दाउदनगर. कृषि वैज्ञानिक एसके झा ने प्रखंड के रेपुरा गांव में किसानों के साथ मुलाकात की और खाली पड़े खेतों में जूट की खेती अपनाने की सलाह दी. मौके पर खलिहान संस्था से जुड़े रविकांत भी उपस्थित थे. बताया गया कि कोलकाता से आये कृषि वैज्ञानिक ने इस इलाके में जूट की खेती को देखा. जूट की खेती की संभावनाओं को देखा गया और समीक्षा की गयी. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु और जल संसाधन जूट उत्पादन के लिए बेहद अनुकूल है. यह फसल मात्र 120 दिनों यानी करीब चार महीनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान साल भर में अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं. जो खेत किसी मौसम में खाली पड़े रहते हैं, वहां पटसन की बुवाई करके किसान अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं. यह फसल खेत की उर्वरता भी बढ़ाती है, जिससे अगली फसलों की पैदावार बेहतर होती है. एक एकड़ खेत से 10 से 12 क्विंटल तक पटसन का उत्पादन होता है. बाजार में इसकी कीमत सात हजार से 9900 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलती है. उन्होंने कहा कि किसानों को बेचने के लिए अलग बाजार तलाशने की जरूरत नहीं है. खलिहान जैसे डिजिटल मंच से जुड़कर किसान आसानी से अपना उत्पाद बेच सकते हैं. उन्होंने याद दिलाया कि 1980 के दशक में इस क्षेत्र में पटसन की व्यापक खेती होती थी, लेकिन आर्टिफिशियल विकल्पों के आने से किसान धीरे-धीरे इससे दूर हो गये. अब खलिहान और क्राइजाफ जैसे संस्थानों की मदद से यह खेती फिर से किसानों का भरोसा जीत रही है. क्राइजाफ द्वारा विकसित वैज्ञानिक तकनीक से पटसन की गलन प्रक्रिया अब पहले से कहीं तेज हो गयी है. पहले यह प्रक्रिया 20 दिन का समय लेती थी, लेकिन विशेष छिड़काव तकनीक से पानी में डालने पर यह मात्र 10 दिन में पूरी हो जाती है.पटसन को पांच ग्रेड में विभाजित किया गया है. इनमें चमकीला, मजबूत और स्वस्थ पटसन सबसे मूल्यवान माना जाता है. क्षेत्र के कुछ इलाकों में ग्रेड-1 यानी सर्वोत्तम गुणवत्ता वाला पटसन पैदा होता है, जबकि अन्य स्थानों पर ग्रेड-2, 3 और 4 की श्रेणी का उत्पादन होता है. उच्च गुणवत्ता वाला चमकीला पटसन बाजार में अधिक कीमत दिलाता है.
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