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साइलेंट किलर है हाइपरटेंशन

डॉ नीरव कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर, हृदय रोग विभाग, आइजीआइएमएस, पटना आज की तेज रफ्तार जिंदगी में ज्यादातर लोग अवसाद और तनाव से घिरे रहते हैं. नतीजतन चुपके से कब हाइपरटेंशन जकड़ लेता है और मानसिक उलझन, शारीरिक रोग में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता. इसका सीधा संबंध हमारे हृदय से है. शहरों में […]

डॉ नीरव कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर, हृदय रोग विभाग, आइजीआइएमएस, पटना
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में ज्यादातर लोग अवसाद और तनाव से घिरे रहते हैं. नतीजतन चुपके से कब हाइपरटेंशन जकड़ लेता है और मानसिक उलझन, शारीरिक रोग में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता. इसका सीधा संबंध हमारे हृदय से है. शहरों में यह रोग 30 से 40 फीसदी में, जबकि गांवों में 15 फीसदी को ही है. आनुवंशिक कारण के अलावा खराब लाइफस्टाइल और गलत खान-पान भी है. इससे हार्ट अटैक से लेकर लिवर डैमेज और आंखों की रोशनी जाने का खतरा होता है. इस पर विस्तृत जानकारी दे रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
हाइपरटेंशन को साइलेंट किलर भी कहा जाता है, जो बिना लक्षण के ही प्राण घातक होता है. इसमें कुछ लोगों में सिर दर्द, धड़कनों का तेज होना, चलते समय सांसों का फूलना, थकान और असहजता देखी जाती है. यह लकवा और हार्ट अटैक का प्रमुख कारण है.
यह किडनी व आंखों पर भी असर डालता है. इससे बचाव के लिए नियमित जांच जरूरी है. उच्च रक्तचाप के कारण हर वर्ष लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है. हृदय शरीर के सभी अंगों को नलीकाओं द्वारा रक्त को पहुंचाने का कार्य करता है. रक्त प्रवाह के समय हृदय दबाव पैदा करता है, जो नलीकाओं के अंदरूनी भाग पर पड़ता है. इस दबाव को रक्तचाप कहते हैं.
रक्तचाप से शरीर में रक्त संचरण में सहायता करता है. धमनियों में रक्त के दबाव के बढ़ने को उच्च रक्तचाप कहते हैं. एक सेहतमंद आदमी के लिए रक्तचाप 120/80 mm hg होता है. जब आपका सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर (ऊपर का रक्त चाप)140 mm hg और डायास्टोलिक ब्लड प्रेशर (नीचे का रक्त चाप) 90 mm hg या इससे ऊपर हो, तो तब उसे उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन कहते हैं. बल्डप्रेशर की जांच कराते समय कुछ बातें ध्यान रखें जैसे : जांच से तीन घंटे पहले तक रोगी ने चाय, काफी या सिगरेट का सेवन न किया हो. जांच से तीन से पांच मिनट पहले तक शांति से बैठे हुए हों, ताकि धमनियों की गति सामान्य रहे.
शहरों में यह रोग करीब 30 से 40 प्रतिशत लोगों में, जबकि गांवों में 15 प्रतिशत तक ही है. शोध में यह भी पता चला है कि शुरुआती उम्र में यह पुरुषों में ज्यादा और 60 साल की उम्र के बाद यह महिलाओं में ज्यादा होता है. ऐसे तो यह बीमारी किसी भी कारण से हो सकती है, पर जो लोग मोटे हों या शराब अथवा धूम्रपान के आदि हो, किसी कारण अवसाद से ग्रसित हों, फास्ट फूड और मांसाहारी भोजन ज्यादा करते हों उनमें यह ज्यादा देखने को मिलता है.
इसका एक कारण शारीरिक श्रम कम करना, जबकि मानसिक श्रम के दबाव में उलझे रहना भी है. जब रक्तचाप 140/90 से बढ़ने लगे, तो सतर्क हो जाना चाहिए. खान-पान को सुधारने के साथ ही मेडीटेशन और शारीरिक व्यायाम आदि तुरंत किसी विशेषज्ञ की सलाह से शुरू कर देना चाहिए. इसके साथ ही मॉर्निंग/इवनिंग वाक, साइकिलिंग और स्वीमिंग का सहारा लेना चाहिए.
