juhi parmar :भारतीय टेलीविजन के लोकप्रिय चेहरों में शुमार जूही परमार चार साल के लंबे अंतराल के बाद जी टीवी के नये शो ‘कहानी हर घर की’से वापसी की है. शो में वह होस्ट की भूमिका में है. जूही की मानें, तो वह एक अरसे से ऐसे शो के लिए मैनिफेस्ट कर रही थीं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
इस शो की क्या खास बात थी, जिससे आपने हां कहा ?
मैंने इससे पहले भी कई शो एंकर किये हैं, लेकिन इस शो से मैं पूरी आत्मा के साथ जुड़ी हुई हूं, क्योंकि मैं ऐसा कोई शो बहुत टाइम से करना चाह रही थी. शो की सिर्फ एंकर नहीं हूं. हर एपिसोड में किसी कहानी में किसी की बहन, किसी की दोस्त, किसी की काउंसलर बन जाती हूं. कई बार मैं फूट-फूट कर रोई हूं. मैं खुद भी दर्द से गुजरी हूं, तो मैं सामने वाले के दर्द को भी महसूस कर लेती हूं.
हाल ही में दहेज के लिए एक महिला को जिंदा जला दिया गया. क्या ऐसे शो वाकई बदलाव ला सकते हैं?
जो कुछ भी हो चुका है, उसे हम बदल नहीं सकते, चाहे वह 15 दिन पहले हुआ हो या 15 साल पहले. मगर हमारी कोशिश यही है कि हर घर तक यह संदेश पहुंचे. यह सिर्फ शाहीन या सिद्धि की कहानी नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति की कहानी है जो इससे जूझ रहा है. हमारी सोच यह है कि उन्हें इस मंच तक आने की जरूरत न पड़े और हम उनकी जिंदगी में पहले ही बदलाव ला सकें. ऐसे मामले होने से पहले ही हम उन्हें बचा सकें. औरतों को दहेज के मामले का सामना करना समझना चाहिए.घर इस शो के शीर्षक में है.
आपके लिए घर की क्या परिभाषा है?
घर मेरे लिए हमेशा वो जगह रहा, जिसने मुझे आत्मविश्वास दिया. जिंदगी में कुछ भी हुआ, उससे लड़ पाने की ताकत मुझे वही देता है. मैंने 25 साल की उम्र में अपना घर ले लिया था. मैंने अपनी जिंदगी में बेटी, पत्नी की जो भी भूमिका निभायी, उस वजह से मेरे घर बदले. लेकिन हां मेरे लिए हमेशा घर का मतलब मेरे माता-पिता हैं, क्योंकि वो मेरा आधार हैं और अब मेरी बेटी मेरा विस्तार है और मैं इन्ही के साथ रहती थी.
शो में दूसरों की कहानियों को सुनते हुए क्या आपका दर्द भी फिर से उभरा ?
उतार-चढ़ाव जिंदगी का हिस्सा है. जो कुछ भी मेरे साथ हुआ है. उससे मैं भी परेशान हुई थी. मैंने सेल्फ वर्क किया है. पहले मैं सोचती थी कि मैं क्यों ऐसे बुरे सिचुएशन में हूं. अब मुझे लगता है कि कुछ भी बुरा नहीं होता है. बस वक्त होता है. आप उससे निकल आते हो. मेरा जो 2. 0 वर्जन है, इसका श्रेय पूरी तरह से भागवद गीता को जाता है. उसे पढ़ने के बाद मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गये. उसके बाद मैंने कभी कम्प्लेन नहीं की. सिर्फ थैंक यू बोलती हूं.
मौजूदा दौर में शादियां कई दशक बाद भी टूट रही हैं?
पहले भी शादियों में दिक्कत थी. अभी धैर्य खत्म हो गया है, ऐसा नहीं है. अभी औरतें आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हैं. पहले नहीं थीं, इसलिए शादियों को निभाना उनकी मजबूरी थी. दो लोगों के बीच क्या होता है, कौन कितना सह रहा है. वही जानते होंगे. अब औरतें अपने लिए स्टैंड लेना जान गयी हैं. पहले के जमाने में ये विकल्प ही नहीं थे. पहले मां-बाप पर रहो. फिर पति और बच्चे पर.
रिश्तों में रेड फ्लैग क्या होना चाहिए?
हर रिश्ता अलग होता है और उससे जुड़ी परिस्थितियां भी. हम यह नहीं कह सकते कि यही सही है या यही गलत. हां, रिश्ते में धोखा, हिंसा, ये तो निश्चित ही गलत हैं, लेकिन और भी चीजें गलत हो सकती हैं. जो आपकी गट फीलिंग आपको बताती है, उसे आप इग्नोर न करें.
आपकी बेटी समायरा की रुचि क्या अभिनय में है ?
अभी तो वह बच्ची है. हर दिन कुछ ना कुछ बनना चाहती है. हां, पिछले कुछ समय से वह एक्टिंग करने को बोल रही है. अपने माता पिता की तरह मैं भी उसके हर सपने को पूरा करने में उसके साथ हूं.

