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Shaheed Diwas 2022: 23 मार्च को दी गयी थी भगत सिंह,राजगुरू और सुखदेव को फांसी,कुछ ऐसा था उस वक्त का माहौल

Shaheed Diwas 2022: क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को फांसी की सजा 23 मार्च 1931 को दी गई थी. असल में इन शहीदों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी, लेकिन अंग्रेज सरकार को डर लगा कि कहीं कोई फसाद न हो जाए. इसलिए इनकी फांसी की तारीख और तिथि बदल दी गई.

Shaheed Diwas 2022: आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को ब्रिटिश हुकूमत के दौरान फांसी की सजा सुनाई गई थी.

इस वजह से बदल दी गई थी फांसी की तारीख और समय

बताया जाता है कि असल में इन शहीदों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी, लेकिन अंग्रेज सरकार को डर लगा कि कहीं कोई फसाद न हो जाए. तब तक इन तीनों युवाओं के बारे में देश का चप्पा-चप्पा जानने लगा था और उनकी सजा को लेकर आक्रोश भी दिखने लगा था. यही कारण है कि तीनों को एक दिन पहले बगैर किसी को खबर किए रातोंरात फांसी पर चढ़ा दिया गया, तब जाकर जानकारी जेल से बाहर निकल सकी.

फांसी की तारीख और समय बदलने से कैदी बेहद गुस्से में थे

फांसी की तारीख और समय बदलने से सभी कैदी बेहद गुस्से में भर गए कि ऐसे कैसे ब्रिटिश सरकार बिना कानूनी कार्रवाई को पूरा करे बिना किस तरह से ऐसा फैसला सुना सकती है. वहीं शहीद-ए-आजम भगत सिंह को अगले दिन सुबह 4 बजे की जगह उसी दिन शाम 7 बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा.

इस वजह से हुई थी फांसी

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद भगत सिंह और बीके दत्त (बटुकेश्वर दत्त) ने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे. बम फेंकने के बाद वहीं पर इन दोनों ने गिरफ्तारी दी थी. इसके बाद करीब 2 साल तक जेल में रहना पड़ा और फिर बाद भगत, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई.

इसके बाद सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया. बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी. तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई थी. जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी. 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई. फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे.

Prabhat Khabar Digital Desk
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