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गरमी को दूर रख मन को शीतलता देता है यह प्राणायाम

गरमी के मौसम में शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास करने से हमारे शरीर एवं मन को शांति और शीतलता प्राप्त होती है. यह दांतों में पायरिया जैसी समस्याओं को भी दूर रखता है. यह प्राणायाम शरीर के तापमान को नियंत्रित कर तनावमुक्त रखने में भी बेहद लाभकारी है. शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास शरीर को शीतलता देने […]

गरमी के मौसम में शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास करने से हमारे शरीर एवं मन को शांति और शीतलता प्राप्त होती है. यह दांतों में पायरिया जैसी समस्याओं को भी दूर रखता है. यह प्राणायाम शरीर के तापमान को नियंत्रित कर तनावमुक्त रखने में भी बेहद लाभकारी है.
शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास शरीर को शीतलता देने में अहम भूमिका निभाता है. इसी वजह से इसे ‘शीतकारी प्राणायाम’ की संज्ञा दी गयी है. यह प्राणायाम हाइपरटेंशन और तनाव दूर करने में भी लाभकारी है.
मुख की आकृति : इस अभ्यास के दौरान श्वास अंदर की ओर लेते समय अपने ऊपर और नीचे के दांतों को परस्पर मिला कर रखें. होठों को यथासंभव अलग रखें. जीभ को खेचरी मुद्रा के समान मोड़ लें तथा जीभ के नीचेवाले भाग को ऊपरी तालू से सटा कर रखें. तत्पश्चात दांतों के बीच की जगह से अंदर की ओर सांस लें.
अभ्यास की विधि
किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जाएं. दोनों हाथ घुटनों के ऊपर ज्ञान अथवा चिन मुद्रा में मेरूदंड, गरदन और फिर एक सीधी लाइन में रखें. अब आंखों को सहजतापूर्वक बंद करें तथा पूरे शरीर को यथासंभव शांत और शिथिल बनाने का प्रयास करें. अब ऊपर और नीचे के दांतों को एक-दूसरे से लगा कर रखें और दोनों होठों को अलग करके रखें. दांत बाहर से दिखना चाहिए. जीभ को सीधा रखें या पीछे की ओर मोड़ कर खेचरी मुद्रा में तालु से लगाएं.
अब दांतों को स्पर्श करती हुई धीमी और श्वास ‘शी’ आवाज के साथ अंदर ले जाएं. जब सांस पूरी तरह से अंदर चली जाये, तो होठों को आपस में जोड़ कर धीरे-धीरे नाक से श्वास को बाहर निकालें. श्वास को बाहर निकालते समय खेचरी मुद्रा को छोड़ कर जीभ को सीधा कर लें. यह एक चक्र पूरा हुआ. इसी तरह से अभ्यास को 10 चक्रों तक कर सकते हैं.
अवधि : इस अभ्यास को आंरभ में 10 से 15 चक्रों तक किया जा सकता है, किंतु आगे चल कर इसकी संख्या को सुविधानुसार 60 चक्रों तक भी बढ़ाया जा सकता है. गरम प्रदेशों में यह अभ्यास ज्यादा चक्रों में किया जाना चाहिए.
सजगता : अभ्यास के दौरान आपकी पूर्ण सजगता शरीर में शिथिलता पर, दांतों के स्पर्श पर, होठों के फैलाव पर तथा श्वास लेते समय दांतों और मुंह के अंदर पहुंचनेवाली ठंडक पर और श्वास की ‘शी’ आवाज पर होनी चाहिए. जीभ द्वारा लगाया गया खेंचरी मुद्रा पर सजग बने रहें.
क्रम : किसी ऐसे कार्य के बाद जिसमें गरमी का अहसास हो, तो उसके बाद शीतकारी प्राणायाम करने से राहत मिलती है. यह प्राणायाम शारीरिक व मानसिक स्तर पर सीधे शीतलता प्रदान कर आराम पहुंचाता है और व्यक्ति खुद को शांत और तनावमुक्त महसूस करता है.
सीमाएं : जिन लोगों को निम्न रक्तचाप की शिकायत हो, दमा, ब्रोंकाइटिस या श्वसन संबंधी परेशानी हो, कफ आदि हो, तो उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिए. हृदय रोगियों या पुराने कब्ज के रोगियों को भी इसे करने से बचना चाहिए. अभ्यास को अधिक ठंडी जगह या शीत काल में नहीं करना चाहिए.
शीतकारी प्राणायाम से तनाव से मुक्ति
यह अभ्यास दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखता है. पायरिया में काफी लाभ मिलता है. शारीरिक और मानसिक स्तर पर शीतलता प्रदान करता है. तनाव से मुक्ति देने में सहायक है. शरीर में प्यास की तलब कम करता है. जिन लोगों को ज्यादा गरमी लगती है या जो गरम प्रदेशों में रहते हैं, उनके लिए यह बेहद महत्वपूर्ण अभ्यास माना गया है. इस अभ्यास से अपने शरीर के तापमान को पूर्णत: नियंत्रित या कम किया जा सकता है.

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