हाइपरटेंश को लेकर भ्रांतियां : लोगों में हाइपरटेंश को लेकर कई भ्रांतियां होती हैं, जिसे दूर करना जरूरी होता है.
प्रमुख भ्रांतियां :
– मुझे गुस्सा नहीं आता, तो मुझे हाइपरटेंशन नहीं होगा. – अगर दवाई खाऊंगा, तो उसका आदी हो जाऊंगा.
– बल्डप्रेशर नहीं चेक कराता कि डॉक्टर दवा लिख देंगे. – सिर्फ योग से ब्लडप्रेशर कंट्रोल में रहेगा.
– मैंने छह महीने दवाई खा ली, यह मेरे लिए काफी है.
जीवनशैली सुधारें हाइपरटेंशन रहेगा दूर
खराब जीवनशैली का नतीजा है हाइपरटेंशन
डॉ ओशो शैलेंद्र
ओशोधारा नानक धाम, सोनीपत, हरियाणा
हाइपरटेंशन का कारण है रक्त का गाढ़ा हो जाना. रक्त गाढ़ा होने से धमनियों में इसकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती है. रक्त में थक्के बनने शुरू हो जाते हैं, जो हार्ट अटैक का कारण बन सकते हैं. इससे बचने के लिए रोजाना हल्का व्यायाम करने, सकारात्मक सोच रखने, धूम्रपान छोड़ने, क्रोध कंट्रोल करने और पर्याप्त नींद लेने से इसे कंट्रोल किया जा सकता है.
मोटापा भी है प्रमुख कारण : हमारे खून में तीन चीजों का महत्व बहुत ज्यादा है-जल, ग्लूकोज और ऊर्जा. ग्लूकोज भोजन से मिलता है और ऊर्जा ऑक्सीजन से. शुद्ध वायु से हमें प्राण शक्ति मिलती है और पानी से हमारा खून पतला रहता है. जब हमारी जीवनचर्या बिगड़ जाती है और भोजन संतुलित नहीं रह जाता, तो मोटापा उसका सहज परिणाम होता है और मोटापा हाइपरटेंशन का एक प्रमुख कारण है.
मोटापे से रक्तचाप बढ़ता है और गुर्दे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. हाइपरटेंशन के रोगी को चाहिए कि वह अपने वजन को शीघ्रता से नियंत्रित करें. प्रत्येक किलो अतिरिक्त वजन से लगभग 300 किलोमीटर अतिरिक्त रक्त वाहिनियां बन जाती हैं, जिससे हृदय पर काम का बोझ बढ़ जाता है और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. वजन बढ़ने का बीपी बढ़ने से सीधा संबंध है.हमेशा दायीं करवट लेटें. उनकी बायीं नासिका ही अधिक समय चलनी चाहिए.
खान-पान पर ध्यान देना है जरूरी : रक्त को गाढ़ा होने से रोकने का हमारे खान-पान से क्या संबंध है, इसके लिए यह समझना जरूरी है कि हमारा खून 80 प्रतिशत क्षारीय है और केवल 20 प्रतिशत अम्लीय. लेकिन हम जो भोजन करते हैं, वह लगभग पूरा का पूरा अम्लीय होता है.
अगर कच्ची सब्जियों, फल, सलाद, अंकुरित अनाज को भी अन्य पकी सामग्रियों के साथ खाया जाये, तो अंकुरित पदार्थ का गुणधर्म भी अम्लीय ही हो जाता है. अतः, इन्हें सामान्य भोजन से कुछ पहले या कुछ बाद में और अलग से लेना चाहिए. सारे जंक फूड बासी होते हैं और प्रसंस्कृत आहार में नमक की मात्रा अधिक होती है, इसलिए इनसे बचना चाहिए. सुबह खाली पेट एक-दो अखरोट लेना, दिन भर में तीन-चार बार नींबू-पानी लेना, गुड़ और भूने चने लेना उपयोगी है. लौकी का रस भी बहुत लाभकारी है. उबले आलू में सोडियम नहीं होता, इसलिए उसके सेवन से भी बीपी नॉर्मल रहता है. अरवा चावल का उपयोग भी न करें. शाकाहार अपनाएं.
