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अपने बच्चों को नापाक इरादों से दूर रखने के लिए रहें सतर्क

आज एना को लेकर किसी काम से बैंक जाना हुआ. अक्सर किसी छोटे बच्चे को देख कर अपरचित व्यक्ति भी उन्हें गोद में ले लेते हैं. गोद लेनेवालों में दो पुरुष भी थे, यह नहीं कह रही कि उनके भाव गलत थे, फिर भी अंदर से मन झल्ला रहा था, बच्चे को देते वक्त से […]

आज एना को लेकर किसी काम से बैंक जाना हुआ. अक्सर किसी छोटे बच्चे को देख कर अपरचित व्यक्ति भी उन्हें गोद में ले लेते हैं. गोद लेनेवालों में दो पुरुष भी थे, यह नहीं कह रही कि उनके भाव गलत थे, फिर भी अंदर से मन झल्ला रहा था, बच्चे को देते वक्त से उनकी गोद में रहते वक्त तक मन-ही-मन सोच रही थी कि अपनी बच्ची छीन के कहूं कि ”तुम लोग अब बेटियों के लायक नहीं”.

आज जहां बच्चियों के लिए माहौल बेहद असुरक्षा का हो गया है, वहां मांओं की इस तरह की चिंता स्वाभाविक है. पर, इस चिंता का मौका ही न आये तो? अपने इस लेख में कुछ भी लिखने से पहले मैं सभी माता-पिता से यह गुजारिश करना चाहती हूं कि अपने बच्चों को किसी भी अनजान व्यक्ति या पहचानवाले व्यक्ति भी जिन पर आपको भरोसा नहीं, उनके गोद में न दें, उनसे दूर रखें.

बच्चे जब तक बोलना नहीं सीखते, तब तक हमें ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है. खास कर वे बच्चे जो किसी बड़े सर्कल में रहते हैं, जिनका ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना होता है या वे किसी के घर खेलने जाते हैं, तो उनके साथ यदि कुछ गलत होगा तो उन्हें यह समझ में भी नहीं आयेगा, लेकिन उन्हें तकलीफ जरूर होगी, असहजता होगी.

अधिकांश मामलों में बच्चे अपनी यह असहजता प्रकट नहीं कर पाते. वे बेहद मासूम हैं. कुछ लोग मानसिक रूप से इतने कुंठित अथवा क्षुब्ध होते हैं कि उन्हें बच्चों की मासूमियत नहीं, बल्कि उनका केवल शरीर ही दिखता है. वे उन मासूमों को भी अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं.

मेरी एक सहेली के साथ घटी यह घटना यहां सिर्फ इसलिए लिख रही हूं, ताकि हम समझ पायें कि गलती कहां होती है. “नीरा (बदला हुआ नाम) सपरिवार ट्रेन से अपने दादी घर जा रही थी. वे लोग जनरल डिब्बे में सफर कर रहे थे. तीन घंटे का सफर था. नीरा के साथ उसके पिता, भाई और मां थी. उस वक़्त नीरा छह वर्ष की थी. डिब्बे में भीड़ थी, फिर भी उन लोगों को बैठने की जगह मिल गयी. नीरा मां की गोद में थी.

काफी देर बाद जब मां के पैर दुखने लगे, तो उन्होंने नीरा को सामने की ऊपरवाली सीट पर बैठा दिया. जिस पर एक बुजुर्ग अंकल सो रहे थे. वहां उन्हें साइड में थोड़ी-सी जगह दिखी. नीरा भी ऊपर बैठने के लालच में बैठ गयी. कुछ देर बाद नीरा ने महसूस किया कि उसे पीछे से गलत जगह कोई छू रहा है. वह पहले समझ नहीं पायी, फिर असहजता हुई तो ऊपर से नीचे कूद गयी. मां को लगा कि शायद नींद आने की वजह से ऐसा हुआ.

नीरा ने जिद की कि वह ऊपर नहीं बैठेगी, लेकिन भीड़ में कहीं और जगह न मिल पाने की वजह से उसे वापस ऊपर बैठा दिया गया. नीरा समझ नहीं पा रही थी कि मां को कैसे बताये, उसने बहुत हिम्मत करके मां से कहा कि वह अंकल उसे धक्का दे रहे हैं. तब जाकर नीरा को वापस मां की गोद में जगह मिली.

