Mental Health: सीबीएसई ने हाल ही में दसवीं व बारहवीं बोर्ड के परीक्षा परिणाम घोषित किये हैं. जिन बच्चों के अच्छे अंक आये हैं, वे अपने मनचाहे विषय के साथ आगे के सफर पर निकल जायेंगे, परंतु जिन बच्चों के अपेक्षा के अनुरूप अंक नहीं आये हैं, या जो किन्हीं कारणों से असफल रह गये हैं, उनके लिए यह समय अपना मूल्यांकन करने का है कि तैयारियों में कहां कमी रह गयी. उन कमियों को दूर कर आगे बढ़ना कोई मुश्किल नहीं हैं. अनेक विद्यार्थी ऐसा करते हैं. और फिर अपनी मेहनत के बल पर नया मुकाम हासिल कर लेते हैं. परंतु कई विद्यार्थी, जो असफलता को स्वीकार नहीं कर पाते, वे स्ट्रेस में आ जाते हैं. कई बार स्ट्रेस लेवल इतना बढ़ जाता है कि वह एंजाइटी या डिप्रेशन का रूप ले लेता है. एंजाइटी या डिप्रेशन की पहचान कैसे करें, इससे बचने के क्या रास्ते हैं, किन बातों का रखना है ध्यान, जानिए इस बारे में विशेषज्ञ की राय…
डॉ राजीव मेहता
सीनियर कंसल्टेंट, साइकिएट्रिस्ट, सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली
9911887706

किसी कारणवश जब हम बहुत अधिक चिंता में आ जाते हैं, परेशान हो जाते हैं और हमें लगने लगता है कि हम इस स्थिति या चुनौती का सामना नहीं कर सकते, हमें अपनी परेशानियों का कोई समाधान नजर नहीं आता, जो इसे हम स्ट्रेस या तनाव का नाम देते हैं. परंतु जब यही स्ट्रेस अत्यधिक बढ़ जाता है, यानी बीमारी का रूप ले लेता है, तब हम इसे कई तरह के नाम देते हैं. इनमें सबसे कॉमन नाम है डिप्रेशन और एंजाइटी. व्यक्ति केवल तनाव में है या तनाव की स्थिति एंजाइटी या डिप्रेशन में बदल गयी है, इसे पहचानने के लिए इनके लक्षणों को जानना जरूरी है.
डिप्रेशन के लक्षण
मन उदास रहना, परेशान रहना, शरीर में थकावट महसूस करना, जिस काम के अंदर पहले आनंद आता था, उस काम में अब उतना आनंद न मिलना, नींद कम हो जाना, भूख कम लगना, किसी चीज में ध्यान कम लगना, चीजों को भूलने लगना, दूसरों के ऊपर अपने आपको बोझ समझने लगना, अपराधबोध से ग्रस्त रहना, आत्मविश्वास में कमी आ जाना, मन में निराशाजनक विचार आने लगना, अपने आपको व्यर्थ समझने लगना, रुलाई आना- ये सब डिप्रेशन के लक्षण हैं. डिप्रेशन होने पर कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है जहां हमारे जीने की इच्छा मर जाती है और लगता है कि काश भगवान मुझे उठा ले, या मुझे मृत्यु आ जाए. इतना ही नहीं, ऐसी स्थिति में स्वभाव गुस्सैल और चिड़चिड़ा भी हो जाता है और तब मन में दूसरे को मारने के भाव भी आने लगते हैं.
एंजाइटी के लक्षण
एंजाइटी होने पर घबराहट होने लगती है, कई लोगों को पैनिक अटैक आने लग जाता है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है, सांसें तेज-तेज चलने लगती हैं और ऐसा महसूस होता है जैसे अभी हमारी जान निकल जायेगी. ऐसी स्थिति में घुटन-सी महसूस होने लगती है. इसके बाद ऐसे व्यक्ति के अंदर चिंता के लक्षण दिखने लग जाते हैं. उसे छोटी-सी परेशानी भी बड़ी लगने लगती है. मन में हद से अधिक नकारात्मक विचार आने लगते हैं. ऐसे व्यक्ति छोटी सी बात का भी नकारात्मक रूप से तिल का ताड़ बना डालते हैं. इतना ही नहीं, एंजाइटी होने पर हमारे दिमाग में अनेक तरह के विचार आने लग जाते हैं. मन में वहम, डर समा जाता है. भीड़ से, बंद कमरे से डर लगने लगता है. ऐसी स्थिति में आप चार लोगों के बीच अपनी बात रखने से डरने लगते हैं. दरअसल डर, चिंता और भय को ही हम एंजाइटी कहते हैं.
कैसे बचें इन परेशानियों से
हम इस तरह की मुश्किलों में न फंसें, इसके लिए हमें अपनी जीवनशैली को स्वस्थ बनाये रखना बहुत जरूरी है. पूरी नींद लें, फास्ट फूड से बचें, स्क्रीन पर बहुत अधिक समय न बिताएं, केवल एंटरटेनमेंट के लिए थोड़ी देर के लिए ही स्क्रीन पर जाएं, पौष्टिक आहार लें. निरोगी बने रहने के लिए योग व व्यायाम करें. आपको यदि कोई परेशानी है तो उसे अपने घरवालों-मित्रों के साथ साझा करें, उसका उपाय ढूंढें. यह एंजाइटी व डिप्रेशन दोनों से बचाव के उपाय हैं. यही सब बातें इलाज के दौरान भी काम आती हैं. इसके अलावा इन रोगों के इलाज में दवाइयां भी दी जाती हैं.
यदि आपकी परेशानी अत्यधिक बढ़ गयी है और इन उपायों को आजमा कर भी आराम नहीं मिल रहा है, तो बेहतर यही होगा कि आप दवाइयों का सहारा लें. असल में इस परेशानी में जो दवाइयां दी जाती हैं, वे दिमाग के विटामिन होते हैं. हमें यह समझना होगा कि दवाई एक जरूरत है, लत नहीं हैं और दवाइयां बीमारी से कम नुकसानदायक हैं.
परिवार-मित्रों की भूमिका महत्वपूर्ण
डिप्रेशन या एंजाइटी से जूझते व्यक्ति को सामान्य स्थिति में लाने में परिवार व मित्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, ताकि रोगी को सच्चाई बतायी जा सके कि वह जितना सोच रहा है, स्थिति उतनी बुरी नहीं है. जीवन इतना बुरा नहीं है, जितना वह सोच रहा है. इन परेशानियों से बाहर निकला जा सकता है. यदि बाहर न भी निकला जाए, तो भी जिंदगी रूक नहीं जाती है. तमाम परेशानियों के बावजूद जिंदगी चलती रहती है, क्योंकि जीवन चलने का नाम है. होता यह है कि जब मनुष्य एंजाइटी या डिप्रेशन में आ जाता है, तो उसे लोगों की बातें समझ में नहीं आती हैं. लोगों की बातें समझ नहीं आने का अर्थ यही है कि बीमारी बढ़ गयी है. ऐसी स्थिति में बेहतर यही होगा कि रोगी को किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से दिखाया जाए. इस स्थिति में देरी सही नहीं होती है.
इन बातों का रखें ध्यान
डिप्रेशन या एंजाइटी की स्थिति में यदि रोगी बार-बार मरने या मारने की बातें कर रहा है, बहुत अधिक गुस्सा कर रहा है, या वह नशा करने लगा है, तो उसके ऊपर निगरानी की जरूरत होती है, ताकि वह कोई अतिवादी कदम न उठा ले.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.