फिल्म – किस किसको प्यार करूं 2
निर्देशक -अनुकल्प गोस्वामी
निर्माता -रतन जैन, गणेश जैन ,अब्बास और मुस्तान
कलाकार -कपिल शर्मा, आयशा खान, त्रिधा चौधरी,पारुल गुलाटी,, मनजोत सिंह ,जेमी asrani,सुशांत सिंह ,असरानी,अखिलेन्द्र मिश्रा और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -ढाई
kis kisko pyaar karoon 2 review :साल 2015 में स्टैंड अप कॉमेडी के सबसे लोकप्रिय चेहरों में शुमार कपिल शर्मा ने फिल्म किस किसको प्यार करूं से बतौर अभिनेता अपनी शुरुआत की थी.लगभग एक दशक बाद वह इस फिल्म के सीक्वल के साथ लौट आये हैं.कहानी का मूल आधार इस बार भी वही है. तर्क से फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले का दूर -दूर तक कोई लेना देना नहीं है. कुल मिलाकर कपिल शर्मा के आप फैन हैं और कॉमेडी फिल्मों को देखते हुए लॉजिक से आपका कोई वास्ता नहीं रहता है तो यह फिल्म आप थिएटर में जाकर देख सकते हैं.
सीक्वल वाली ही है कहानी
फिल्म की कहानी की बात करें तो यह बचकानी सी है.कहानी मोहन (कपिल शर्मा )की है. जिसे सानिया (हीरा वरीना)से प्यार है.इस प्यार के खिलाफ उनका धर्म है. मोहन हिन्दू है और सानिया मुस्लिम इसलिए परिवार वाले इस शादी के खिलाफ हैं. मोहन प्यार के लिए धर्म बदल लेता है,लेकिन गलती से सानिया के बजाय उसकी शादी रूही (आयशा खान )से हो जाती है. इस बीच मोहन के घरवाले उसकी शादी जबरदस्ती अपनी पसंद की लड़की मीरा (त्रिधा चौधरी )से कर देते हैं,लेकिन मोहन का प्यार तो सानिया है.हिन्दू से मुस्लिम बनने के बाद अब वह सानिया से शादी करने के लिए ईसाई भी बनता है,लेकिन इस बार भी शादी किसी और लड़की (पारुल गुलाटी ) से हो जाती है.किस तरह से मोहन इन तीनों अलग -अलग धर्म की पत्नियों को खुश रखने के लिए क्या क्या करता है. यही कहानी है. कहानी का ट्विस्ट ये है कि पुलिस ऑफिसर डेविड डी कोस्टा (सुशांत सिंह )मोहन के पीछे पड़ा हुआ है क्योंकि उसे उसकी तीन शादियों की बात मालूम पड़ गयी है. मोहन की तीन शादियों का राज सानिया को मालूम पड़ने पर क्या होगा. सानिया कहां गायब है.सानिया और मोहन की शादी हो पाएगी क्या. यही सवालों के जवाब फिल्म आगे देती हैं.
फिल्म की खूबियां और खामियां
दिमाग घर पर रखकर कॉमेडी फिल्में थिएटर्स में देखना कोविड से पहले तक आम था,लेकिन कोविड ने फिल्मों के समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है. यह सीक्वल फिल्म दस साल बाद भी नए किरदारों के आने के बावजूद एक बार फिर बेसिर पैर की कॉमेडी फिल्म ही साबित होती है,जिसमें दिमाग लगाने की ज़रूरत नहीं है. दिमाग नहीं लगाते हैं कि कैसे ये पढ़ी लिखी लड़कियां इस तरह से शादी के बंधन में बंध सकती हैं तो यह फिल्म आपको एंटरटेन कर सकती है. उलझने और गलतफहमियों ने इस फिल्म की कहानी का आधार हैं.कुछ ट्विस्ट और संवाद मनोरंजक हैं तो कुछ घिसे पिटे से लगते हैं. सभी पत्नियों का ट्रेन की धमकी देना बचकाना सा लगता है.अच्छे पहलुओं की बात करें तो फिल्म में अलग अलग धर्मों का प्रसंग है. जिसे पूरे संवेदनशीलता और सम्मान के साथ डील किया गया है. ये बात इस फिल्म की खास है.इसके साथ ही फिल्म में एक भी डबल मीनिंग डायलॉग नहीं है.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी में भोपाल के खूबसूरत लोकेशन को बखूबी कैप्चर किया गया है.गीत संगीत की बात करें तो वह भी बहुत साधारण रह गए हैं. हनी सिंह के गाने को छोड़ एक भी गाना याद नहीं रह जाता है.
कलाकारों ने जमाया है रंग
यह एक कॉमेडी फिल्म है और कपिल शर्मा को इसमें महारत हासिल हैं. वह अपने लगातार पंचेस से इस फिल्म में भी जमकर हंसाते हैं लेकिन वह परदे पर मोहन के बजाय कपिल शर्मा ज्यादा लगे हैं.अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले वह बेहतर हुए हैं. इसमें इंकार नहीं है. मंजीत सिंह ,विपिन शर्मा,जेमी लीवर,अखिलेन्द्र मिश्रा और सुशांत सिंह की तारीफ बनती है.उन्होंने कमजोर कहानी को अपने अभिनय से बांधे रखा है, जिस वजह से मामला बोझिल नहीं हो पाया है.आयशा खान, वरना हुसैन, त्रिधा चौधरी तीनों अभिनेत्रियों ने अपने अपने हिस्से के दृश्यों के साथ बखूबी न्याय किया है.हीरा वरीना ठीक ठाक रही हैं. उन्हें अपने डायलॉग डिलीवरी पर काम करने की जरुरत थी.स्वर्गीय असरानी को परदे पर देखना सुखद था. बाकी के किरदारों का काम भी अच्छा है.