नासिका को करें कंट्रोल : एक बार में हमारी एक ही नासिका चलती है और हर एक घंटे बाद नासिका स्वयं ही बदल जाती है. इसे कृत्रिम रूप से बदलने के लिए दाहिनी नासिका को कुछ मिनट के लिए दबा कर रखें और बायीं नासिका से ही सांस आने-जाने दें. कुछ ही पल में बायीं नासिका चालू हो जायेगी और एक घंटे तक सक्रिय रहेगी. एक घंटे बाद पुनः यही प्रक्रिया दुहरायी जा सकती है.
हाइपरटेंशन के रोगी को कुंभक हरगिज नहीं लगाना चाहिए. उन्हें सूर्यभेदि और भस्त्रिका प्राणायाम से खासतौर से बचना चाहिए और व्यायाम भी कम और बेहद धीमी गति से करें. मन शांत करनेवाले कुछ प्राणायामों का अभ्यास लाभकारी होगा.
ओंकार प्राणायाम : पद्मासन, वज्रासन या सुखासन में बैठ कर ज्ञान मुद्रा (अंगूठे और तर्जनी के शीर्ष मिले हुए) या ध्यान मुद्रा (दोनों हाथों की उंगलियां फंसी हुई और गोद में हथेलियों की दिशा ऊपर की ओर) लगाएं. सांस भरें और सामान्य गति से लगभग 15 मिनट तक ऊँ का जाप करें.
अनुलोम-विलोम : इससे मस्तिष्क के दोनों हिस्सों के बीच एक संतुलन कायम होता है. यह हाइपरटेंशन में उपयोगी है, किंतु इसका जो तरीका है, उसमें जितनी देर में सांस भरते हैं, उससे दो या तीन गुने अधिक समय तक सांस को भीतर रोकना होता है, क्योंकि ऑक्सीजन हल्की होती है, कार्बन डायऑक्साइड भारी. चूंकि उच्च रक्तचाप के रोगी के लिए कुंभक वर्जित है, अतः उन्हें यह प्राणायाम किसी योग्य योगगुरु की देखरेख में ही करें.
रेगुलर चेकअप और सावधानी बेहतर उपाय
डॉ संतोष भविमानी
एमबीबीएस एमडी, बेंगलुरु
हाइपरटेंशन सिर्फ आनुवंशिक नहीं है, बल्कि खराब जीवनशैली भी इसका एक कारण है. 90 प्रतिशत केस में इसके कारण का पता नहीं चल पाता है. अधिक मानसिक काम और तनाव भी इसकी वजह है. माता-पिता 20 प्रतिशत तक इसके लक्षण बच्चों में आते हैं. ऐसे में नियमित बीपी यानी रक्तचाप की जांच करानी चाहिए और डॉक्टर के परामर्श के अनुसार मास्टर हेल्थ चेकअप कराना चाहिए. इससे पता चल जायेगा कि आप इस बीमारी की चपेट में हैं या नहीं. इसके कारण सिरदर्द, थकान, उल्टी, नींद कम आना, नाक से खून बहना और अचानक क्रोधित हो जाने की समस्याएं आती हैं.
कैसे करें देखभाल : अगर हाइपरटेंशन से ग्रसित हैं, तो साल में एक बार हेल्थ चेकअप अवश्य कराएं. यह जांच उनके लिए बहुत आवश्यक है, जिनकी उम्र 40 से अधिक है. इसके अलावा बीमारी की देखरेख के लिए एग्जीक्यूटिव हेल्थ चेकअप भी कराएं. इसके साथ ही खाने में नमक की मात्रा को कम करें और रोजाना आधे घंटे का व्यायाम करें.
फिजिसियन से मिलते रहें : जिनको बीमारी की आशंका है, उनको पहले जनरल फिजिसियन से मिलना चाहिए. उनके परामर्श से ही जांच और दवा का सेवन शुरू करें. हाइपरटेंशन से किडनी की बीमारी भी हो सकती है. जरूरत हो, तो विशेषज्ञ डॉक्टर से मिल सकते हैं.
खानपान का रखें ध्यान : हाइपरटेंशन के रोगी को खान-पान का विशेष खयाल रखना चाहिए. मांसाहारी रोगियों को सेचुरेडेट फैट जैसे पनीर, रेड मीट, बीफ आदि नहीं खाना चाहिए. इससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है. कम फैट और कम कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों को खाने में शामिल करें जैसे चिकन, मछली और अंडा की सफेदी का सेवन सीमित मात्रा में कर सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि चिकन से ऊपरी त्वचा, फैट यानि सफेद चर्बी को निकाल दें.
