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Kaimur News : एक्सप्रेसवे के अधिग्रहित भूमि नापी में चक और सर्वे खतियान का फंस रहा पेच

भभुआ. भारत माला परियोजना के तहत जिले में बनाये जाने वाले कोलकाता-वाराणसी एक्सप्रेसवे के निर्माण को लेकर सरकार द्वारा किये गये भूमि अधिग्रहण के नापी में चक और सर्वे खतियान

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भभुआ. भारत माला परियोजना के तहत जिले में बनाये जाने वाले कोलकाता-वाराणसी एक्सप्रेसवे के निर्माण को लेकर सरकार द्वारा किये गये भूमि अधिग्रहण के नापी में चक और सर्वे खतियान का पेच आड़े आ रहा है. इसे लेकर भूमि अर्जन विभाग द्वारा ऐसे मामले पर विस्तृत तथ्यों के आधार पर प्रतिवेदन तैयार कर जिलाधिकारी को सौंपेगा. गौरतलब है कि जिले से गुजरने वाले कोलकाता-वाराणसी एक्सप्रेसवे निर्माण में सरकार द्वारा अधिग्रहित किये गये भूमि की नापी करायी जा रही है और रैयतों के साथ जनसुनवाई कार्यक्रम आयोजित कर उनके समस्याओं और विचारों को भी सुना जा रहा है. लेकिन, इस भूमि नापी के दौरान भभुआ अंचल आदि के मौजों का चक नक्शा का सार्वजनिक प्रकाशन नहीं किये जाने, तो कहीं चक खतियान और सर्वे खतियान के रकबा में अंतर, तो कहीं मालिकाना हक चक खतियान का पर दखल कब्जा सर्वे खतियान का ऐसे मामले भू नापी करने में आड़े आ रहे हैं. इधर, शुक्रवार को भी रामपुर अंचल के ठकुरहट मौजा में ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें पाया गया कि परियोजना के तहत अधिग्रहित किये जाने वाले भूमि से संबंधित राजस्व दस्तावेज चक खतियान के आधार पर तैयार किये गये हैं, जबकि रैयतों का दखल कब्जा आज तक सर्वे खतियान के अनुसार ही चल रहा है. ऐसे स्थिति में अगर सरकार द्वारा अधिग्रहित किये गये भूमि का राजस्व अभिलेख को सर्वे के दखल कब्जा के आधार पर मानकर पंचाट घोषित किया जाता है, तो ऐसे में अधिग्रहित भूमि का मुआवजा भुगतान प्राप्त करने के लिए रैयतों को राजस्व दस्तावेज प्रस्तुत करने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है. इधर, इस संबंध में जिला भू अर्जन पदाधिकारी के अनुसार, चक और सर्वे खतियान में जहां समानता है, वहां तो नापी में कोई समस्या नहीं आ रही है. लेकिन, जिस मौजा में चक खतियान, सर्वे खतियान के रकबा और दखल कब्जा में अंतर है, वहां विशेष ध्यान देते हुए दो समूह बनाये गये हैं. जिला भू अर्जन पदाधिकारी के अनुसार, ऐसे मामले विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर डीएम को सौंपा जायेगी और जरूरत पड़ी तो मुख्यालय से भी मार्ग दर्शन प्राप्त किया जायेगा. भूमि नापी कार्यक्रम में जिला भू अर्जन पदाधिकारी, भूमि सुधार उप समाहर्ता, अंचल पदाधिकारी, कानूनगो, अमीन सहित स्थानीय रैयत उपस्थित थे. = रैयतों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों ने किया संवाद शुक्रवार को रामपुर अंचल के ठकुरहट मौजा में अधिग्रहित भूमि के नापी कराने के साथ -साथ जिला प्रशासन स्तर से जन सुनवाई कार्यक्रम भी चलाया गया. इस दौरान विभिन्न रैयतों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संवाद किया गया और उनके विचार भी प्राप्त किये गये. इसके बाद अधिग्रहित भूमि की नापी शुरू करायी गयी. जिला भू अर्जन पदाधिकारी ने बताया कि शुक्रवार को समयाभाव के कारण नापी का काम पूरा नहीं किया जा सका. लेकिन आज यानी रविवार को सुबह सात बजे से नापी का काम शुरू कराया जायेगा. इसे लेकर सभी संबंधित रैयतों को उपस्थित रहने के लिए आमंत्रित किया गया है. उन्होंने बताया कि भू नापी प्रक्रिया को अत्यंत पारदर्शी और