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आखिर क्यों एक मां ने कर दिया बच्चे का मर्डर ? समय रहते पहचानें हालात, जानें क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

Mental Health : एक दिल दहलाने वाली घटना ने एक बार फिर लोगों को सोचने पर बेबस कर दिया है कि आखिर ऐसे हालात क्या बन जाते हैं कि एक मां अपने ही बच्चे की हत्या कर देती है. क्या ये कोई मनोविकार है या फिर परिस्थितिजन्य वारदात ? जाने ऐसी घटनाओं के पीछे की वजहों को लेकर मनोचिकित्सक की राय.

Mental Health Tips : नॉथ गोवा में चार साल के मासूम का मर्डर किसी और ने नहीं उसकी मां ने ही कर दिया. जिसने सुना वो दहल गया. इस वारदात की पुलिस छानबीन कर रही है लेकिन इस घटना के बाद समाज में इसे लेकर चिंता भी बढ़ गई है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक संपन्न परिवार की सफल महिला ने अपने बच्चे को मार डाला. देशभर में कई ऐसी घटनाएं सामने आयी हैं जहां माता-पिता ने ही अपने बच्चे की जान ले ली है या फिर बच्चों की जान लेकर खुदकुशी कर अपनी जान दे दी या देने का प्रयास किया है. क्या उसका कोई खास कारण होता है या फिर कोई खास हालात. इस पर रांची के मनोचिकित्सक पवन कुमार बर्णवाल कहते हैं कि इस तरह की शर्मनाक घटनाओं के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिसमें पहला कारण है मां का उसके बच्चे से किस भी कारण लगाव ना होना.

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कई बार ऐसा भी होता है कि मां अपने बच्चे से भावनात्मक रूप से जु़ड़ नहीं पाती. जिसका कारण यह भी होता है कि उसका अपने पति के साथ अलगाव हो.

आनुवांशिक बीमारी से निराशा – कई बार ऐसा होता है कि बच्चा किसी जन्मजात बीमारी, असाध्य रोग से पीड़ित होता है ऐसे में इसे बड़ी समस्या मानकर अवसाद में ऐसी वारदात को अंजाम दिया गया.

डिप्रेशन भी हो सकती है वजह– कई बार कोई शख्स लंबे समय से डिप्रेशन में रहता है और हमेशा आत्मघाती कदम उठाने के लिए सोचता है. वो सोचता है कि वो जिंदगी में बेहद निराश है और इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं है. इसी आवेश में आकर वो पहले खुद के ऊपर निर्भर लोगों की जान लेता है और फिर अपनी जान दे देता है या इसकी कोशिश करता है.

गुस्सैल और हिंसक प्रवृति भी ऐसी घटनाओं की एक बड़ी वजह है. कई लोग ऐसे होते हैं जो हर छोटी बात पर हिंसक हो जाते हैं और जिस वक्त उन्हें गुस्सा आता है वो कुछ और सोच नहीं पाते बस सामने वाले पर उतार देते हैं. ऐसे में कई घटनाओं का कारण पारिवारिक क्लेश के खीज में बच्चों की हत्या के रुप में भी सामने आता है.

सबसे मुख्य कारणों में एक है नशा करना– अक्सर देखा गया है कि हिंसक माहौल बनने के पीछे का कारण नशा करना होता है. नशे में धुत शख्स का दिल और दिमाग काम नहीं करता इस वजह से वो क्या कर रहा है उसे होश नहीं होता. पहले के विषाद को झेलते हुए वो आवेश में आकर किसी की भी जान ले लेता है जिसका पता नशा उतरने पर चलता है.

विवाहेत्तर संबंध- कई बार विवाहेत्तर संबंध भी ऐसी घटनाओं का कारण बनते हैं जिसमें माता या पिता अपने ही बच्चे को उनकी प्रेम में बाधा समझने लगते हैं और ऐसी जघन्य घटना को अंजाम देते हैं.

डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों की कैसे करें पहचान
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अगर हम सब स्वस्थ्य और खुशहाल समाज चाहते हैं तो इसके लिए सभी को जागरूक इंसान बनना होगा. अपने आस पास रहने वाले लोगों की पर्सनालिटी पर जरूर गौर करें. क्या आपको कोई बदलाव दिख रहा है. अगर हालिया दिनों में कोई विचित्र परिवर्तन दिखे तो जरूर बात करें.

कई लोगों का व्यवहार मिलनसार होता है अगर वैसे लोग समाज से कटाव महसूस करने लगें. पार्टियां पसंद करने वाले लोग अपनी समाजिकता खत्म कर दें. उनके इमोशन्स में बदलाव लगे तो हो सकता है वो डिप्रेशन में हो.

अगर हमेशा हंसने वाला व्यक्ति निराशाभरी बातें करने लगे या फिर शांत रहने वाला इंसान जरूरत से अधिक हंसने मुस्कुराने लगे तो यह परिवर्तन नोटिस करने वाला है.

इमोशन्स चेंज होना भी डिप्रेशन के संकेत देती है. हर इंसान का इमोशन्स उसके फैमिली, ऑक्यूपेशनल प्लेस और फ्रेन्डस पर जाहिर होता है. अगर इन जगहों पर किसी भी इंसान का इमोशन अचानक बदला दिखे तो उसे जरूर टोके. उसके बेवजह चिल्लाने, रोने, हंसने या गुमशुम करने का कारण पूछे. कुछ भी संशय लगे तो उसे एक्सपर्ट के पास जरूर ले जाएं.

डिप्रेशन से बचने के लिए पारिवारिक ताना – बाना को मजबूत बनाएं.

योग – प्राणायाम से भी काफी मदद मिलती है. पहले संयुक्त परिवार की वजह से पति- पत्नी के छोटे – बड़े झगड़े घर में ही सुलझ जाते थे लेकिन आज एकल परिवार में एक दूसरे के लिए वक्त नहीं मिलता. लिहाजा कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता जाता है और प्यार की बातों की जगह शिकायतें ले लेती हैं जिससे झगड़े बढ़ने पर इमोशनल बॉन्ड कमजोर होता जाता है. जिसका असर बच्चों के जीवन पर पड़ता है इसलिए स्ट्रेस को मिटाकर एक दूसरे के लिए परिवार के लिए वक्त निकाले. जिससे निराशा दूर होगी और सकरात्मकता की किरण जीवन को नई रोशनी देगी.

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