हिंदी सिनेमा में 48 साल तक राज करनेवाले मशहूर डायरेक्टर और प्रोड्यूसर रमेश सिप्पी का आज जन्मदिन है. रमेश सिप्पी का जन्म 23 जनवरी 1947 को हुआ था. उनके पिता जी.पी सिप्पी भी एक जानेमाने प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे. रमेश सिप्पी ने अपने करियर कर शुरुआत मात्र 9 साल से की थी, जब साल 1953 की फिल्म ‘शहंशाह’ में अचला सचदेव के बेटे का किरदार निभाया था. रमेश सिप्पी ने बॉलीवुड में कई सुपरहिट फिल्में दी है जिसमें ‘शोले’, ‘अंदाज’, ‘शान’, ‘सीता और गीता’, ‘शक्ति’ शामिल हैं.
रमेश सिप्पी की सभी फिल्मों में सबसे ज्यादा चर्चा में ‘शोले’ रही. इस फिल्म को रिलीज हुए 44 साल बीत चुके हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इस फिल्म का क्लाइमेक्स जो असल में दिखाया गया था वो नहीं था? जानें कुछ खास बातें…
फिल्म बनाने के लिए पैसे नहीं थे
रमेश सिप्पी ने अपने इंटरव्यू में ‘शोले’ से जुड़ी कई दिलचस्प बातें शेयर की थी.उन्होंने बताया था, मैं भाग्यशाली था कि शोले बनाने के दौरान मेरे पिताजी मेरे साथ थे. मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं इसे बना सकूं. उस समय यह सिर्फ 3 करोड़ में बनी थी.’ मुझे याद है जब दिलीप कुमार ने एक फिल्म के लिए एक लाख रुपये की फीस ली तो हर किसी ने यही कहा कि फिल्म इंडस्ट्री बंद होनेवाली है.
हर स्टार की फीस 20 लाख
इंटरव्यू में उन्होंने बताया था,’ उस समय शोले बनाने के लिए मेरे पास पर्याप्त बजट नहीं था. मेरे पास कुछ विचार थे जिसे मैंने अपने पिता से शेयर किया था.’ शोले बनाने में कुल खर्च तीन करोड़ रुपये आया था और स्टार कास्ट कर फीस मात्र 20 लाख रुपये. आज के समय में अगर आप 150 करोड़ रुपये की फिल्म बनाते हैं तो उसमें से 100 करोड़ रुपये तो स्टार कास्ट में ही लग जाते हैं. आज का फिल्म निर्माण व्यवसाय एकतरफा हो गया था.’ बता दें कि आज यदि शोले बनती तो इसका बजट 150 करोड़ रुपए होता.
क्लाईमैक्स बदलने को हो गये थे तैयार
ऐसा वक्त भी आया था जब ‘शोले’ के रिलीज के दो दिन बाद ही रमेश सिप्पी ने इसका क्लाइमेक्स बदलने का फैसला कर लिया था. जब ‘शोले’ रिलीज हुई तो शुक्रवार और शनिवार को बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म कमाई के मामले में पूरी तरह से असफल रही. भारी बजट की भव्य फिल्म का यह हाल देख रिलीज के दो दिन बाद ही रमेश सिप्पी ने अपने घर में मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में लेखक सलीम-जावेद को भी बुलाया गया था. फिल्म के कमजोर प्रदर्शन का यह अर्थ निकाला गया कि शायद अंत में अमिताभ के किरदार की मौत को दर्शक पसंद नहीं कर रहे हैं. सिप्पी ने नयी एंडिंग की शूटिंग भी की. लेकिन शायद फिल्म के इतिहास को कुछ और ही मंजूर था. दो दिन के बाद फिल्म का प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर सुधर गया और फिर बेहतर होता चला गया.
जिंदा बच गया ‘गब्बर’
फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने कई मौकों पर इसका खुलासा किया है कि कैसे आपातकाल के दिनों ने उनकी फिल्म को प्रभावित किया. उन्होंने कहा था कि फिल्म का क्लाइमैक्स जैसा दिखाया गया वैसा नहीं था. सेंसर ने फिल्म के क्लाइमैक्स पर आपत्ति व्यक्त की थी. असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मौत के घाट उतार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था. इसके बाद 26 दिनों में क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया , जिसमें गब्बर को मारा नहीं गया बल्कि कानून के हवाले किया गया.