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Sholay: 50 साल पूरे होने पर ‘शोले’ के असली क्लाइमैक्स से उठा पर्दा, इमरजेंसी ने बदला था गब्बर के अंत का सीन

Sholay: बॉलीवुड की क्लासिक फिल्म ‘शोले’ को 15 अगस्त 2025 को 50 साल पूरे हो जाएंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1975 की इमरजेंसी के कारण फिल्म का असली क्लाइमैक्स बदलना पड़ा था?

Sholay: 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई बॉलीवुड की सबसे बड़ी कल्ट क्लासिक फिल्म ‘शोले’ को इस साल 50 साल पूरे हो जाएंगे. अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और जया बच्चन जैसे सितारों की इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म का जो क्लाइमैक्स आपने देखा, वह असली नहीं था? 1975 में लगी इमरजेंसी के कारण इस फिल्म के अंत को बदलना पड़ा था. हाल ही में फरहान अख्तर ने एक इंटरव्यू में इसका राज खोला है.

असली कहानी क्या थी?

फरहान अख्तर ने अपनी आने वाली फिल्म ‘120 बहादुर’ के प्रमोशन के दौरान एक पॉडकास्ट में बताया कि ‘शोले’ का ओरिजिनल क्लाइमैक्स बहुत ही जबरदस्त था. असल में फिल्म की कहानी में एक ईमानदार पुलिस अफसर था, जो गब्बर सिंह के पीछे पड़ता है क्योंकि गब्बर ने उसके पूरे परिवार की हत्या कर दी थी. वह जय और वीरू को अपने साथ लेकर गब्बर को पकड़ने की कोशिश करता है और आखिरकार गब्बर को मार देता है.

इमरजेंसी का असर

1975 में देश में इमरजेंसी लगाई गई थी. उस वक्त सरकार ने फिल्मों में हिंसा और ज्यादा गुस्से को दिखाने पर पाबंदी लगा दी थी. ‘शोले’ के असली क्लाइमैक्स में ठाकुर गब्बर सिंह को अपने जूतों से मारता है, लेकिन सेंसर बोर्ड को डर था कि इससे जनता में कानून अपने हाथ में लेने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है. इसलिए यह सीन सेंसर से नहीं गुजरा. इस वजह से निर्देशक रमेश सिप्पी को फिर से सभी कलाकारों को बुलाकर फिल्म का अंत बदलना पड़ा. नए सीन में गब्बर को मारने के बजाय पुलिस उसे पकड़ लेती है. यह बदलाव बहुत बड़ा था और फिल्म का असली क्लाइमैक्स कई सालों तक लोगों से छुपा रहा.

हर किरदार था दमदार

फरहान अख्तर ने यह भी कहा कि ‘शोले’ सिर्फ जय-वीरू की कहानी नहीं थी. फिल्म के हर किरदार ने दर्शकों के दिलों पर गहरा असर छोड़ा. जेलर, सूरमा भोपाली, बसंती और गब्बर सिंह जैसे किरदार आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं. रमेश सिप्पी की निर्देशन कला ने हर सीन को इतना जीवंत बनाया कि दर्शक सोचने पर मजबूर हो जाते थे. ‘शोले’ भारतीय सिनेमा की पहली ऐसी फिल्म थी जिसने मुगल-ए-आजम के बाद इतना बड़ा कलेक्शन और लोकप्रियता हासिल की. इसने दर्शकों को महीनों तक सिनेमाघरों से जोड़े रखा और 50 साल बाद भी इसके डायलॉग, गाने और किरदार उतने ही पसंद किए जाते हैं.

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Shreya Sharma
Shreya Sharma
मैं श्रेया शर्मा, पिछले 8 महीनों से प्रभात खबर डिजिटल में एंटरटेनमेंट बीट पर काम कर रही हूँ. टीवी, ओटीटी, फिल्मों, भोजपुरी और सेलिब्रिटी खबरों को कवर करती हूँ. ट्रेंडिंग विषयों को आसान भाषा में रोचक और भरोसेमंद अंदाज में पाठकों तक पहुंचाना मेरा उद्देश्य है.

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