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फिल्‍म रिव्‍यू : मिलिये बॉलीवुड के नये ”एक्‍शन हीरो” से…

।। उर्मिला कोरी ।। फिल्म: एन एच 10 निर्माता: अनुष्का शर्मा और फैंटम निर्देशक: नवदीप सिंह कलाकार: अनुष्का शर्मा, नील भूपलन, दीप्ति नवल, दर्शन कुमार और अन्य रेटिंग : साढे तीन ‘एनएच 10’ फिल्म के एक दृश्य में संवाद है कि मैडम गुडगांव के आखिरी मॉल के बाद से आपकी डेमोक्रेसी खत्म हो जाती है. […]

।। उर्मिला कोरी ।।

फिल्म: एन एच 10

निर्माता: अनुष्का शर्मा और फैंटम

निर्देशक: नवदीप सिंह

कलाकार: अनुष्का शर्मा, नील भूपलन, दीप्ति नवल, दर्शन कुमार और अन्य

रेटिंग : साढे तीन

‘एनएच 10’ फिल्म के एक दृश्य में संवाद है कि मैडम गुडगांव के आखिरी मॉल के बाद से आपकी डेमोक्रेसी खत्म हो जाती है. यहां बिजली पानी तो पहुंचा नहीं आपका संविधान क्या खाक पहुंचेगा. यह संवाद फिल्म को बयां कर जाता है. जी हां यह फिल्म दो अलग अलग भारत में रह रहे लोगों की कहानी है.

एक भारत जहां लोग कानून और संविधान के तरीके से जीते हैं. जहां शादी के लिए एक जाति का होना जरुरी नहीं है. दो अलग जाति के लोग शादी कर बहुत खुश हैं. दूसरा भारत जहां पर शादी के लिए जाति सबसे ज्यादा जरुरी है. अगर शादी किसी ने कर ली तो झूठी शान के लिए उसके अपने उसकी जान भी ले सकते हैं. किसी को कानून का खौफ नहीं.

पुलिस और सिस्टम से उनकी मिलीभगत है. जब दो अलग अलग भारत में रहने वाले लोगों का सामना होता है तो फिर क्या होता है. इसी की कहानी ‘एन एच 10’ है. यह फिल्म रोड़ ट्रिप पर निकले पति पत्नी की कहानी है. जिनकी जिंदगी को यह जर्नी बदल देता है.यह एक रात की कहानी है. यह एक थ्रिलर फिल्म है. फिल्म की कहानी इस तरह से परदे पर दिखायी जाती है कि आपकी जिज्ञासा बनी रहती है कि अब क्या होगा.

यह कहानी की सबसे बड़ी यूएसपी है. दो घंटे की इस फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं. जो आपके रोगंटे खड़े कर देते हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स थोड़ा फिल्मी जरुर है लेकिन मन में कहीं न कहीं यह बात भी फिल्म देखते हुए बन जाती है कि इन लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए. पुरुष प्रधान समाज की दकियानूसी सोच की क्रूरता से लड़ने के लिए एक महिला भी उस क्रूरता को अपना ले तो कोई बुराई नहीं है. यह जरुरी है.

यह फिल्म इस बात पर भी कहीं न कहीं सवाल उठाती है कि हम शहरों में रह रहे लोग अपनी आपाधापी भरी जिंदगी में यह भूलते जा रहे हैं कि हमसे दूर रह रहे लोग की सोच का असर गाहे बगाहे हम पर भी पड़ सकता है. उनकी हिंसा, कानून के बजाए अपनी झूठी शान का सम्मान करने का खामियाजा सिर्फ उनके अपनों को ही नहीं बल्कि हमें भी भुगतना हो सकता है. फिल्म के संवाद में यह बात अनुष्का के किरदार द्वारा कही भी गयी है कि अगर गुडगांव बढ़ता बच्चा है और कूद लग रहा है तो मुझे गन रखनी होगी.

अभिनय की बात करें तो यह अनुष्का की फिल्म है. मीरा के किरदार में उन्होंने मेहनत ही नहीं खून पसीना जमकर भी बहाया है. कई दृश्यों में वह अपनी मजबूरी को चीखों के जरिए बयां कर जाती है तो कहीं अपने गुस्से को टॉयलेट के गेट पर महिला के लिखे गए अपशब्द को टिशू पेपर से भीगोकर पोछ देती है.अपने पति के हत्यारों को सजा देने के लिए उन्होंने जो क्रूरता वाला दृश्य सहजता से निभाया है. वह भी बेहतरीन है.

बतौर निर्माता इस फिल्म से जुड़ने के लिए भी अनुष्का बधाई की पात्र हैं. दर्शन कुमार ने भले ही ज्यादा शब्द न बोले हैं लेकिन अपने किरदार को उन्होंने प्रभावी ढंग से निभाया है. वह अपने किरदार से खौफ कायम करने में कामयाब रहे हैं. दीप्ति नवल, नील सहित अन्य किरदार भी अपने किरदारों के साथ बखूबी न्याय करते नजर आते हैं.

फिल्म के संवाद हो या सिनेमाटोग्राफी फिल्म के अनुरुप ही है. उनमे पूरी तरह से रियालिस्टक टच नजर आता है. कोई भाषणबाजी नहीं है. यह भी इस फिल्म का एक अलहदा पहलू है. ‘एन एच 10’ एक बेहतरीन फिल्म है. जिसके सफर पर एक बार जाना चाहिए.

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