-रजनीश आनंद के साथ बुधमनी-
हमारे समाज में आम लोग पीरियड्स पर बात नहीं करना चाहते हैं. उनकी सोच ऐसी है कि यह छुपाने वाली बात है, अत: इसपर चर्चा नहीं होनी चाहिए. परिणाम यह होता है कि लोग एक प्राकृतिक क्रिया से अनभिज्ञ रहते हैं. इस अनभिज्ञता के कारण लड़कियों को कई तरह की समस्याओं का सामना पड़ता है. कई बार उन्हें शर्मसार होना पड़ता है. इस स्थिति से बचा जा सकता है अगर लड़के और लड़कियों को इस बारे में एजुकेट किया जाये. आज हमने कुछ युवाओं से बातचीत की और यह जानने की कोशिश की कि उन्हें उनके घर में इस संबंध में क्या और कैसी शिक्षा दी गयी है.
सुरेंद्रनाथ स्कूल के छात्र रवि ने बताया ने कि उन्हें ‘पीरियड्स’ के बारे में जानकारी है लेकिन उन्हें इस संबंध में घर में कुछ नहीं बताया गया है. उन्होंने स्कूल में सिलेबस में पढ़कर यह सब जाना है. यह एक नेचुरल प्रोसेस है और इसमें छुपाने जैसा कुछ नहीं है. जो टैबू हैं वो गलत हैं. उन्होंने बताया कि मेरी चार बहनें हैं, लेकिन मैं कभी घर पर इस बारे में कुछ जान नहीं पाया.
रितेश ने बताया कि उन्हें भी ‘पीरियड्स’ की जानकारी पढ़ाई के दौरान ही मिली, घर पर उन्हें कुछ नहीं बताया गया है. लेकिन यह एक नेचुरल प्रोसेस है और हमें इस बारे में एजुकेट किया जाना चाहिए. हमने कुछ लड़कियों से भी इस बारे में बात की. मिलिट्री स्कूल की छात्रा उत्कर्षा ने बताया कि उन्हें ‘पीरियड्स’ के बारे में जानकारी पहले से थी. उनकी मां ने बताया था. कैसे सारी चीजों को हैंडिल करना है, कैसे साफ-सफाई रखनी है सबकुछ. उत्कर्षा ने बताया कि स्कूल या बाहर कभी भी उन्हें परेशानी नहीं हुई. सब कुछ ठीक रहा. कुछ ‘टैबू’ है समाज में जिसके कारण लोग बात नहीं करते, हमारे घर में भी भाई को नहीं बताया गया. हां पढ़कर लोग जान जाते हैं.
लड़कियों के साथ आयीं उनकी शिक्षिका श्रुति ने बताया कि एक टीचर होने के नाते मैं अपने स्कूल में बच्चों को एजुकेट करती हूं और मानती हूं कि सबको इस बारे में पता होना चाहिए. हमारे स्कूल में एक काउंसलर हैं जो बच्चों को इस बारे में बताते हैं. जहां तक बात अपने बच्चों को एजुकेट करने की है तो हमारे घर में हमारे भाई ही हमें पढ़ाते थे, तो वो सारी चीजें बताते थे. हमारे घर में लोग सोच से मॉडर्न हैं, पैड को छुपाने की जरूरत हमें कभी महसूस नहीं हुई. मैं यह मानती हूं कि हमें ‘पीरियड्स’ के बारे में लोगों को एजुकेट करना चाहिए.
इस बातचीत के बाद जो बातें उभरकर सामने आयीं, उससे यह महसूस होता है कि शहरों में लोगों की सोच बदल रही है. लोग अब यह मानने लगे हैं कि जो ‘टैबू पीरियड्स’ को लेकर समाज में हैं वे गलत हैं और इसमें बदलाव की जरूरत है. लेकिन अभी किसी बड़े बदलाव के संकेत हमें नहीं दिखे, क्योंकि लोग इस बारे में बात करने से भी बच रहे थे. हमने कई लड़कों से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कहा कि यह कोई बात करने का मुद्दा नहीं है. कुछ ने कहा कि हमारे घर में पता चल जायेगा कि मैंने इसपर बात की तो मुझे डांट पड़ेगी.