हेमेंता मुखोपाध्याय म्यूजिक के लेजेंड
Remembering Hemant Kumar: हेमेंता मुखोपाध्याय, जिन्हें हेमंत कुमार के नाम से भी जाना जाता है, 16 जून 1920 को जन्मे थे और 26 सितंबर 1989 को उन्होंने हमें छोड़ दिया. वे एक महान प्लेबैक सिंगर, म्यूजिक डायरेक्टर और फिल्म निर्माता थे. उन्होंने बंगाली, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में गाने गाए. वे रवींद्र संगीत के सबसे महान कलाकारों में से एक माने जाते हैं. उन्हें बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर के लिए दो नेशनल अवार्ड भी मिले थे. उनका गाना सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता था.
आईपीटीए का योगदान
1940 के मध्य में, हेमेंता भारतीय पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) के सक्रिय सदस्य बने और वहां उन्होंने मशहूर गीतकार और संगीतकार सलिल चौधरी के साथ काम करना शुरू किया. IPTA की स्थापना का एक बड़ा कारण 1943 का बंगाल का अकाल था, जहां ब्रिटिश प्रशासन और अमीर भारतीयों की अनदेखी के खिलाफ आवाज उठाई गई. यह समय था जब उन्होंने गान्येर बधु नामक एक गाना रिकॉर्ड किया, जिसने उन्हें और सलिल चौधरी को प्रसिद्धि दिलाई.

गाने का प्रभाव
गान्येर बधु गाने ने हेमेंता को पूर्वी भारत में बहुत लोकप्रियता दिलाई. यह गाना एक रूरल महिला के जीवन को दर्शाता है जो गरीबी और अकाल से प्रभावित होती है. यह गाना न केवल एक आम गीत था, बल्कि यह उस समय के सामाजिक मुद्दों को भी उजागर करता था. इसके बाद, हेमेंता और सलिल चौधरी ने कई और गाने मिलकर गाए, जो बहुत लोकप्रिय हुए.
बॉलीवुड में कदम
हेमेंता ने 1951 में मुंबई का सफर तय किया और फिल्मिस्तान स्टूडियोज में काम करना शुरू किया. उन्होंने आनंदमठ फिल्म के लिए संगीत दिया, जिसमें वन्दे मातरम् गाना शामिल था, जिसे लता मंगेशकर ने गाया था. इस फिल्म के गाने ने भी दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई.
हेमेंता की धुनें आज भी जिन्दा हैं
हेमेंता की मृत्यु के दो दशक बाद भी, भारत में हर साल उनके गानों के एल्बम जारी होते हैं. उनका संगीत आज भी लोगों को जोड़े रखता है और नए गायक उनकी गाने की शैली को अपनाने की कोशिश करते हैं. उनका योगदान सिर्फ गाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संगीत की गहराई और भावनाओं ने उन्हें अमर बना दिया है.
हेमंत आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकेद्वारा गये गाने और म्यूजिक आज भी हमारे साथ है, आज उनकी पुण्यतिथि पर प्रभात खबर की पूरी टीम उन्हें दिल से याद करती है.
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