Premanand Ji Maharaj एक प्रसिद्ध संत और मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने साधना, भक्ति और आध्यात्मिक जीवन को बेहद सरल और असरदार तरीके से समझाया है. हाल ही में एक व्यक्ति ने जब उनसे प्रश्न पूछा कि जब हम अलग-अलग मंदिर में जाते हैं तो भगवान का स्वरूप अलग-अलग होता है, तो ध्यान या भजन करते समय बहुत कन्फ्यूजन होता है. यह सवाल केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि हर भक्त के मन में कभी न कभी आया है. आइए जानते हैं, प्रेमानंद जी महाराज ने इस जटिल विषय पर क्या मार्गदर्शन और उत्तर दिया.
प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि जब हम आचार्य परंपरा से जुड़ते हैं, तो उसी परंपरा के अनुसार ध्यान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जैसे हम किसी गुरु के शिष्य होते हैं, तो उसी मार्ग के अनुसार भगवान का ध्यान करना हमारी साधना का हिस्सा बन जाता है. उदाहरण के लिए, हम हरिवंश महाप्रभु के शिष्य हैं, तो हम राधा बल्लभ जी का ध्यान करेंगे, क्योंकि हरिवंश महाप्रभु के हम शिष्य हैं और राधा वल्लभ जी हमारे इष्ट हैं.
उन्होंने आगे समझाया कि किसी अन्य परंपरा के अनुयायी, जैसे कोई स्वामी हरिदास जी का है, तो वह बांके बिहारी जी का ध्यान करता है.
महाराज ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी परंपरा से सीधे नहीं जुड़ा है, तो उसे यह मान लेना चाहिए कि मेरे बांकी बिहारी हैं. तो ऐसे में दर्शन सब जगह करना चाहिए, लेकिन ध्यान बिहारी जी का करना चाहिए. इस तरह भक्त अपने मन की निष्ठा किसी जगह पर स्थिर करता है और धीरे-धीरे सत्मार्ग की ओर बढ़ता है.
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