम उल्हो पंचायत के लोग इसके लिए प्रयास करेंगे कि प्रशासन नहर के उस पार औद्योगिक क्षेत्र बनाए ताकि 3520 लोगों का पेट भरने वाली जमीन बची रहे. मुझे उम्मीद है कि प्रशासनिक अधिकारी इस पर ध्यान देंगे.
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