सहभागी तरीके से निपटाया जा रहा है. साथ ही नापी प्रक्रिया के बाद एक आम सभा का आयोजन किया जायेगा, जिसमें दावे और आपत्तियों को आमंत्रित कर उनका निबटारा किया जायेगा. साथ ही नापी के समय ही दावे और आपत्तियों को भी लेखाबद्ध किया जा रहा है, ताकि भविष्य में कोई विवाद न उत्पन्न हो. चक, सर्वे, नक्शा, खतियान के मकड़जाल में वर्षों से फंसे हैं किसान भभुआ अंचल के सारंगपुर या दुमदुम मौजा का नहीं बना चकबंदी का फाइनल नक्शा भगवानपुर अंचल के मौजों के खतियान में तमाम किसानों की जमीन का रकबा इधर-उधर भभुआ. जिले में चाहे चल रहे वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे के अधिग्रहित भूमि का मामला हो, या फिर विभिन्न मौजों में किसानों के अपने जमीन के सीमांकन का मामला हो, या फिर किसी मौजे में बेचे जाने वाले भूमि के रजिस्ट्री और दाखिल खारिज का मामला हो तो किसान इसे लेकर चक, सर्वे, खतियान, दखल कब्जा के मकड़जाल में वर्षों से फंसे हुए हैं. बावजूद इसके सरकार इस पर गंभीर संज्ञान नहीं ले रही है. ताकि किसानों के समस्या का निबटारा हो सके. उदाहरण के लिए अगर एक्सप्रेसवे गुजरने वाले भभुआ अंचल के सारंगपुर या दुमदुम मौजा को ही लें, तो यहां चकबंदी हो गयी है. चकबंदी का खतियान भी अंचल सहित लोगों को मिला हुआ है. लेकिन चकबंदी का फाइनल नक्शा पिछले तीन दशकों से इस मौजा के रैयतों के पास नहीं है. सरकार स्तर से भी भू मापी कराने वाले किसानों को अंचल कर्मी यही बताते हैं कि फाइनल नक्शा उपलब्ध नहीं है. जो नक्शा उपलब्ध है उसे लेकर किसानों के बीच भारी विवाद है. अब अगर भगवानपुर अंचल के रमावतपुर मौजा की बात करें तो वर्ष 82-83 में रामपुर, भगवानपुर आदि अंचलों के विभिन्न मौजों की चकबंदी करायी गयी थी. इसके बाद चकबंदी किये गये मौजों वर्ष 1971 के सर्वे भू प्लाटों से मिलान कर एक नजदीकी समूह बनाते हुए अलग अलग किसानों के नाम से चक प्लाट का ब्योरा तैयार कर खतियान भी किसानों के नाम कर दिया गया, पर इस खतियान में तमाम किसानों के जमीन का रकबा इधर, उधर पाया गया. बावजूद इसके कई मौजों में दखल दहानी भी चक से करा दिया गया. लेकिन इस दखल दहानी को लेकर किसानों के बीच लगातार विवाद सुलगते रहे है. वर्तमान में रमावतपुर आदि मौजों को आज तक चकबंदी का फाइनल नक्शा विभाग प्रकाशित नहीं कर सका है. न तो इस मौजे का चकबंदी खतियान ही अंचल को भेजा गया है. इससे किसानों को जमीन बिक्री, खरीद, दाखिल खारिज कराने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यही नहीं वर्तमान में कराये जा रहे सरकार द्वारा नय सर्वे में भी यह मामला फंसा हुआ है. चकबंदी और सर्वे के नक्शे और खतियान में अंतर को ले प्रपत्र जमा करने में जिले कई मौजों में किसानों के सामने भारी असमंजस खड़ा हो गया है. नये सर्वे को लेकर पूर्व में भगवानपुर प्रखंड के कुशडीहरा गांव के किसान बलवंत बिंद आदि द्वारा दिये गये आवेदन में कहा गया है कि मौजा कुशडीहरा का 1985-86 में ही चक कट चुका है. इसके अनुसार दखल कब्जा करके किसान अपनी खेती कर रहे हैं. लेकिन चक का फाइनल खतियान किसानों को नहीं मिला है. ऐसे में अगर पुराने सर्वे के आधार पर नया सर्वे किया जाता है, तो ग्रामीणों को बाध्य होकर हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पडेगा. मिलाजुला कर नये सर्वे में भी यह मामला गंभीर बना हुआ है. ऐसे में सरकार को ऐसे मामलों का तत्काल निदान निकालना होगा, ताकि भविष्य में किसानों के बीच आपसी मनमुटाव न बढ़े और किसी तरह के अनर्थक विवाद से सरकार और किसान दोनों बच सकें.

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