Chanakya Niti For Parents, रांची : बदलते जमाने के साथ बच्चों की सोच बदल रही है, लेकिन एक बात आज के समय में उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि प्रचीन समय में. वह है बच्चों का पालन पोषण. भले ही आज के समय में तरीके में बदलाव आया है. कई बार ऐसा होता है कि बच्चे की परवरिश में जरा सी भूल के कारण बच्चे अपनी की बर्बाद हो जाती है. लेकिन अगर हम चाणक्य की उस फॉर्मूला पर चलें तो उन्होंने हजारों साल पहले बताया था बच्चों की जिंदगी बदल जाएगी. जी हां उन्होंने एक ऐसा मॉडल बताया था, जिसे आज मनोविज्ञान के विशेषज्ञ भी व्यवहारिक मानते हैं. यह मॉडल तीन पड़ाव का है. पहले 5 साल प्यार, फिर 10 साल अनुशासन और 16 साल के बाद मित्रता.
पहले पांच साल बिना शर्त करें प्यार
चाणक्य का मानना था कि बच्चे के शुरुआती पांच साल उसकी भावनाओं की नींव होते हैं. इस दौरान अधिक रोक-टोक नहीं, डर नहीं, सजा नहीं, बल्कि प्यार, सुरक्षा और अपनापन दिया जाना चाहिए. क्योंकि इस उम्र में जिन बच्चों को सुरक्षा का एहसास होता है, वे आगे चलकर आत्मविश्वासी, निर्भिक और सामाजिक व्यवहार वाले बनते हैं.
6 से 15 साल अनुशासन और आदतों की ट्रेनिंग
दूसरा स्टेप छठवें से पंद्रह साल तक का होता है. इसमें चाणक्य अनुशासन सिखाने की सलाह देते हैं. यह वह समय है जब बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत डालनी चाहिए. साथ ही साथ समय का सम्मान, सही-गलत का फर्क, जिम्मेदारी उठाना सिखाया जाना चाहिए. इस दौरान अगर किसी ने इन नियमों का पालन न कराया तो बच्चा आगे जाकर गुस्सैल और जिद्दी हो सकता है.
16 के बाद बच्चों के साथ मित्र की तरह व्यवहार करना जरूरी
चाणक्य कहते हैं कि जब संतान 16 वर्ष का हो जाए तो उससे मित्र की तरह व्यवहार करना चाहिए. क्योंकि यह वह समय है जब उनके किसी काम में दखल देने पर दूरी बनती है. अगर आदेश दिया जाए तो विरोध होता है. लेकिन इस वक्त पर उनसे किसी भी मामले में सलाह मांगी जाए तो असर होता है. आगे चलकर इसका पॉजिटिव इंपैक्ट पड़ता है. बच्चा कोई भी बात कहने से नहीं हिचकता है. इस उम्र के बाद माता-पिता जितना विश्वास दिखाते हैं, बच्चे उतना समझदारी से निर्णय लेना सीखते हैं. यही वह दौर होता है जब वे करियर चुनते हैं, रिश्ते समझते हैं और अपने जीवन को लेकर फैसले लेते हैं.
क्या यह आज के समय में भी प्रासंगिक है?
यह डिजिटल मीडिया का दौर है. इस वजह से प्रतिस्पर्धा और बढ़ गयी है. लेकिन एक चीज है जो कभी नहीं बदलेगी वह है बच्चे की भावनाएं. चाणक्य के इन थ्री स्टेज मॉडल से प्यार से भरोसा बनता है, अनुशासन से दिशा मिलती है और दोस्ती से रिश्ते मजबूत होते हैं. चाणक्य का यह थ्री स्टेज पेरेंटिंग मॉडल बताता है कि पालन-पोषण कोई एक जैसा नियम नहीं, बल्कि उम्र के अनुसार बदलने वाली कला है. माता-पिता अगर भावनात्मक और व्यवहारिक दोनों रूप में संतुलन बनाएं, तो संस्कार और सफलता दोनों साथ चल सकते हैं.

