नयी दिल्ली: पिछले दिनों प्रकाश झा की फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ को भारत में बैन करने के अपने फैसले के बाद सेंसर बोर्ड सुर्खियों में आ गया था. एकबार फिर सेंसर बोर्ड फिल्म ‘फुल्लू’ को ‘ए’ सर्टिफिकेट थमाने को लेकर सोशल मीडिया पर घिर आया है. इस फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट दिये जाने पर सेंसर बोर्ड की आलोचना हो रही है. ट्विटर पर लोगों ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि आखिर किस आधार पर इस फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया है. एक यूजर ने ट्वीट किया,’ पीरीयड्स से जुड़ी जानकारियां किशोरियों के लिए ही सबसे ज्यादा है ऐसे में इस फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट क्यों दिया गया.
फिल्म में शारिब अली ने ‘फुल्लू’ नामक लड़के का किरदार निभाया है. ‘फुल्लू’ को शहर जाकर सैनेटरी नैपकीन्स के बारे में पता चलता है. इसके बाद वो अपने गांव की महिलाओं के लिए उचित दाम पर सैनेटरी नैपकिन बनाने का निर्णय लेता है. लेकिन ये इतना आसान नहीं है उसे गांव में लोगों की कई तरह की बातें सुननी पड़ती है. फिल्म को स्कूल की किशोरियों और महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है, लेकिन फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिलने से अब स्कूल की लड़कियां इस फिल्म को देख ही नहीं पायेंगी.
Why “A” certificate for #Phullu when education on menstrual cycle is important for teenage girls. pic.twitter.com/xRUPNRA0RT
— Atul Chanpuriya (@atulchanpuriya) June 15, 2017
Why Censor board giving A certificate to such an informative & educational film. #Phullu must be shown to school kids pic.twitter.com/OQDBwMphMn
— Rajesh Sharma ।ৰাজেশ শৰ্মা ।રાજેશ શર્મા 🇮🇳 (@beingAAPian) June 15, 2017
Movie on menstruation awareness is not an Adult film. Censor board has lost it's mind. #Phullu https://t.co/O0XLpsyJ91
— कुलदीप कादयान 🚜 (@KuldeepKadyan) June 15, 2017
पिछले दिनों सेंसर बोर्ड ने कोंकणा सेन शर्मा अभिनीत अवॉर्ड विनिंग फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ को प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया था. इसकी वजह बताते हुए सेंसर बोर्ड ने लिखा था कि यह कुछ ज्यादा ही महिला केंद्रित है. फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं दिए जाने पर बॉलीवुड के कई कलाकारों ने इसकी जमकर निंदा की थी. फिल्म की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव ने सेंसर बोर्ड के इस फैसले को ‘महिलाओं के अधिकार’ पर हमला बताया था. फिल्म में एक छोटे से शहर की चार महिलाओं की कहानी है जो आजादी की तलाश में हैं. जो खुद को समाज के बंधनों से मुक्त करना चाहती हैं.