Premanand Ji Maharaj: लोग धर्म और कर्म की बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन उनके असली अर्थ को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. हमारे आसपास कई ऐसे लोग मिलते हैं जो यह सोचकर परेशान रहते हैं कि वे रोज मंदिर नहीं जा पाते. कुछ लोग तो इसे पाप समझने लगते हैं और खुद को अपराधी मानने लगते हैं. इस तरह का सवाल अक्सर लोगों के मन में उठता है कि क्या वास्तव में मंदिर रोज जाना जरूरी है? ऐसे में इस सवाल का उत्तर वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज ने बहुत सरल और हृदय को छू लेने वाले शब्दों में दिया है.
प्रेमानंद जी महाराज का विचार
प्रेमानंद जी महाराज से जब पूछा गया कि मंदिर रोज न जाने पर क्या व्यक्ति अधूरा रह जाता है, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह नहीं कि आप रोज मंदिर जाते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि आपका मन कितना स्वच्छ और निर्मल है. उन्होंने समझाया कि अगर आप किसी के प्रति बुरा भाव नहीं रखते, किसी का दिल नहीं दुखाते और भीतर से ईमानदार रहते हैं, तो घर पर रहकर भी आप भगवान के उतने ही करीब हैं. वहीं यदि कोई व्यक्ति मंदिर तो जाता है लेकिन बाहर आकर बुरे कर्म करने लगता है, तो उसके लिए वह पूजा या दर्शन किसी काम के नहीं.
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असली मंदिर मन बाहर नहीं बल्कि मन के भीतर
प्रेमानंद जी महाराज ने आगे कहा कि असली मंदिर बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर है. जब मन साफ और पवित्र होता है, तभी असली पूजा मानी जाती है. चाहे कितनी भी बार मंदिर के चक्कर लगाए जाएं, अगर मन में नफरत, ईर्ष्या या बुरे विचार हैं तो उसका कोई महत्व नहीं.
जो रोज मंदिर नहीं जा पाते क्या करें?
प्रेमानंद जी महाराज ने उन लोगों के लिए भी संदेश दिया जो रोज मंदिर नहीं जा पाते. उनके अनुसार, माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा करना, उनके आशीर्वाद पाना भी उतना ही पुण्यकारी है जितना मंदिर जाना. भगवान केवल पत्थर की मूर्तियों में नहीं, बल्कि हर जीव और हर रिश्ते में विद्यमान हैं.

