Maithili Films: पटना. मैथिली फिल्मों का संसार अभी भी काफी छोटा है. मैथिली में कम फिल्में बनती हैं, लेकिन अच्छी फिल्में बनती हैं. मैथिली में स्क्रिप्ट तो है, लेकिन फिनांसर नहीं है. ऐसे में फीचर फिल्म से बेहतर लघु फिल्मों का भविष्य है. यह कहना है मैथिली में कई लघु फिल्में बना चुके निर्देशक प्रभाकर झा की. प्रभाकर झा की नयी फिल्म गोनू झा अभी चर्चा में है. रसनचौकी जैसी मैथिली लघु फिल्म से ख्याति पा चुके प्रभाकर झा कहते हैं कि वो खत्म होती परंपराओं पर फिल्म बनाते हैं. उनकी फिल्मों में एक संदेश होता है.
मैथिली लघु फिल्म छठिहार से शुरू किया था सफर
फिल्म निर्देशन में मास्टर डिग्री रखनेवाले प्रभाकर झा की पहली मैथिली लघु फिल्म छठिहार थी. इस फिल्म में वो ध्वनि प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे को छूआ था. महिला सशक्तीकरण पर उनकी मैथिली लघु फिल्म इज्जतघर को राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली थी. प्रभाकर कहते हैं कि वो एक सीरीज में फिल्में बना रहे हैं. आमक कलम उनके सीरीज की तीसरी फिल्म थी, जो एक बगान के घर-आंगन बनने की कहानी कहती है. हाल ही में उनकी फिल्म रसनचौकी आयी है, जिससे उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर एक उभरते हुए निर्देशक के रूप में बनी है.
रसनचौकी ने दिलायी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
जगमोहन कपूर जैसे पटकथा लेखक के साथ काम कर चुके प्रभाकर झा मैथिली के अलावा कन्नर और हिंदी फिल्म इंटस्ट्री में भी काम कर चुके हैं. बतौर निर्देशक गोनू झा उनकी पांचवीं फिल्म होगी. रसनचौकी की सफलता पर प्रभाकर झा कहते हैं,”हम लोगों ने इस फिल्म को बहुत दिल से बनाया था. मन में थी कि इस विषय को लोगों तक लाया जाये. रसनचौकी न केवल खत्म होती परंपरा को दिखाती है, बल्कि क्यों खत्म हो रही है, उसकी भी कहानी है”. अपनी अगली फिल्म गोनू झा के संबंध में प्रभाकर कहते हैं,”यह फिल्म इस इलाके की ज्ञान परंपरा की कहानी है. हमारी फिल्म गोनू झा के चरित्र को पहली बार फिल्म के माध्यम से लाने की कोशिश है.”
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