सोचिए नीरा बोल सकती थी, समझा सकती थी, लेकिन फिर भी ठीक से कह नहीं सकती थी. उससे भी छोटे बच्चे जो महज़ एक या दो साल के होते हैं या उससे भी छोटे, वे तो अपनी बात कह भी नहीं सकते.

कई ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें नन्हे-नन्हे बच्चों को खिलाने के बहाने पुरुष लेते हैं, फिर उन्हें यहां-वहां छूना, उनके कपड़े हटाना आदि भद्दी और ओछी हरकतें सामने आती हैं. ऐसे में बच्चा न कुछ कह सकता है, न समझ सकता है. ऐसी स्थितियों से बचने के लिए कुछ सुझाव दे रही हूं, शायद आपके काम आ सकें.

क्या करें आप?

सबसे पहले ना कहना सीखें, यदि आपको किसी व्यक्ति की नीयत पर शक है, तो फिर चाहे वह आपका रिश्तेदार ही क्यों ना हो, उसे ना कहें. अपने बच्चे से दूर रखें और उसे गोद में तो बिल्कुल भी न दें. रिश्तेदारी बिगड़ने से ज्यादा खतरनाक है बच्चे का शारीरिक शोषण.

बच्चों को टॉफी आदि के बहाने किसी के भी पास जाने को मना करें. यदि कोई आपके सामने आपके बच्चे को टॉफी दिखा कर गोद में लेता है, तो उसे मना करें. टॉफी के बहाने वे आज किसी अपने के पास जा रहे हैं, बाद में किसी पराये के पास भी जा सकते हैं. अपने बच्चों को भी ‘ना’ कहना सिखाएं.

यदि आपको किसी काम से बाहर जाना है और आप अपने बच्चे को भी साथ ले जा रही हैं, तो कैरी बैग का इस्तेमाल करें. आप लोगों ने देखा होगा, पुराने जमाने की महिलाएं और वर्तमान में मजदूरी करनेवाली महिलाएं अपनी पीठ या पेट से अपने बच्चे को बांधे रखती हैं. अब फिर से उसी क्रिया को एक नया रूप देकर “कैरी बैग्स” चलन में आये हैं.

बाजार में कई तरह के आपकी जेब के हिसाब से उपलब्ध हैं. बड़े शहरों में इनका चलन बहुत तेज़ी से बढ़ा है. आप भी इसे ले सकती हैं. इसके इस्तेमाल से बच्चा आपके पास रहेगा और आपके हाथ भी बंधे नहीं रहेंगे, यानी कहीं बाहर जाने कि स्थिति में भी आपको अपने बच्चे को किसी और को गोद न देना पड़े.

ये तीन जरूरी बातें हैं, जो हमें अपने बच्चों के लिए ध्यान में रखनी है. यह मसला सिर्फ शारीरिक शोषण का नहीं है. एक और बात ध्यान में आ रही है. बात 2004 के आस-पास की है.

मध्य-प्रदेश का एक केस सामने आया था, जिसमें टेंपो में एक व्यक्ति ने एक बच्चे को सूई जैसा कुछ चुभाया और बाद में पता चला कि वह सूई एड्स के संक्रमण की थी. अखबार में यह ख़बर छपी थी. इसकी सच्चाई क्या थी और किस हद तक थी, यह अब याद नहीं, क्योंकि बात काफी पुरानी है. लेकिन शारीरिक शोषण के अलावा हमें अपने बच्चों के लिए इन मामलों में भी बहुत सतर्क होने की ज़रुरत है.

वे क्या खा रहे हैं, किस्से मिल रहे हैं, किसके पास रह रहे हैं, उनके दोस्त और उन दोस्तों के परिवार कौन हैं. बच्चों को कैद किये बिना, उन्हें पंख देने के साथ-साथ हमें ये सतर्कता बरतनी होगी, जो उनके भविष्य के लिए बेहद जरूरी हैं.

भारत में हर साल 53% बच्चे किसी-न-किसी रूप में शारीरिक शोषण का शिकार बनते हैं. पूरे देश में कुल 3,00000 बच्चे भिखारी हैं, जिन्हें चाइल्ड ट्रैफिकिंग के जरिये इस तरह के कामों को करने के लिए मजबूर किया जाता है.

अब यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा इस तरह की किसी भी मुसीबत में न पड़े, तो आंखों पर सतर्कता का चश्मा पहनिए और किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचिए. मेरी शुभकामनाएं!

क्रमश:

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