हाइपरटेंशन के रोगी मछली खा सकते हैं, पर मात्रा सीमित होनी चाहिए. शाकाहारी मरीजों को पनीर कम खाना चाहिए क्योंकि इसमें सेचुरेटेड फैट अधिक मात्रा होता है. इसके अलावा घी और तेल मसालेवाले खाने से परहेज करें. मशरूम और टोफू फायदेमंद है.
बातचीत : दीपा श्रीवास्तव
आज की जीवनशैली के कारण हर दूसरा व्यक्ति तनाव की शिकायत लेकर आता है. यह सच है कि जीवन है, तो तनाव रहेगा ही. थोड़ा तनाव कुछ करने के लिए प्रेरित भी करता है, लेकिन जब तनाव का स्तर बढ़ जाता है, चाहे कारण कोई भी हो वह व्यक्ति के सांवेगिक एवं दैहिक स्वास्थ्य पर इसका खराब असर पड़ता है. अत्यधिक तनाव से उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन होता है.
इससे हृदय रोग, लकवा, दिमागी लकवा, मनोदैहिक रोग तो होते ही हैं. यह कई बार जानलेवा भी साबित होता है. हाइपरटेंशन का कारण है अत्यधिक तनाव चिंता, हार्मोनल परिवर्तन, मौसम के बदलते मिजाज, हमारी गलत जीवनशैली धूम्रपान एवं नशा का सेवन. एक कारण यह भी है कि आज हमारे अंदर धैर्य एवं बरदाश्त करने की क्षमता की कमी है.
हमारा खान-पान और दिनचर्या अव्यवस्थित है, जिसकी वजह से व्यक्ति चिड़चिड़ा, आवेगी एवं आक्रमक हो जाता है. हाइपरटेंशन में चक्कर आना, धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाना, सिर दर्द, बेचैनी, थकान, अनिंद्रा, आक्रोश आदि लक्षण दिखायी देते हैं. इससे व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से परेशान हो जाता है. हाइपरटेंशन अधिक उम्रवालों को ही नहीं, बल्कि युवाओं को भी शिकार बनाता है. अत: हमें ऐसा व्यवहार करने की आदत डालनी चाहिए कि तनाव उससे कोसों दूर रहे. खुद को क्रोध, भय, चिंता, घृणा जैसे नकारात्मक भावों से बचा कर रखें.
काम को सिलसिलेवार ढंग से करें : काम की प्राथमिकता तय कर सिलसिलेवार ढंग से काम करें, ताकि थकान एवं चिड़चिड़ापन से बचे रहेंगे. प्रतिदिन सैर एवं व्यायाम को अादत को अपने जीवन में शामिल करें. समुचित नींद चक्र को बनाये रखें. लोगों से खुल कर मिलें.
जीवन में बेहतर आदतों को विकसित करें. आप खुद ही अपना इलाज कर सकते हैं. 24 घंटे मोबाइल फोन से चिपकने की आदत से बचें. इससे आप हाइपरटेंशन से बचें रहेंगे एवं खुद को शारीरिक एवं मानसिक रूप से अच्छा महसूस करेंगे. अगर शारीरिक एवं मानसिक तनाव महसूस करें तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें.
डॉ बिंदा सिंह, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से बातचीत पर आधारित
इन बातों पर ध्यान देना जरूरी
– हाइपरटेंशन से बचने के लिए जीवनशैली में सुधार लाएं.
– खाने में नमक का सेवन कम करें.
– तनावमुक्त रहने के लिए योग का सहारा लें.
– शराब का सेवन या तो न करें, करें तो बहुत कम
– धूम्रपान को बिल्कुल न कहें
– अधिक मात्रा में चाय या कॉफी न लें
– प्रतिदिन 2 से 3 लीटर पानी पीएं
– मोटापे से बचने के लिए अपने डायट पर ध्यान दें.
– रोजाना 20 से 30 मिनट का व्यायाम अवश्य करें.
– बीपी और थॉयराइड की जांच कराते रहें.

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