उदयपुर | राजस्थान
कुछ कहानियाँ इतिहास की किताबों में दर्ज नहीं होतीं।
कुछ सरकारी फाइलों में दबकर रह जाती हैं।
और कुछ ऐसी होती हैं, जो समाज के भीतर पल रहे डर, आस्था और सच्चाई के टकराव से जन्म लेती हैं।
ऐसी ही एक सशक्त और सोचने पर मजबूर कर देने वाली कहानी अब बड़े पर्दे पर दस्तक देने जा रही है — फिल्म ‘सागवान’।
यह फिल्म अंधविश्वास, डर और इंसानी मानसिकता की उन परतों को उजागर करती है, जिन पर अक्सर खुलकर बात नहीं होती।
सच से प्रेरित कहानी, किसी एक घटना तक सीमित नहीं
‘सागवान’ किसी एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म नहीं है, बल्कि उन तमाम अनुभवों से प्रेरित है, जो समाज के कोनों में अक्सर दबा दिए जाते हैं।
यह कहानी उन हालातों को दिखाती है, जहाँ डर और अंधविश्वास इंसान को इस कदर जकड़ लेते हैं कि सही और गलत की पहचान धुंधली हो जाती है।
फिल्म किसी व्यक्ति, धर्म या समुदाय को निशाना नहीं बनाती, बल्कि एक गंभीर सवाल उठाती है —
क्या आज के दौर में भी समाज अंधविश्वास के साए में जी रहा है?
रियल लाइफ अनुभव से निकली रील लाइफ कहानी
फिल्म के मुख्य किरदार में नजर आ रहे हैं पुलिस अधिकारी हिमांशु सिंह राजावत, जिन्होंने न केवल अभिनय किया है, बल्कि फिल्म की कहानी, संवाद और निर्देशन की कमान भी संभाली है।
हिमांशु सिंह राजावत कहते हैं —
“यह कहानी किसी एक केस की नहीं, बल्कि उन अनुभवों का सार है, जो एक पुलिस अधिकारी अपने पूरे करियर में देखता और महसूस करता है।”
यही वजह है कि फिल्म के हर दृश्य में सच्चाई और ज़मीनी हकीकत साफ झलकती है।
अंधविश्वास बनाम इंसानियत
‘सागवान’ दिखाती है कि कैसे तंत्र-मंत्र, डर और अंधविश्वास इंसान को सोचने-समझने की शक्ति से वंचित कर देते हैं।
कई बार लोग सच्चाई जानने के बजाय डर के पीछे भागते हैं और वहीं से विनाश की शुरुआत होती है।
फिल्म सवाल करती है —
क्या आस्था के नाम पर इंसानियत की बलि दी जा सकती है?
और अगर कानून समय पर दखल दे, तो क्या हालात बदले जा सकते हैं?
मजबूत स्टारकास्ट और प्रभावशाली अभिनय
फिल्म में हिमांशु सिंह राजावत के साथ दमदार कलाकार नजर आएंगे —
सयाजी शिंदे, एहसान खान, मिलिंद गुणाजी और रश्मि मिश्रा।
सभी कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को गहराई और संवेदनशीलता के साथ निभाया है, जिससे कहानी और भी असरदार बनती है।
राजस्थान की मिट्टी से जुड़ी कहानी
‘सागवान’ की शूटिंग राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में की गई है।
यहाँ की लोकसंस्कृति, बोली और माहौल फिल्म को पूरी तरह ज़मीनी और वास्तविक बनाते हैं।
फिल्म के निर्माता प्रकाश मेनारिया और सह-निर्माता अर्जुन पालीवाल के मुताबिक,
‘सागवान’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि समाज को सोचने पर मजबूर करने वाली एक पहल है।
जल्द होगी सिनेमाघरों में रिलीज़
फिल्म को सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिल चुका है और यह जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज़ की जाएगी।
एक सोच, एक सवाल, एक कहानी…
‘सागवान’ सिर्फ देखने की नहीं,
महसूस करने की फिल्म है —
जहाँ डर, आस्था और सच आमने-सामने खड़े नजर आते हैं।

