अनुराग प्रधान
पटना : सावन का महीना और सुल्तान गंज का जिक्र न हो यह हो नहीं सकता. यह काफी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है. सुल्तानगंज स्थित अजगैबीनाथ का मंदिर सावन में श्रद्धालुओं के आकर्षक का केंद्र बना रहता है. उत्तर वाहिनी गंगा होने के कारण देश के विभिन्न भागों से लोग यहां आते हैं. यहां विदेशों से भी लाखों कि संख्या में कांवरिये आते हैं. यहीं से ही गंगा जल लेकर हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवघर पैदल जाते हैं. यहां का दृश्य काफी मनमोहक लगता है. भागलपुर से 26 कि लोमीटर पश्चिम में सुल्तान गंज स्थित है. गंगा नदी के बीच ग्रेनाइट पत्थर की विशाल चट्टान पर अजगैबीनाथ महादेव की मंदिर स्थित है. खास कर बरसात के मौसम में यह मंदिर एक पानी में तैरते हुये जहाज कि तरह दिखायी देता है. मंदिर के साथ ही यहां के पहाड़ में उत्कृष्ट आकृतियां हैं. सुल्तानगंज हिंदूतीर्थ के अलावा बौद्ध पुरातत्वशेषों के लिए भी विख्यात है. सन् 1853 ई में रेलवे स्टेशन के अतिथि कक्ष के निर्माण के दौरान यहां से मि ली बुद्ध की लगभग 3 टन वजनी ताम्र प्रतिमा आज भी इंग्लैंड संग्रहालय में रखी है.
कहते हैं जब भगीरथ के प्रयास से गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ, तो उनके वेग को रोकने के लिए साक्षात भगवान शि व अपनी जटाएं खोलकर उनके प्रवाह-मार्ग में आकर उपस्थित हो गये. शिवजी के इस चमत्कार से गंगा गायब हो गयी थी. बाद में देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने उन्हें अपनी जांघ के नीचे बहने का मार्ग दे दिया. इस कारण से पूरे भारत में केवल यहां ही गंगा उत्तर दिशा में बहती है, कहीं और ऐसा नहीं है. क्योंकि भगवान शिव स्वयं यहां पर प्रकट हुए थे, अतः श्रद्धालु लोगों ने यहां पर स्व यंभुव शि व का मंदिर स्थापित किया और उसे नाम दिया अजगैबीनाथ मंदिर. एक ऐसे देवता का मंदिर जिसने साक्षात उपस्थित होकर, यहां वह चमत्कार कर दिखाया. जो भी लोग यहां सावन के महीने में कांवर लिए गंगाजल लेने आते हैं, वे इस मंदिर में आकर भगवान शिव की पूजा अर्चना और जलाभिषेक करते हैं.
इस दृष्टि से यह मंदिर यहां का अति महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है. लोगों की इस मंदिर में अटूट श्रद्धा है. भगवान शिव यहां स्वयं आपरूप से उत्पन्न हुए थे, जिस कारण वे अजगवी महादेव कहलाये. कहा जाता है कि जो भी भक्त श्रावण महीने में बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाने के लिए कांवर में गंगाजल भरने आते हैं, वे इस मंदिर में आकर भगवान भोले कि पूजा अर्चना और जलाभिषेक करना नहीं भूलते. यहां हर पूर्णिमा, संक्राति आदि के अवसर पर भी शिव भक्तों का हुजूम लगा रहता है.
यहां है देवघर जाने का भूतल मार्ग : एक कथा के अनुसार अजगैबीनाथ मंदिर से देवघर मंदिर को जोड़ने वाले भूगर्भीय मार्ग (भूतल) से प्रतिदिन जल चढ़ाने आया करते थे. उस रास्ते का पता लगाने की कोशिश आधुनिक इंजीनियरों ने बहुत प्रयास की, लेकिन सफल नहीं हो सके. भूगर्भीय मार्ग का मंदिर के पास ही खुलने वाला दरवाजा आज भी मौजूद है.
हरिनाथ इसके पहले महंत बने
एक मान्यता यह भी है कि जो संन्या सी हर दिन सुल्तान गंज से गंगा जल लेकर देवघर में जाते थे. एक दिन सुल्तान गंज से देवघर वह चले तो रास्ते में एक ब्राह्मण से मुलाकात हुई. संन्या सी के हाथ में जल देख कर प्यासे ब्राह्मण ने जल पिला देने का अनुरोध कि या. संन्या सीप्या से ब्राह्मण के अनुरोध से द्रवित हो गये और ज्यों ही जल पिलाने को तैयार हुए कि शिव स्वयं प्रकट हो गये और बोले, मैं तुम्हारे मृगचर्म के नीचे शि वलिंग के रूप में मिलूंगा. और भक्तों के लिए भगवान शिव खुद सुल्तान गंज उत्तर वाहिनी गंगा के पास आ गये. जहां आये, वहीं अजीबो गरीब मंदिर बना.
प्राचीन काल में बौद्धों ने भी बनवाये स्तूप
उत्तर वाहिनी गंगा और इस पहाड़ी के कारण सुल्तानगंज इतना आकर्षक प्रतीत हुआ कि यहां बौद्धों ने भी प्राचीन काल में स्तूप बनवाये. इस तरह सुल्तानगंज कभी बौद्धों का तीर्थ स्थान रहा है. अजगैबीनाथ पहाड़ी पर अनेक हिंदू देवी- देवताओं की प्रस्तर प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं. ईंट के बने प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष, शिवलिंग और शिलालेख भी मिले हैं. यह पहाड़ी वास्तव में निराली है.