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FILM REVIEW: जानें ”पद्मावत” कैसी है ?

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: पद्मावत निर्माता: वायकॉम 18 निर्देशक: संजय लीला भंसाली कलाकार: दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, अदिति राव हैदरी और अन्य रेटिंग:साढ़े तीन संजय लीला भंसाली की फ़िल्म पद्मावत को लेकर राजपूत संगठन के जो भी विरोध थे. वैसा इस फ़िल्म में कुछ भी नहीं है. फ़िल्म में पद्मावती और अलाउद्दीन […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म: पद्मावत

निर्माता: वायकॉम 18

निर्देशक: संजय लीला भंसाली

कलाकार: दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, अदिति राव हैदरी और अन्य

रेटिंग:साढ़े तीन

संजय लीला भंसाली की फ़िल्म पद्मावत को लेकर राजपूत संगठन के जो भी विरोध थे. वैसा इस फ़िल्म में कुछ भी नहीं है. फ़िल्म में पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के साथ एक भी दृश्य नहीं हैं. घूमर गीत भी पद्मावती का किरदार सिर्फ राजा रतन रावल सिंह के सामने ही घूमर करती हैं. वहां पर और कोई पुरुष मौजूद नहीं है. कुलमिलाकर फ़िल्म में राजपूती आन बान शान की गरिमा को हर फ्रेम में बरकरार रखा गया है. ऐसे में फ़िल्म का विरोध बेमानी है.

विरोध के बाद अब बात संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित फ़िल्म पद्मावत मनोरंजन की कसौटी पर कितनी खरी उतरती है. फ़िल्म की कहानी मलिक मोहम्मद जायसी की किताब पद्मावत पर आधारित है. फ़िल्म के शरुआत इसी बात से होती है. कहानी वैसी ही है जो अब तक हमने किवदंतियों सुनी और पढ़ी है. पद्मावती मेवाड़ के राजा रावल रतन सिंह की पत्नी हैं जो खूबसूरती की मिसाल है.

उनकी खूबसूरती की तारीफ सुनकर अलाउदीन खिलजी मेवाड़ पर आक्रमण करता है. युद्ध में हज़ारों बेगुनाहों को मौत से बचाने के लिए रानी पद्मावती अपना प्रतिबिम्ब खिलजी को दिखाने को राजी हो जाती हैं लेकिन खिलजी की वासना और ख्वाइशें और उग्र हो जाती है. युद्ध शुरू हो जाता है. रावल रतन सिंह अपने उसूल और आदर्श के साथ युद्ध करते हैं.वहीं खिलजी का कोई उसूल नहीं है.

उसके लिए हर हाल में जीत ही सबसे बड़ा उसूल है लेकिन रानी पद्मावती और हज़ारों रानियां अपने जौहर से खिलजी को परास्त कर देती हैं और जीत आखिर में राजपूती शौर्य और पराक्रम की होती है. फ़िल्म महिलाओं के आत्मसम्मान की भी बात करती है.

फ़िल्म की कहानी की बात करें तो वह लंबी हो गयी है थोड़ी एडिटिंग की ज़रूरत थी. फ़िल्म में एडिटिंग हुई है लेकिन घुमर गीत में दीपिका के पेट और कमर के हिस्से को छुपाने में. फ़िल्म पर कैंची चली है जिस वजह से कहीं कहीं कुछ अधूरा से लगता है हाँ फ़िल्म का क्लाइमेक्स सशक्त है.वह फ़िल्म से निकलने के बाद भी आपके जेहन में रहता है. फ़िल्म आंखों के लिए ट्रीट है. फ़िल्म के हर फ्रेम में भव्यता है. संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में लार्जर देन लाइफ दिखाने के लिए मशहूर है इस फ़िल्म में भी वह भव्यता है।कपड़ों,गहनों ,महलों से लेकर युद्ध के दृश्य सभी में.

अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म अभिनेता रणवीर सिंह की फ़िल्म है. उन्होंने अलाउदीन खिलजी के किरदार के सनक, क्रूरता, पागलपन, चालाकी सबको बहुत ही बेहतरीन ढंग से जिया है. वह फ़िल्म में लाजवाब रहे हैं. दीपिका पादुकोण ने पद्मावती के किरदार को पूरी गरिमा के साथ जिया है. फ़िल्म में उनकी आंखें बोलती हैं. शाहिद कपूर का काम सराहनीय है लेकिन उनका व्यक्तित्व एक राजपूत योद्धा से मेल नहीं खाता है. अदिति राव हैदरी,रजा मुराद,जिम सराब सहित बाकी के किरदार अपनी अपनी भूमिकाओं में जमे हैं.

फ़िल्म के गीत संगीत की बात करें तो वो फ़िल्म की कहानी के साथ न्याय करते हैं लेकिन याद नहीं रह जाते हैं घूमर गीत को छोड़ देते तो।फ़िल्म के कमजोर पक्षों में वीएफएक्स भी है खासकर लांग शॉट में जिस तरह से चीज़ें बौनी दिख रही हैं. वह फ़िल्म की भव्यता को कम कर जाते हैं. फ़िल्म के संवाद खास है. कुलमिलाकर संजय लीला भंसाली की यह फ़िल्म अपनी भव्यता और कलाकारों के लाजवाब अभिनय के लिए देखी जा सकती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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