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ओशो के सबसे बड़े फैन क्यों थे विनोद खन्ना? रहस्य जानने के बाद बेहोश हो जाएंगे अक्षय

Vinod Khanna Osho: बॉलीवुड के सुपरस्टार विनोद खन्ना ने स्टारडम के चरम पर पहुंचने के बाद ओशो को गुरु मानते हुए संन्यास ले लिया था. जानें कैसे ओशो के विचारों ने उनकी जिंदगी को बदल दिया और क्यों वे माने जाते हैं ओशो के सबसे समर्पित शिष्य.

Vinod Khanna Osho: ओशो को दुनिया का सबसे बड़ा विचारक और दार्शनिक कहा जाता है. उनके विचारों को मानने वाले लोगों की संख्या आज भी बड़े पैमाने पर है. लेकिन अगर आपको यह पता चले कि बॉलिवुड का दिग्गज अभिनेता स्टारडम के शिखर तक पहुंचने के बाद भी उनके विचारों को न सिर्फ अपने जिंदगी में अमल किया बल्कि उनका शिष्य बना. जी हां यह अभिनेता कोई नहीं बल्कि 70 के दशक का बेहतरीन अभिनेता विनोद खन्ना है. जब उन्होंने ओशो के शिष्य बनने का फैसला लिया तो लोग हैरान रह गये. यह खबर पूरे देश में सुर्खियां बन गई. कई लोगों ने उन पर सवाल उठाया. लेकिन सवाल यह है कि विनोद खन्ना ओशो के प्रति इतना समर्पित कैसे हो गये. आज हम आपको इसी कहानी के बारे में बताएंगे.

स्टारडम के शिखर पर विनोद खन्ना

वर्ष 1980 के दशक की शुरुआत में विनोद खन्ना का करियर बुलंदियों पर था.’मेरा गांव मेरा देश’, ‘राजपूत’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘दयावान’ जैसी कई सुपरहिट फिल्में देकर वह बॉलीवुड में सबसे डिमांडिंग अभिनेता बन चुके थे. किन इस दौरान उन्होंने अपने जीवन में आंतरिक शांति, जीवन का उद्देश्य और आत्मिक संतुलन की ऐहसास किया. बस यहीं से उनका झुकाव ओशो की तरफ हुआ.

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पुणे में हुई ओशो से पहली मुलाकात

विनोद खन्ना की ओशो से पहली मुलाकात पुणे स्थित उनके आश्रम में हुई थी. वे उनके तर्क और ध्यान की विधियों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सन् 1982 में अपना करियर छोड़कर ओशो के आश्रम में संन्यास ले लिया. यहां उनका नया नाम स्वामी विनोद भारती पड़ा. वे ओशो के बगीचे में काम करते थे, जमीन पर बैठते और एक आम शिष्य की तरह जीवन जीते थे.

विनोद खन्ना ने ओशो को गुरु के रूप में अपनाया

विनोद खन्ना ने न केवल ओशो को गुरु के रूप में अपनाया, बल्कि उनके जीवन-दर्शन को भी आत्मसात किया. उनका मानना था कि “ओशो ने मुझे खुद से मिलाया, उन्होंने मेरी आत्मा को पहचान दी.” उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि ओशो की वजह से उन्हें अहंकार, लालसा और बाहरी दिखावे से मुक्त होने का मार्ग मिला. यह केवल आत्मा की खोज नहीं बल्कि आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया थी.

अमेरिका में भी ओशो के साथ रहे विनोद खन्ना

विनोद खन्ना अमेरिका के ओरेगन में स्थित ओशो की अंतरराष्ट्रीय कम्यून (Rajneeshpuram) में भी शामिल रहे. वहां वे ओशो के निकटतम अनुयायियों में गिने जाते थे. उन्होंने कई वर्षों तक आध्यात्मिक साधना की और शारीरिक श्रम किया.

ओशो की मृत्यु के बाद फिल्मों में की दोबारा वापसी

ओशो की मृत्यु (1990) के कुछ समय बाद विनोद खन्ना ने फिल्मों में दोबारा वापसी की. ‘चाँदनी’, ‘दयावान’, ‘कुर्बान’ और बाद में ‘दबंग’ जैसी फिल्मों से वे फिर दर्शकों के दिलों में छा गए. लेकिन ओशो के विचार उनके भीतर हमेशा जीवित रहे. वे अक्सर कई इटरव्यू में कहते थे “अब मैं फिल्मों में हूं, लेकिन अंदर से मैं आज भी ओशो के साथ हूं”

विनोद खन्ना क्यों माने जाते हैं ओशो के सबसे बड़े फैन?

विनोद खन्ना ने अपने करियर के पीक समय पर नेम फेम पैसा को छोड़कर आध्यात्म को चुना. आश्रम में उन्होंने बागवानी से लेकर साधना तक की. उन्होंने फिल्मी करियर और आम जिंदगी को बेहतर तरीके से संतुलित किया.

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