शिवहर . जिले में गुरुवार को परंपरागत ढंग से भैयादूज का त्योहार उत्साह व उमंग के साथ मनाया गया. नगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में बहनों ने भाइयों को मंगल तिलक कर उनकी दीर्घायु होने की कामना की. वहीं गुरुवार को सुबह से ही बहनों में काफी खुशियां देखी गई. इस दौरान शहर के छोटी रानी कैंपस स्थित दस महाविद्या के मां काली मंदिर में सहित अन्य गली- मुहल्ले के आस पड़ोस की कुंवारी कन्याएं एवं महिलाओं टोली एक स्वच्छ स्थान पर जुट गए.जहां बहनों एवं महिलाओं ने गोधन से संबंधित पारंपरिक गीत (गोधन भैया चलले अहेलिया, ओह पार गोधन भैया खेलेले शिकार) गीत गाते हुए अपने भाइयों के दीर्घायु होने और परिवार के लोगों की लंबी उम्र की कामना की. इससे पूरा वातावरण भक्तिमय बना रहा.गोधन कूटने के साथ कर पूजन किए. वहीं गोधन कूटने से पहले महिलाओं ने गोबर से अन्नकूट का प्रतीक बनाया. इसके बाद शाप देते हुए महिलाओं ने गाय के गोबर से बने गोधन बाबा के प्रतिमा को मिट्टी हांडी से ढक कर मूसल से कूटा गया तथा पूजन में शामिल सभी महिलाओं ने अपने जीभ में रेगनी के कांट को गड़ाते हुए भाईयों की दीर्घायु व सुखमय जीवन की कामना की.पू जन समाप्ति के बाद महिलाओं ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए अपने-अपने घर व परिवार में भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर चना या बजरी, मिठाई, खीर बताशे व लड्डू खिलाये तथा उनकी लंबी उम्र और सुख- समृद्धि की कामना कर भैया दूज पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. बहन सुभद्रा ने भी भाई श्रीकृष्ण के माथे पर लगायी थी तिलक आचार्य पंडित वेदप्रकाश शास्त्री ने बताया कि भैयादूज को यम द्वितीया के रूप में भी मनाए जाने की परंपरा है, जो यम सूर्य के पुत्र हैं. उनकी उत्पत्ति सूर्य की पत्नी संध्या से हुई है.प्राचीन मान्यता यह है कि भैया दूज के दिन यम की बहन यमी ने अपने भाई को भोजन पर निमंत्रण दिया था, तमाम व्यस्तताओं के बावजूद यम अपनी बहन के घर पहुंच कर भोजन ग्रहण किया. तभी से यह भाई-बहन के स्नेह के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन जो भी भाई अपनी बहन से माथे पर तिलक लगाता है.वह कभी भी नर्क में नहीं जाता है. एक अन्य दंत कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के घर का रुख किया था, जहां पर श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने दीप जलाकर भाई का स्वागत् की और माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की दुआ भी मांगी थी.वर्तमान में भी यह प्रथा चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि दीपावली का पर्व भी इस त्यौहार के बिना अधूरा है.
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