Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य अपनी बुद्धिमत्ता और नीतियों के लिए प्रसिद्ध हैं. उनकी कही गई बातें न सिर्फ राजनीति बल्कि जीवन के हर पहलू में महत्वपूर्ण साबित होती हैं. उन्होंने एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही थी—
“अपना दर्द सबको न बताएं, मरहम एक आधे घर में होता है, पर नमक हर घर में होता है.
“Dont share your pain with everyone” यह कथन इस बात को दर्शाता है कि दुनिया में हर कोई आपकी समस्या को हल करने वाला नहीं होता, बल्कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आपका दर्द और बढ़ा सकते हैं. इस नीति को अपनाकर हम जीवन में बड़ी समस्याओं से बच सकते हैं.
1. क्यों नहीं साझा करना चाहिए अपना दर्द?

कई बार हम भावुक होकर अपनी परेशानियां दूसरों से साझा कर लेते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर कोई हमारी भावनाओं को समझे. कुछ लोग सहानुभूति दिखाते हैं, तो कुछ इसे मजाक बना सकते हैं. चाणक्य ने इसीलिए सलाह दी कि अपनी परेशानियों को हर किसी से बांटना सही नहीं है.
नकारात्मक प्रभाव:
- कुछ लोग सहानुभूति के बजाय आपकी परेशानी का मजाक बना सकते हैं.
- आपकी भावनात्मक कमजोरी का गलत फायदा उठाया जा सकता है.
- यह लोगों को आपके खिलाफ हथियार देने जैसा हो सकता है.
2. कौन लोग होते हैं सच्चे हमदर्द?

चाणक्य कहते हैं कि दुनिया में ऐसे कम ही लोग होते हैं जो वास्तव में आपका दर्द समझते हैं और आपकी मदद करने के लिए आगे आते हैं. इसलिए हमें समझदारी से चुनना चाहिए कि अपना दर्द किससे साझा करें.
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सही व्यक्ति चुनने के लिए ध्यान रखें:
- सिर्फ अपने भरोसेमंद दोस्त, परिवार के करीबी या मार्गदर्शक से ही अपनी समस्या साझा करें.
- ऐसे व्यक्ति को चुनें जो आपके लिए वाकई में हितकारी हो, न कि सिर्फ सुनने के लिए बात करे.
- जरूरत हो तो खुद को समय दें और सोच-समझकर निर्णय लें.
3. खुद को मजबूत बनाएं और समस्या का समाधान खोजें
चाणक्य नीति हमें आत्मनिर्भर बनने की भी सलाह देती है. अपनी परेशानियों को खुद हल करने की आदत डालें और मजबूत बनें.
क्या करें?
- अपनी समस्याओं को हल करने के लिए आत्मविश्लेषण करें.
- जरूरत पड़ने पर सही व्यक्ति या विशेषज्ञ से सलाह लें.
- अपनी भावनाओं को काबू में रखें और जल्दबाजी में कोई फैसला न करें.
चाणक्य की यह नीति हमें सिखाती है कि हर व्यक्ति हमदर्द नहीं होता, और अपनी परेशानियों को हर किसी से साझा करने के बजाय सही व्यक्ति से ही बात करनी चाहिए. भावनाओं में बहकर किसी पर भी भरोसा करना सही नहीं होता, बल्कि सोच-समझकर निर्णय लेना ही बुद्धिमानी है. इसलिए अगली बार जब आपको किसी परेशानी का सामना करना पड़े, तो पहले खुद से पूछें— क्या जिसे मैं बताने जा रहा हूं, वह मेरा सच में भला चाहता है?
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