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होली तो बस होली है !
सारिका भूषण bhushan.sarika@gmail.com होली…. एक रोमांच, एक मीठा-सा आभास, एक गुदगुदाता हुआ अहसास, जो उजड़े और बेरंग चमन को भी रंगीन बना देता है. होली का त्योहार आपसी सद्भावना और सौहार्द का प्रतीक हैं. होली का नाम अनायास ही हमें प्रेम, रसमय, हास्यमय, समतामूलक सामंजस्य का स्मरण कराता है. हसरत और हरारत ने होली को […]
सारिका भूषण
bhushan.sarika@gmail.com
होली…. एक रोमांच, एक मीठा-सा आभास, एक गुदगुदाता हुआ अहसास, जो उजड़े और बेरंग चमन को भी रंगीन बना देता है. होली का त्योहार आपसी सद्भावना और सौहार्द का प्रतीक हैं. होली का नाम अनायास ही हमें प्रेम, रसमय, हास्यमय, समतामूलक सामंजस्य का स्मरण कराता है. हसरत और हरारत ने होली को अब भी जिंदा रखा है. मस्त, उज्जवल रंगों से सराबोर, फाग में राग भरी दीवानगी ही तो होली है. सबों पर इन रंगों का असर होता है. खुमारी चढ़ती है और मतवाला दिल गा उठता है-
दिल में हर्ष अपार है
अपनों के संग
हाथों में गुलाल है
कि रंग दूं होली के दो छंद
सुरमई आँखों में
सपने हजार हैं
उड़ती उमंगों को पकड़
गा लू आज जी भर
बन बागों के माली
जाने क्यों कान्हा
मुझको तो भायी
होली और बस होली !!
होली का नाम सुनते ही हमारे मानस पटल पर जीवन के कई रंग उभरने लगते हैं. एक चलचित्र की भांति सारे हुड़दंग, सारी मस्ती आप ही चलने लगती हैं.
एक प्यारी-सी खुमारी उत्सव का रूप ले लेती है. होली एक ऐसा त्योहार है, जो जाति और उम्र के सारे बंधन तोड़ कर अपने साथ सिर्फ खुशियों के रंग लेकर आता है. बच्चे, बूढ़े, युवा सभी इस होली के इस रंग में रंगना चाहते हैं. सामाजिक एकता, भाईचारा और सद्भावना को प्रदर्शित करनेवाला यह त्योहार हमें अपने संस्कारों और मिट्टी से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करता है. ऐसे में इस चुलबुले, मस्तीभरे त्योहार में कोई भी अछूता कैसे रह सकता है भला?
होली का हरेक रंग हमारे जीवन में प्रेम और सौहार्द्र से भरपूर हमारी अतुलनीय संस्कृति और ऐतिहासिक गाथाओं की कहानी सुनाता है, मगर आज के परिवेश में वर्तमान पीढ़ी ने होली के महत्व को घटा दिया है. आज होली में वर्तमान पीढ़ी में कहीं-न-कहीं उस जोश की कमी नज़र आती है, जो कभी हमें अपनी मिट्टी से जोड़े रखती थी. पूरा मुहल्ला एक साथ साफ-सफाई करके अगजा जलाया करता था. महिलाएं गीत गाती हुईं स्नेहाशीष देती थीं. बच्चे बड़े-बूढ़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे.
होली कर त्योहार तो सबको गले लगाने और एक रंग में रंग जाने का है. यही इस त्योहार की सबसे बड़ी खासियत है. शहरी कायनात की बेरंग होली और ग्रामीण कायनात की हुल्लड़ वाली होली एक अनकहा दर्द ही पैदा करती है.
ऐसी स्थिति में हमारा भी फर्ज बनता है कि पावन रंगोंवाले इस त्योहार को बदरंग न करें. होली खेलने के दौरान अपनी मर्यादाओं को भूलें.
आज भी जरूरत है सामाजिक गतिविधियों और हमारी सक्रियता से भावी पीढ़ियों की नींव में संस्कारों के बीज बोने की. हमारा दायित्व है कि हम अपने बच्चों के दिलों में भारतीय त्योहारों की महत्ता बताते हुए उनका स्थान दिलाएं, ताकि उनकी खुशियों के हर रंग में अपनी संस्कृति की खुशबू रहे. तभी तो हम और हमारा त्योहार अपनी जिम्मेदारी निभा पायेंगे.
आइए ! एक बार फिर से हम इस रंगों से भरी, राग भरी होली का अभिवादन करें. ईश्वर करें इस होली में हमारे मन की सारी बुराइयां और नकारात्मकता अगज़ा की लकड़ियों के संग जल जायें और हम प्रेम के नये रंगों से सराबोर होकर एक साथ गाएं –
हे कान्हा !
हमारी पिचकारी में
न उदासी न गाली
सब मिल खेलें
होली और बस होली !!
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