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अनकही कहानियों को पर्दे पर दिखाना पसंद करते हैं आशुतोष गो‍वारिकर

नयी दिल्ली: आशुतोष गोवारिकर ने आज से तकरीबन 23 साल पूर्व ‘पहला नशा’ के साथ बतौर फिल्म निर्देशक अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन इतने वर्षों बाद भी उनके नाम पर कुछ चुनिंदा फिल्में ही दर्ज हैं, और अब इस लंबे अंतराल के बाद वह ‘मोहनजो दारो’ के साथ पर्दे पर वापस लौट रहे […]

नयी दिल्ली: आशुतोष गोवारिकर ने आज से तकरीबन 23 साल पूर्व ‘पहला नशा’ के साथ बतौर फिल्म निर्देशक अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन इतने वर्षों बाद भी उनके नाम पर कुछ चुनिंदा फिल्में ही दर्ज हैं, और अब इस लंबे अंतराल के बाद वह ‘मोहनजो दारो’ के साथ पर्दे पर वापस लौट रहे हैं.

निर्देशक का कहना है उनकी पत्नी अक्सर उनसे कहती रहतीं कि क्यों ना एक ऐसी समकालीन फिल्म बनायी जाय जिसे एक साल में पूरा किया जा सके. सिंधु घाटी सभ्यता की पृष्ठभूमि पर बनी ‘मोहनजो दारो’ में रितिक रोशन नील की खेती करने वाले एक किसान की भूमिका में है जिसमें नवोदित अभिनेत्री पूजा हेगडे से उनका प्रेम संबंध होता है.

2010 में आयी ‘खेलें हम जी जान से’ के बाद यह गोवारिकर की यह पहली फिल्म है. इस बीच उनका केवल एक टीवी सीरियल ‘एवरेस्ट’ देखने को मिला.

गोवारिकर ने बताया, ‘रितिक के लिए यह अंतराल मुझसे कम रहा. मैं अब प्रतिक्रियाओं का इंतजार कर रहा हूं. मुझे लगता है कि यह अंतराल काफी लंबा हो गया. सुनिता मुझे अक्सर कहती रहती थी कि हम कोई समकालीन फिल्म क्यों नहीं बनाते हैं जिसे हम एक साल में पूरा कर लेते. मैं इसे करना तो चाहता था लेकिन मुझे एक ऐसी कहानी की तलाश थी जो मुझे प्रेरित कर सके.’

52 वर्षीय लगान के निर्देशक ने बताया, ‘मुझे एक अलग दुनिया, युग और काल खण्ड रचना पसंद है. जो मुझे आकर्षित करता है वह यह कि उस कालखंड की वह कौन सी अनकही कहानी और बातें हैं जो दर्शकों तक पहुंचनी चाहिये. यह काफी मजेदार होता है.

उन्‍होंने आगे कहा, ‘‘मोहनजो दारो’ पूर्ण रुप से पुरातात्विक खोज पर आधारित है और जहां कुछ करने को ज्यादा कुछ नहीं था, फिर भी इसमें एक प्रेम कथा और नाटक को रचना काफी रोचक था.’

इस फिल्म में कुछ ऐतिहासिक गलतियों को लेकर कुछ आलोचना भी हुई है, लेकिन गोवारिकर के लिए यह कहानी चुनना काफी रोचक था जो इतिहास की किताबों में से ‘सिर्फ एक पैराग्राफ’ के समान हैं. उन्होंने कहा, ‘यह हमारी पहली सभ्यता है और हम इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते थे. असल में इसका स्कूल की किताबों में सिर्फ एक पैराग्राफ के रुप में जिक्र हुआ करता था. इसकी कुछ शिल्पकृतियां और उत्खन स्थल देखने को मिलते थे.’

‘मैं हमेशा सोचता था कि यदि दुनियाभर में लोग यूनान और मिस्र की सभ्यता पर फिल्म बना रहें हैं और उसका प्रचार कर रहे हैं, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं?’ उन्होंने कहा, ‘मोहनजो दारो’ में अधिक समय लगा क्योंकि उनके पास मुगल अथवा ब्रिटिश काल की तरह अधिक स्रोत नहीं थे.

गोवारिकर ने बताया कि रितिक को दूसरी बार लेना आसान था क्योंकि ‘जोधा अकबर’ पर काम करने के दौरान उनके साथ काम करने का काफी अनुभव था. बतौर अभिनेता उनकी प्रतिभा और एक कलाकार के तौर पर उनका व्यक्तित्व इस फिल्म के लिये काफी महत्वपूर्ण था. यदि रितिक ने इसके लिये हां नहीं कहा होता तो मैंने शायद यह फिल्म नहीं बनायी होती.

Prabhat Khabar Digital Desk
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