नयी दिल्ली : क्यों…?, यह वही सवाल था जब दिबाकर बनर्जी ने, डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी…. की यात्रा पर अपनी फिल्म शुरु करने के दौरान अपने आप से पूछा था… जैसा कि राजनीतिक रूप से अस्थिर 1940 के दशक के कलकत्ता में अपराध को सुलझाने वाले युवा जोश से भरे धोतीधारी जासूस ने किया था. यह फिल्म उनके बचपन के सपनों में से एक रही है और महत्वाकांक्षी भी. साथ ही यह अब तक की सबसे मुश्किल फिल्म रही है.
हमने जाना कि ब्योमकेश को हम इसलिए बनाना चाहते हैं क्योंकि हम यह जानना चाहते थे कि 1940 के दशक में आखिर क्यों कॉलेज से निकला एक युवक जासूस बनना चाहेगा. मैं इसे बनाना चाहता था और मैं जानता था कि मैं जल्दी या बाद में इसे बनाऊंगा जरूर. जब आप फिल्म बनाते हैं, आप भाग्य में थोड़ा बहुत विश्वास करना शुरू कर देते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने इसके लिए कितनी मुश्किलें झेलीं.

